करीब तीन साल पहले दिसंबर 2018 में यूपी के बुलंदशहर जिले के स्याना कस्बे में गोकशी को लेकर हुए हंगामे के मामले में स्थानीय अदालत ने 36 अभियुक्तों के खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा चलाने का निर्देश दिया है. इन अभियुक्तों में इस घटना के मुख्य अभियुक्त योगेश राज भी शामिल हैं जो हिंसा के दौरान इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की हत्या में भी मुख्य अभियुक्त हैं. योगेश राज समेत पांच अभियुक्तों पर इंस्पेक्टर सुबोध सिंह की हत्या में शामिल होने का आरोप है.
बुलंदशहर की अपर सत्र न्यायधीश विनीता सिंघल ने इन सभी के खिलाफ राजद्रोह के आरोप में मुकदमा चलाने का आदेश दिया है. इससे पहले बुलंदशहर की स्याना कोतवाली पुलिस ने इस मामले में राजद्रोह का केस दर्ज करते हुए सरकार से मुकदमा चलाने की अनुमति मांगी थी. सरकार से उसकी अनुमति मिल गई थी, लेकिन अदालत में यह याचिका अब दायर हुई है.
रिपोर्ट के मुताबिक, न्यायालय ने माना है कि 36 अभियुक्तों ने एक भीड़ के साथ मिलकर कानून व्यवस्था को बिगाड़कर अराजकता फैलाई और भीड़ को हिंसा के लिए उकसाया. यह मामला साल 2018 में बुलंदशहर के स्याना में हुई हिंसा से जुड़ा है. स्याना गाँव में गोवंश के कुछ अवशेष मिलने पर हिंसा भड़क गई थी और भीड़ ने चिंगरावठी पुलिस चौकी और वहाँ खड़े कई वाहनों को आग लगा दी थी. भीड़ ने पथराव भी किया था जिसमें इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की मौत हो गई थी. हिंसा में सुमित नाम के एक युवक की भी मौत हो गई थी. सुबोध कुमार सिंह उस वक्त स्याना थाने के अध्यक्ष थे.
हिंसा के मामले में एसआईटी जाँच के बाद पुलिस ने जो एफआईआर दर्ज की थी उसमें 27 लोग नामजद थे और 60 अज्ञात लोग शामिल थे. इनमें से बजरंग दल और कुछ अन्य हिन्दूवादी संगठनों से जुड़े 44 अभियुक्तों को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया था. इसके अलावा कथित गोकशी के मामले में भी 11 अभियुक्तों को जेल भेजा गया था. हिंसा के दौरान इंस्पेक्टर सुबोध सिंह की हत्या पर कई सवाल खड़े हुए थे.
सुबोध कुमार सिंह ग्रेटर नोएडा के दादरी में हुए अखलाक हत्याकांड मामले में भी जाँच अधिकारी रह चुके थे. अखलाक की हत्या भी गोकशी के शक में भीड़ द्वारा पीट-पीटकर की गई थी. सुबोध सिंह की मौत ऐसे समय में हुई थी जब दादरी मामले में एक बार फिर जाँच शुरू होने वाली थी.
स्याना हिंसा मामले के मुख्य अभियुक्त बजरंग दल के जिला संयोजक योगेश राज को पुलिस ने घटना के एक महीने बाद यानी 3 जनवरी, 2019 को गिरफ्तार किया था. योगेश राज को हाईकोर्ट से जमानत मिल गई थी लेकिन अभी कुछ समय पहले सुप्रीम कोर्ट ने योगेश राज की जमानत रद्द कर दी और एक हफ्ते के भीतर सरेंडर करने को कहा था. जमानत रद्द करते हुए उच्चतम न्यायलय ने कहा कि गोहत्या के बहाने पुलिस अधिकारी की पीट-पीटकर हत्या की गई थी जो गंभीर मामला है.
सात जनवरी को योगेश राज ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कोर्ट में सरेंडर कर दिया. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद योगेश ने सोशल मीडिया पर कोर्ट में सरेंडर करने की घोषणा की थी. हालांकि इससे पहले वो पंचायत चुनाव लड़ चुका था और जिला पंचायत सदस्य के तौर पर जीत भी हासिल की थी. जेल में ही रहकर योगेश ने स्याना विधानसभा से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर नामांकन भी किया था.
कुछ साल पहले गो-रक्षा के नाम पर यूपी में कई जगह हिंसा हुई और भीड़ के हाथों कई लोगों को जान बचानी पड़ी. बुलंदशहर का मामला कुछ वजहों से थोड़ा अलग रहा क्योंकि गाय की रक्षा के नाम पर हुई हिंसा में पहली बार किसी पुलिस वाले की मौत हुई थी और वह भी एक हिन्दू की. यही नहीं, इस तरह की हिंसा में हिस्सा लेने वालों के लिए भी यह एक सबक है कि ऐसे मामलों में सरकार उनका किसी भी तरह से कोई बचाव नहीं करती हैं.
हाईकोर्ट से जमानत मिलने के बाद योगेश राज की रिहाई भी काफी चर्चा में रही थी. रिहा होने के बाद 'जय श्रीराम' और 'वंदे मातरम' के नारों के बीच उन लोगों का भव्य स्वागत किया गया था जिससे हिंसा में मारे गए इंस्पेक्टर की पत्नी और उनके परिजनों ने काफी नाराजगी दिखाई थी. इंस्पेक्टर के परिजनों का आरोप था कि सरकार ने मुकदमे की पैरवी ठीक से नहीं की इसीलिए उन लोगों को जमानत मिल गई. हालांकि बाद में खुद सुप्रीम कोर्ट ने इस जमानत को रद्द कर दिया.
वहीं, गोकशी मामले में जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया था उनमें से तीन अभियुक्तों अजहर खान, नदीम खान और महबूब अली पर रासुका लगाई गई थी.
समीरात्मज मिश्र वरिष्ठ पत्रकार हैं. लंबे समय तक बीबीसी में संवाददाता रहे हैं. इस समय जर्मनी के पब्लिक ब्रॉडकास्टर डीडब्ल्यू से जुड़े हैं और यूट्यूब चैनल ‘द ग्राउंड रिपोर्ट’ के संपादक हैं.
ये एनालेसिस यूपी चुनाव को लेकर बन रही श्रृंखला का लेख है, इस श्रृंखला में आगे भी यूपी चुनाव 2022 के राजनैतिक समीकरणों और जनता के रुझान को लेकर के समीक्षा निंरतर जारी रहेगी।
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