महाराष्ट्र में असली शिवसेना के नेतृत्व की लड़ाई, संवैधानिक पीठ में जा सकता है मामला

पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और वर्तमान मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के बीच चल रही खींचतान पर 4 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई है। मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि वह महाराष्ट्र में हालिया राजनीतिक संकट से संबंधित मामलों को संविधान पीठ को भेजने पर सोमवार तक फैसला करेगी।
महाराष्ट्र में असली शिवसेना के नेतृत्व की लड़ाई, संवैधानिक पीठ में जा सकता है मामला

महाराष्ट्र में असली शिवसेना को लेकर चल रही लड़ाई पर दावे को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और वर्तमान मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के बीच चल रही खींचतान पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई है।

चुनाव आयोग शिंदे गुट की याचिका पर कोई फैसला न करे

अदालत ने चुनाव आयोग से कहा कि वह एकनाथ शिंदे की उस याचिका पर फिलहाल कोई फैसला न करे, जिसमें उसे असली शिवसेना मानने और उसे पार्टी का चुनाव चिन्ह देने की मांग की गई थी। मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि वह महाराष्ट्र में हालिया राजनीतिक संकट से संबंधित मामलों को संविधान पीठ को भेजने पर सोमवार तक फैसला करेगी।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि वह 8 अगस्त को फैसला कर सकता है कि महाराष्ट्र में राजनीतिक संकट से जुड़े कुछ मुद्दों को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास भेजा जाए या नहीं। साथ ही, अदालत ने चुनाव आयोग से कहा कि अगर उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाला खेमा शिंदे खेमे की याचिका पर अपने नोटिस का जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगता है, तो उसे मामले को स्थगित करने के उनके अनुरोध पर विचार करना चाहिए।

नेतृत्व के खिलाफ आवाज उठाना बगावत या दलबदल नहीं

इससे पहले 3 अगस्त को दोनों पक्षों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दलीलें रखी गईं। शिंदे गुट की ओर से कहा गया कि नेतृत्व के खिलाफ आवाज उठाना बगावत या दलबदल नहीं है। यह पार्टी के भीतर का विवाद है। दूसरी ओर, उद्धव ठाकरे गुट ने तर्क दिया कि शिवसेना के बागी विधायकों के आचरण से यह स्पष्ट है कि उन्होंने पार्टी छोड़ दी। इसलिए, सभी कानून के अनुसार अयोग्य हो गए हैं और अध्यक्ष के चुनाव और मुख्यमंत्री की नियुक्ति तक सदन में सभी कार्यवाही अवैध हैं। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने शिंदे गुट से अपने कानूनी सवालों को स्पष्ट रूप से लिखित रुप में कोर्ट को देने को कहा है।

उद्धव गुट का तर्क

  • शिवसेना के बागी विधायकों को संविधान की दसवीं अनुसूची के प्रावधानों के तहत अयोग्य घोषित हो गए है। विभाजित गुट का न तो किसी दल में विलय हुआ है और न ही कोई पृथक दल बना है।

  • शिंदे गुट का आचरण पार्टी विरोधी है। वे अपात्र हैं, और स्वयं को मूल शिवसेना होने का दावा कर रहे हैं।

  • शिंदे गुट द्वारा की गई सदन की सभी कार्यवाही अवैध हैं।

शिंदे गुट

  • पार्टी में मतभेदों को दलबदल नहीं कहा जा सकता है। दल-बदल विरोधी कानून तब लागू होता है जब कोई पार्टी छोड़ता है।

  • हमने पार्टी नहीं छोड़ी है। हम शिवसेना हैं। यहां विवाद नेतृत्व को लेकर है। नेतृत्व के खिलाफ आवाज उठाना दलबदल नहीं है।

  • हमारे देश में समस्या यह है कि यहां नेता को एक पार्टी के रूप में समझ लिया जाता है। अगर पार्टी में ज्यादातर लोग को उस नेता पर भरोसा नहीं है, तो दल बदल की बात करने लगते है ।

  • यहां बात शिवसेना की नहीं, बल्कि पार्टी के दो गुटों की है।

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