एक ऐसा इजरायली जासूस जिसको कभी सीरिया में राष्ट्रपति बनने का मिला था ऑफर, अब खुद के देश के सर्वोच्च पद पर बैंठेगे

इजरायल का नाम दुनियाभर में इन दिनों फिर चर्चा में है, 1948 में छोटे से यहूदी देश के तौर पर उभरे इस देश ने अपने अस्तित्व को लेकर पिछले 70 सालों में कई मोर्चों पर लड़ाइयां लड़ी हैं। इन लड़ाइयों ने उसे एक राष्ट्र के तौर पर बेहद मजबूत बनाया। चारों तरफ से मुस्लिम बहुल देशों से घिरे इस एक अकेले यहूदी देश ने पूरे मिडिल ईस्ट में अपना दबदबा कायम रखा है।
एक ऐसा इजरायली जासूस जिसको कभी सीरिया में राष्ट्रपति बनने का मिला था ऑफर, अब खुद के देश के सर्वोच्च पद पर बैंठेगे
(Eli Cohen) : इजरायल का नाम दुनियाभर में इन दिनों फिर चर्चा में है, 1948 में छोटे से यहूदी देश के तौर पर उभरे इस देश ने अपने अस्तित्व को लेकर पिछले 70 सालों में कई मोर्चों पर लड़ाइयां लड़ी हैं। इन लड़ाइयों ने उसे एक राष्ट्र के तौर पर बेहद मजबूत बनाया। चारों तरफ से मुस्लिम बहुल देशों से घिरे इस एक अकेले यहूदी देश ने पूरे मिडिल ईस्ट में अपना दबदबा कायम रखा है।

इजरायल के इस दबदबे और इस आत्मविश्वास के पीछे सबसे बड़ी वजह है उसकी अपनी इंटेलिजेंस एजेंसी 'मोसाद' और दुनियाभर में फैले उसके जांबाज और सरफरोश जासूस, जो देश के लिए हंसते-हंसते जान देने को तैयार रहते हैं। 

Eli Cohen के जासूस बनने की कहानी

इजरायल के इतिहास में ऐसे ही एक जासूस हुए एली कोहेन (Eli Cohen), जिन्हें 60 के दशक में दुश्मन देश सीरिया साधारण जासूसी के लिए भेजा गया था। मगर एली पर देशसेवा का ऐसा जुनून सवार था कि उन्होंने जासूसी की दुनिया में एक से एक बढ़कर एक मिसालें कायम कीं। वह सीरिया की सरकार में इस कदर घुस गए कि तत्कालीन राष्ट्रपति अमीन अल हफीज उन्हें अपना रक्षा मंत्री तक बनाने जा रहे थे। एली के रक्षा मंत्री बनने के बाद पूरी उम्मीद थी कि अमीन अल हफीज के बाद उन्हें ही देश की बागडोर भी दे दी जाएगी। मगर सारी कहानियों की हैपी एंडिंग नहीं होती है। एली के साथ भी ऐसा हुआ और वह अप्रैल 1965 में जासूसी करते रंगे हाथों पकड़ लिए जाते हैं। 18 मई 1965 की रात उन्हें दमिश्क के मरजेह स्क्वेयर पर सरेआम फांसी दे दी जाती है। सीरिया सरकार ने आज भी उनके शव को इजरायल को नहीं सौंपा है।

1949 में कोहेन के माता-पिता और तीनों भाई भी इजरायल जाकर बस गए

एली कोहेन ने जिस इजरायल के लिए अपनी जान दे दी, असल में उनका जन्म उस देश में हुआ ही नहीं था। एली का जन्म साल 1924 में पड़ोसी मुल्क मिस्र के एलेग्जेंड्रिया में एक सीरियाई-यहूदी परिवार में हुआ था। एली के पिता साल 1914 में सीरिया के एलेप्पो से यहां आकर बसे थे। साल 1948 में जब इजरायल बना तो मिस्र के कई यहूदी परिवार यहां से जाने लगे।

