6 दिसंबर, 1992 को नरसिम्हा राव सुबह 7 बजे सोकर उठे। आमतौर से वो इससे पहले उठ जाते थे, लेकिन उस दिन देर इसलिए हुई क्योंकि उस दिन रविवार था। अख़बार पढ़ने के बाद उन्होंने अगला आधा घंटा ट्रेड मिल पर वॉक कर बिताया।
इसके बाद उनके निजी डॉक्टर के। श्रीनाथ रेड्डी आ गए। राव के खून और पेशाब का नमूना लेने के दौरान दोनों तेलुगू और अंग्रेज़ी में बतियाते रहे। उसके बाद रेड्डी अपने घर चले आए। दोपहर बाद जब 12 बजकर 20 मिनट पर उन्होंने अपना टेलीविज़न खोला, तो उन्होंने देखा हज़ारों कारसेवक बाबरी मस्जिद के गुंबदों पर चढ़े हुए हैं।
1 बजकर 55 मिनट पर पहला गुंबद नीचे गिर चुका था। अचानक डॉक्टर रेड्डी ने सोचा, प्रधानमंत्री दिल के मरीज़ हैं, 1990 में हुए दिल के ऑपरेशन ने उन्हें करीब-करीब राजनीति से रिटायर करवा दिया था।
रेड्डी प्रधानमंत्री का ब्लड प्रेशर जांचने दोबारा प्रधानमंत्री निवास पर पहुंच गए। जब तक बाबरी मस्जिद का तीसरा गुंबद भी गिर चुका था। डॉक्टर श्रीनाथ रेड्डी बताते हैं, "राव ने मुझे देख कर गुस्से से पूछा, 'आप फिर क्यों चले आए?' मुझे आपकी फिर जांच करनी है। मैं उनको बगल के छोटे कमरे में ले आया। जैसा कि मुझे उम्मीद थी, उनके दिल की धड़कनें तेज़ हो गई थीं। उनकी नाड़ी भी तेज़ चल रही थी। उनका ब्लड प्रेशर भी बढ़ा हुआ था।
उनका चेहरा लाल हो गया था और वो काफ़ी उत्तेजित दिखाई दे रहे थे। मैंने उनको 'बीटा ब्लॉकर' की अतिरिक्त डोज़ दी और वहां से तभी हटा जब वो थोड़े बेहतर दिखाई देने लगे। उनके शरीर की जांच से ये नहीं लगा कि उनकी इस ट्रेजेडी में कोई साठगांठ थी। द बॉडी डज़ नॉट लाई।"
इसके बाद नरसिम्हा राव ने कथित रूप से अपने आप को एक कमरे में बंद कर लिया। शाम छह बजे राव ने अपने निवास स्थान पर मंत्रिमंडल की बैठक बुलाई।
अर्जुन सिंह अपनी आत्मकथा 'ए ग्रेन ऑफ़ सैंड इन द आर ग्लास ऑफ़ टाइम' में लिखते हैं, "पूरी बैठक के दौरान नरसिम्हा राव इतने हतप्रभ थे कि उनके मुंह से एक शब्द तक नहीं निकला। सबकी निगाहें जाफ़र शरीफ़ की तरफ मुड़ गईं, मानों उन से कह रही हों कि आप ही कुछ कहिए। जाफ़र शरीफ़ ने कहा इस घटना की देश, सरकार और कांग्रेस पार्टी को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। माखनलाल फ़ोतेदार ने उसी समय रोना शुरू कर दिया लेकिन राव बुत की तरह चुप बैठे रहे।"
इससे पहले जब बाबरी मस्जिद तोड़ी जा रही थी, उस समय के केंद्रीय मंत्री माखनलाल फ़ोतेदार ने नरसिम्हा राव को फ़ोन कर तुरंत कुछ करने का अनुरोध किया था।
माखनलाल फ़ोतेदार अपनी आत्मकथा 'द चिनार लीव्स' में लिखते हैं, "मैंने प्रधानमंत्री से अनुरोध किया कि वो वायुसेना से कहें कि वो फ़ैज़ाबाद में तैनात चेतक हैलिकॉप्टरों से अयोध्या में मौजूद कारसेवकों को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले चलवांए।
