कभी गरीबी ने किया था कोख किराए पर देने को मजबूर, अब बनी निर्विरोध सरपंच

भानु बताती हैं कि एक महिला होने के नाते महिलाओं को समाज में किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है । वह गांव की महिलाओं को व्यापार, पशुपालन और अन्य कुटीर उद्योगों से जोड़ना चाहती हैं, साथ ही गांव में पानी, बिजली, सड़क आदि की सुविधाओं में सुधार करना चाहती हैं।
gujrat elected woman sarpanch

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गुजरात में आणंद जिले के गोरवा गांव की भानु वंकर कभी गरीबी के कारण सरोगेट मदर बनी थीं, लेकिन अब वह सरपंच बनकर महिलाओं के उत्थान और उनकी सुविधाओं के लिए काम करेंगी। बोरसाद तहसील के गोरवा गांव निवासी 43 वर्षीय भानु वंकर की 15 साल पहले शादी हुई थी।

आर्थिक तंगी ने किया किराए की कोख देकर पैसे कमाने पर मजबूर

उनका पति मजदूरी और छोटा-मोटा काम करके अपने घर का गुजारा करता था। कभी-कभी मुझे काम मिलता कभी-कभी नहीं। इस वजह से कई बार घर में दिन में दो वक्त का खाना भी नसीब नही होता था। जब उनकी बहन ने सरोगेट मां के बारे में बताया तो एक दिन भानु ने आईवीएफ विशेषज्ञ डॉ. नैना पटेल के पास जाकर सरोगेट मां बनने की इच्छा जाहिर की।

2007 में, वह एक निःसंतान दंपत्ति की सरोगेट मां बनीं और जुड़वा बच्चों को जन्म दिया। बदले में उन्हें साढ़े तीन लाख रुपये मिले । 2011 में भानु ने फिर से सरोगेट मदर बनने का फैसला किया।

इस बार उन्हें गर्भ किराए पर देने के बदले साढ़े पांच लाख रुपये मिले। दो निःसंतान दंपत्ति के घर में भानु ने बच्चों को रुलाया। साथ ही बदले में मिले पैसों से उन्होंने अपना घर बनवाया

महिलाओं को जागरूक करने का उठाएंगी जिम्मा

आईवीएफ विशेषज्ञ डॉ. नयना पटेल कई वर्षों से आणंद में सरोगेसी पर काम कर रही हैं। उनके कारण सैकड़ों परिवारों और जोड़ों को संतान सुख प्राप्त हुआ है। भानु के सरपंच बनने से डॉक्टर नैना बेहद खुश हैं।

उनका कहना है कि सरोगेसी से एक परिवार में सुख-समृद्धि आती है, वहीं दूसरे परिवार को आर्थिक समृद्धि मिलती है। उनका मानना ​​है कि सरोगेसी शोषण नहीं शक्ति प्रदान करती है। आर्थिक तंगी से जूझ रहा परिवार आज सरोगेसी से आत्मनिर्भर हो गया है।

घर बना, पति का धंधा शुरू हुआ और बच्चों को अच्छी शिक्षा मिली। इसी परिवार की यह महिला अब गांव में सुविधा व महिला जागरूकता के लिए सरपंच का काम करेगी

अब चुनी गईं निर्विरोध सरपंच

इसके बाद भानु ने गिरवी रखी जमीन को छुड़ाने के लिए पति से मिलवाया और पति का दूध का कारोबार शुरू किया। भानु का परिवार अब खुश है।

इसी बीच जब ग्राम पंचायत चुनाव की घोषणा हुई तो महिलाओं के आरक्षित सीट होने के कारण कुछ लोगों ने उन्हें चुनाव लड़ने की सलाह दी और उन्होंने इसे चुनौती के रूप में लिया।

सौभाग्य से, किसी ने भी उनके खिलाफ नामांकन दाखिल नहीं किया और वह निर्विरोध सरपंच चुनी गईं। भानु बताती हैं कि एक महिला होने के नाते महिलाओं को समाज में किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

वह गांव की महिलाओं को व्यापार, पशुपालन और अन्य कुटीर उद्योगों से जोड़ना चाहती हैं, साथ ही गांव में पानी, बिजली, सड़क आदि की सुविधाओं में सुधार करना चाहती हैं। भानु ने अपने साहस और लगन से अपने परिवार को बदल दिया। अब वह गांव में बदलाव लाना चाहती है।

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