1949 में कोहेन के माता-पिता और तीनों भाई भी इजरायल जाकर बस गए, लेकिन इलेक्ट्रॉनिक्स की पढ़ाई कर रहे कोहेन ने मिस्र में रुककर अपना कोर्स पूरा करने का फैसला किया। यहां रुककर उन्होंने यहूदी गतिविधियों में हिस्सा लिया। हालांकि 1951 में एक सैन्य तख्तापलट के बाद एक यहूदी विरोधी अभियान शुरू हुआ और कोहेन को गिरफ्तार कर लिया गया, मगर मिस्र एली के खिलाफ कोई भी आरोप साबित नहीं कर सका। इसके बाद एली ने 1950 के दशक में इजरायल के लिए कई गुप्त अभियानों में हिस्सा लिया और 1957 में इजरायल आकर बस गए।

इजरायल आने के बाद हुई शादी, ऐसे हुआ सीरिया जाने के लिए चुनाव

इजरायल आने के दो साल बाद उनकी शादी नादिया से हो गई। साल 1960 में मोसाद में भर्ती होने से पहले उन्होंने ट्रांसलेटर और अकाउंटेंट के रूप में काम किया। मोसाद के डायरेक्टर जनरल मीर अमीत को सीरिया में घुसपैठ के लिए एक विशेष एजेंट की तलाश थी। एक दिन टेबल पर रखी रिजेक्टेड कैंडिडेट की लिस्ट में उन्हें एली कोहेन का नाम दिखा। एली का इतिहास खंगालने पर उन्हें वही सबसे फिट कैंडिडेट लगे। कोहेन को मोसाद ने छह महीने की कड़ी ट्रेनिंग दी और फील्ड एजेंट बनने के लिए रेकमेंड कर दिया।

फील्ड एजेंट के तौर पर एली का पूरा मिशन गुप्त था

फील्ड एजेंट के तौर पर एली का पूरा मिशन गुप्त रहने वाला था। अपनी पत्नी नादिया से उन्होंने बताया कि वह रक्षा मंत्रालय के फर्नीचर वगैरह खरीदने विदेश जा रहे हैं। इजरायल से निकलकर एली साल 1961 में अर्जेंटीना के ब्यूनोस ऐरेस पहुंचे, जहां उनका नया नामकरण हुआ…कामेल अमीन ताबेत..! इसके आगे अब यही नाम उनकी पहचान बन गया। प्लान के मुताबिक, यहां उन्होंने सीरियाई व्यापारियों और सीरियन एंबैसी के मिलिट्री अटैच जनरल अमीन अल हफीज से संबंध बनाए। उन्हें बताया कि कैसे सीरिया से आए उनके मां-बाप ने अर्जेंटीना में अपना बिजनस फैलाया और अब उनके देहांत के बाद वह अपने वतन सीरिया लौटना चाहते हैं और ये सारा पैसा वहां के विकास पर खर्च करना चाहते हैं। तमाम मुश्किलों से बचते-बचाते वह आखिरकार सीरिया पहुंच गए।

सीरिया में गहरी पैठ बना ली और हर खबर इजरायल भेजना शुरू कर दिया

सीरिया पहुंचते ही एली ने देखते ही देखते सीरिया में गहरी पैठ बना ली और देश की एक छोटी से छोटी खबर उन्होंने रेडियो ट्रांसमिटर के जरिए इजरायल भेजना शुरू कर दिया। एली के संबंध नेताओं से लेकर सीरियन आर्मी के बड़े अफसरों तक हो गए। साल 1963 में जनरल अमीन अल हफीज की बाथ पार्टी ने सत्ता पर कब्जा कर लिया। एली ने रातोंरात हुए इस तख्तापलट से ध्यान भटकाने के लिए अपने घर पर एक बड़ी पार्टी दी जिसमें शराब और वेश्याओं की भरमार थी। इस पार्टी में उन्होंने आर्मी के बड़े अफसरों से लेकर मंत्रियों तक को बुलाया। जब सबका ध्यान अय्याशी पर था, तब एली के 'दोस्त' अमीन अल हफीज रातोंरात राष्ट्रपति बन गए।

