सुप्रीम कोर्ट ने लगातार आधारहीन याचिकाएं दायर करने के लिए एनजीओ को अवमानना का दोषी ठहराया है। 2017 में एनजीओ सूराज इंडिया ट्रस्ट और उसके अध्यक्ष राजीव दहिया पर 25 लाख रुपये का हर्जाना लगाया गया था। यह हर्जाना ऐसी याचिकाओं के ज़रिए कोर्ट का समय बर्बाद करने के लिए लगाया गया था। दहिया ने अब तक यह भुगतान नहीं किया है। इसके बजाय वह अलग-अलग अर्जी दाखिल कर कोर्ट पर ही आरोप लगाते रहे।
1 मई 2017 को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जे एस खेहर की
अध्यक्षता वाली 3-न्यायाधीशों की पीठ ने एनजीओ और उसके
संचालक पर लगातार जनहित याचिकाएं करने के लिए 25 लाख का
जुर्माना लगाया था। अदालत ने एनजीओ की ओर से कोई नई
याचिका दायर करने पर भी रोक लगा दी थी।
एनजीओ सूराज इंडिया ट्रस्ट और उसके अध्यक्ष राजीव दहिया ने 10 साल में
सुप्रीम कोर्ट और अलग-अलग हाई कोर्ट में 64 जनहित याचिकाएं दाखिल की थीं।
इनमें से ज्यादातर असफल मामले थे। कई मामलों में वह हाजिर भी नहीं हुए।
सुप्रीम कोर्ट ने समय बर्बाद करने के लिए एनजीओ को दंडित किया था।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के 4 साल से अधिक समय बीत जाने के बाद भी, राजीव दहिया ने अभी तक हर्जाने का भुगतान नहीं किया है। उन्होंने कई बार कोर्ट में अर्जी दी। जुर्माना माफ करने की मांग की। इस दौरान उन्होंने जजों और यहां तक कि कोर्ट स्टाफ पर भी सवाल उठाए। यहां तक कहा कि वह सजा माफ कराने के लिए राष्ट्रपति के पास जाएंगे। अदालत ने दहिया को अवमानना नोटिस जारी किया था।
आज सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय किशन कौल और एम एम सुंदरेश की बेंच ने दहिया द्वारा दी गई माफीनामे को असंतोषजनक करार दिया। न्यायाधीशों ने कहा, "अवमानना के मामले में अदालत के आदेश को किसी भी सरकारी आदेश से खारिज नहीं किया जा सकता है। अवमानना के दोषी की कोशिश थी कि वह सब पर कीचड़ उछाल कर उन्हें डराए. लेकिन कोर्ट पीछे नहीं हटेगा. हम आज सज़ा का ऐलान नहीं कर रहे हैं. इस पर 7 अक्टूबर को सुनवाई होगी." कोर्ट ने हर्जाने की रकम की वसूली एनजीओ और राजीव दहिया की संपत्ति से करने का भी आदेश दिया है.