राव ने कहा, 'मैं ऐसा कैसे कर सकता हूँ?' मैंने कहा इस तरह की आपात परिस्थितियों में केंद्र सरकार के पास जो भी फ़ैसला ज़रूरी हो लेने की सारी ताकत मौजूद हैं। मैंने उनसे विनती की, 'राव साहब कम से कम एक गुंबद तो बचा लीजिए। ताकि बाद में हम उसे एक शीशे के केबिन में रख सकें और भारत के लोगों को बता सकें कि बाबरी मस्जिद को बचाने की हमने अपनी तरफ़ से पूरी कोशिश की। प्रधानमंत्री चुप रहे और लंबे ठहराव के बाद बोले, फ़ोतेदारजी मैं आपको दोबारा फ़ोन करता हूं।"
कुलदीप नय्यर ने अपनी आत्मकथा 'बियॉन्ड द लाइंस में' लिखा है, "मुझे जानकारी है कि राव की बाबरी मस्जिद विध्वंस में भूमिका थी। जब कारसेवक मस्जिद को गिरा रहे थे, तब वो अपने निवास पर पूजा में बैठे हुए थे। वो वहां से तभी उठे जब मस्जिद का आख़िरी पत्थर हटा दिया गया।"
लेकिन नरसिम्हा राव पर बहुचर्चित किताब 'हाफ़ लायन' लिखने वाले विनय सीतापति इस मामले में नरसिम्हा राव को क्लीन चिट देते हैं।
सीतापति कहते हैं, "नवंबर 1992 में दो विध्वंसों की योजना बनाई गई थी- एक थी बाबरी मस्जिद की और दूसरी खुद नरसिम्हा राव की। संघ परिवार बाबरी मस्जिद गिराना चाह रहा था और कांग्रेस में उनके प्रतिद्वंद्वी नरसिम्हा राव को। राव को पता था कि बाबरी मस्जिद गिरे या न गिरे उनके विरोधी उन्हें ज़रूर 7-आरसीआर से बाहर देखना चाहते थे। नवंबर 1992 में सीसीपीए की कम से कम पाँच बैठकें हुईं। उनमें एक भी कांग्रेस नेता ने नहीं कहा कि कल्याण सिंह को बर्ख़ास्त कर देना चाहिए।"
सीतापति आगे बताते हैं, "राव के अफ़सर उन्हें सलाह दे रहे थे कि आप किसी राज्य सरकार को तभी हटा सकते हैं जब कानून और व्यवस्था भंग हो गई हो न कि तब जब कानून और व्यवस्था भंग होने का अंदेशा हो। रही बात बाबरी मस्जिद गिरने के समय राव के पूजा करने की कहानी की तो क्या कुलदीप नय्यर वहाँ स्वयं मौजूद थे? वो कहते हैं कि उनको ये जानकारी समाजवादी नेता मधु लिमए ने दी थी जिनको ये बात प्रधानमंत्री कार्यालय में उनके एक 'सोर्स' ने बताई थी। उन्होंने इस सोर्स का नाम नहीं बताया।"
विनय सीतापति कहते हैं कि उनका शोध बताता है कि ये बात ग़लत है कि बाबरी मस्जिद गिराए जाने के समय नरसिम्हा राव सो रहे थे या पूजा कर रहे थे। नरेश चंद्रा और गृह सचिव माधव गोडबोले इस बात की पुष्टि करते हैं कि वो उनसे लगातार संपर्क में थे और एक-एक मिनट की सूचना ले रहे थे।
भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी अपनी आत्मकथा 'द टर्बूलेंट ईयर्स' में लिखते हैं, "बाबरी मस्जिद का गिरना न रोक पाना पीवी की सबसे बड़ी असफलता थी। उन्हें दूसरे दलों से बातचीत करने की ज़िम्मेदारी नारायण दत्त तिवारी जैसे और वरिष्ठ और अनुभवी नेता को सौंपनी चाहिए थी, जिन्हें उत्तर प्रदेश की राजनीति की जानकारी हो। गृह मंत्री एसबी चव्हाण एक सक्षम वार्ताकार ज़रूर थे, लेकिन वो उभर रहे हालातों के भावनात्मक पहलुओं को नहीं भांप पाए। रंगराजन कुमारमंगलम ने भी ईमानदारी से काम किया, लेकिन वो भी युवा और अपेक्षाकृत अनुभवहीन थे और पहली बार राज्यमंत्री बने थे।"