 सीरिया के राष्ट्रपति ने दिया था रक्षा मंत्री बनने का ऑफर

अब सीरिया में एली कोहेन की मनचाही सरकार थी। एली ने कई बड़ी साजिशों का पता लगा लिया। एली ने ही इजरायल को बताया कि कैसे सीरिया इजरायल के लिए पानी के एकमात्र स्रोत 'सी ऑफ गैलिली' में जाने वाले दो नदियों के पानी को मोड़ने का प्लान बना रहा है। इजरायल ने दक्षिणी सीरिया में चल रही इस गुप्त तैयारी को एयर स्ट्राइक कर एक झटके में ध्वस्त कर दिया।

लगातार मिल रही नाकामियों से तंग आकर सीरिया के राष्ट्रपति अमीन अल हफीज ने एली उर्फ कामेल अमीन ताबेत को सीरिया का रक्षा मंत्री बनने का ऑफर दिया। हफीज को नहीं पता था कि जिसे वह रक्षा मंत्री बनाने जा रहा है, वही उसकी सारी नाकामियों की जड़ है

सुइदानी ने पूरी फोर्स के साथ एली के घर पर धावा बोला और उन्हें रंगे हाथों पकड़ लिया

हालांकि एली रक्षा मंत्री बन पाते उससे पहले ही हफीज के रक्षा सलाहकार अहमद सुइदानी को शक हो गया कि कोई अंदर का आदमी ही है जो जासूसी कर रहा है। सुइदानी ने सोवियत की मदद से एक ट्रैकिंग डिवाइस मंगाई जिसने दमिश्क में घूम-घूमकर रेडियो ट्रांसमिशन का पता लगाना शुरू कर दिया। 2-3 दिन चले इस ऑपरेशन में आखिरकार सुइदानी को कामयाबी मिल गई। पता चला कि जिस कामेल अमीन ताबेत पर पूरा सीरिया भरोसा कर रहा था असल में वही इजरायली जासूस है।

सुइदानी ने पूरी फोर्स के साथ एली के घर पर धावा बोला और उन्हें रेडियो ट्रांसमिशन करते अप्रैल 1965 में रंगे हाथों पकड़ लिया। करीब एक महीने तक चले टॉर्चर के बाद 18 मई 1965 को दमिश्क के मरजेह स्क्वेयर पर एली को सरेआम फांसी दे दी गई। एली के शव को चौराहे पर 8 घंटे तक लटकाकर रखा गया और लोगों को उनके शव पर जूते-चप्पल बरसाने की छूट दी गई।

एली कोहेन ने सीरिया के दमिश्क में रहकर छोटी से छोटी जानकारी मोसाद को दी। सीरिया के पास कौन से हथियार हैं, वह कब कितने जवानों को कहां पर तैनात कर रहा है, घुसपैठ के लिए किन रास्तों का इस्तेमाल हो रहा है जैसी बेहद संवेदनशील जानकारियां इजरायल के पास थीं। एली कोहेन को आज भी इजरायल में एक हीरो के तौर पर याद किया जाता है। Netflix पर एली कोहेन के जीवन पर बनी वेब सीरिज The Spy इन दिनों बेहद पसंद की जा रही है।

इजरायल-सीरिया बॉर्डर पर स्थित गोलन हाइट्स स्ट्रैटिजिकली बेहद अहम जगह 

 यहां पर बनी सीरियाई सैनिकों की पोस्ट इजरायल को नहीं दिखती थीं, तो एली ने यहां अपने पैसों से यूकेलिप्टस के पेड़ लगवा दिए। उसने सीरियाई आर्मी को भरोसे में लिया कि ये पेड़ भीषण गर्मी से सीरियाई सैनिकों को बचाने के लिए लगाए जा रहे हैं। इन पेड़ों के लगने के बाद इजरायल को पता चला कि आखिर हमला कहां करना है। आज गोलन हाइट्स के दो तिहाई से ज्यादा हिस्से पर इजरायल का कब्जा है।

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