बीजेपी ने झारखंड गंवाया, सीएम रघूबर दास भी हारे

जेएमएम को 47 सीटें मिली, बीजेपी का रथ 25 पर रूका
बीजेपी ने झारखंड गंवाया, सीएम रघूबर दास भी हारे
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न्यूज – भारतीय जनता पार्टी के नेता रघुबर दास को निर्दलीय उम्मीदवार सरयू रॉय के हाथों झारखंड विधानसभा चुनाव में जमशेदपूर पूर्व सीट से करारी हार का सामना करना पड़ा, इसी के साथ मुख्यमंत्री की कुर्सी खो देने वाले रघुबर के हाथ से विधायक की कुर्सी भी खिसक गई, विधानसभा चुनावों में विपक्षी गठबंधन ने बड़ी जीत हासिल करते हुए बीजेपी शासित एक और राज्य अपने नाम कर लिया, ये बीजेपी के हाथ से खिसकने वाला पांचवां राज्य है।

झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के नेतृत्व वाले गठबंधन, जिसमें कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) शामिल हैं, ने आदिवासी बहुल इस राज्य की 81 सदस्यीय विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा (41) पार कर लिया है, JMM के खाते में 30 तो उसकी सहयोगी कांग्रेस को 16 और RJD को 1 सीट पर जीत हासिल हुई, इस तरह JMM नीत गठबंधन के हिस्से में कुल 47 सीटें आईं, जबकी बीजेपी को इस बार 25 सीटें ही मिल सकीं।

इन आंकड़ों ने साफ कर दिया है कि पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन एक बार फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने वाले हैं, मालूम हो कि पिछले चुनावों में सोरेन को दास के हाथों हार का सामना करना पड़ा था, विपक्षी गठबंधन के लिए ये जश्न का माहौल है, जबकि बीजेपी के लिए ये चिंता का कारण बन गया है, दरअसल राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ को कांग्रेस के हाथों गवां देने के बाद इस साल पार्टी के हाथों से महाराष्ट्र भी खिसक गया था।

हालांकि पार्टी को उम्मीद थी कि झारखंड का जैसा समर्थन पार्टी को 2019 के लोकसभा चुनाव में मिला, वैसा ही विधानसभा चुनावों में भी मिलेगा, मालूम हो कि चंद महीनों पहले हुए लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने राज्य की 14 में से 11 सीटों पर जीत हासिल की थी, हालांकि पार्टी की सोच के मुताबिक जनता ने विधानसभा चुनावों में उलट ही जनादेश दिया और मुख्यमंत्री रघुबर दास को तक चुनाव हरा दिया।

बीजेपी की राज्य में हार की जिम्मेदारी भले ही रघुबर दास ने ले ली हो, लेकिन इसकी पटकथा वह काफी समय से लिख रहे थे. जानकारों की मानें तो आदिवासी कानून से छेड़छाड़ का प्रयास और उनका गैर-आदिवासी चेहरा राज्य में पार्टी की हार के मुख्य कारणों में से हैं, जानकारों के मुताबिक बीजेपी नेताओं द्वारा उठाए गए राम मंदिर और जम्मू कश्मीर जैसे राष्ट्रीय मसलों को जनता ने नकारते हुए स्थानीय मुद्दों को तरजीह दी।

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