अर्श से फर्श तक; जिस सुशील ने दुनिया में भारत का नाम बनाया था उसी ने देश को किया शर्मसार

सुशील कुमार को भारतीय कुश्ती इतिहास का सबसे महान पहलवान कहा जा सकता है। उनके नाम दो ओलंपिक पदक हैं। जो किसी और भारतीय पहलवान के पास नहीं है। इसके अलावा उनके नाम कॉमनवेल्थ गेम्स, एशियन गेम्स और वर्ल्ड रेसलिंग में भी मेडल हैं। कुल मिलाकर सुशील के पास नाम, सम्मान, दौलत और शोहरत से लेकर सब कुछ था। लेकिन अब वह पुलिस हिरासत में है।
अर्श से फर्श तक; जिस सुशील ने दुनिया में भारत का नाम बनाया था उसी ने देश को किया शर्मसार

डेस्क न्यूज़: महाबली सतपाल हमेशा कहा करते थे कि उनका एक ही सपना है… भारत को ओलंपिक में कुश्ती पदक दिलाना। पहलवान योगेश्वर दत्त और सुशील कुमार उनकी दो ऐसी ताकत थीं जिनके माध्यम से उन्हें अपने सपने को साकार करने का भरोसा था। योगेश्वर जब चोटिल होने लगे तो उम्मीदों का बोझ सुशील के कंधों पर आ गया। 2008 में पेइचिंग ओलिंपिक के दौरान सुशील पहले दौर में यूक्रेन के एंड्री स्टैडनिक से हार गए थे। एकबारगी कोच सतपाल समेत भारतीय कुश्ती जगत मायूस हो गया। जब स्टैडनिक फाइनल में पहुंचे तो सुशील को रेपेचेज राउंड खेलने का मौका मिला, उन्होंने कांस्य पदक जीता। 1952 में खाशाबा दादा साहब जाधव के बाद भारतीय कुश्ती के इतिहास में यह दूसरा पदक था।

2010 में सुशील ने वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड जीता

कभी माटी में खेले जाने वाले सुशील की कुश्ती ने देश में जबरदस्त छलांग लगाई। ग्रामीणों का खेल माने जाने वाली कुश्ती में ग्लैमर का तड़का लग गया। सुशील खेल के ब्रांड एंबेसडर बने। लोग अपने बच्चों को पहलवान बनाने की पहल करने लगे। सुनसान अखाड़ों में कतारें लगने लगीं। सुशील खुद एक बड़े स्टार बन गए थे। 2010 वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड जीतकर सुशील का कद भारतीय कुश्ती में और बढ़ गया। वह विश्व चैंपियन बनने वाले पहले और एकमात्र भारतीय थे। सुशील पर लगातार इनाम और इकराम की बारिश होने लगी थी। रकारों से लेकर कॉरपोरेट जगत उन्हें हाथों हाथ ले रहे थे।

सुशील ने गुरु की बेटी से की शादी

नजफगढ़ के बापरोला निवासी सुशील के पिता दीवान सिंह एमटीएनएल में ड्राइवर थे। 1983 में जन्मे सुशील ने महज 14 साल की उम्र में कुश्ती को अपना लिया था। सुशील ने अक्टूबर 2010 में दिल्ली में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीता था। अचानक यह घोषणा की जाती है कि सुशील गुरु सतपाल की बेटी सावी से शादी करने जा रहा है। सगाई नवंबर 2010 में हुई और उन्होंने फरवरी 2011 में बाहरी दिल्ली के एक फार्म हाउस में शादी कर ली। एक पत्रकार ने उस समय सतपाल से कहा था कि तुम थोडी जल्दी करते, लंदन ओलंपिक का इंतजार करते, क्योंकि सुशील गोल्ड मैडल ला सकता था। लेकिन आप शादी में शामिल हो गए और इस बंधन ने आपको उलझा दिया।

छत्रसाल अखाड़े पर पड़ने लगा काळा बादलों का साया

उस समय महाबली मुस्कुराए, लेकिन कुछ नहीं कहा। जब सुशील लंदन ओलंपिक में गए तो उन्होंने सिल्वर पदक जीता और भारतीय कुश्ती का परचम लहरा दिया। जब गुरु सतपाल को दिल्ली से फ़ोन किया तो उन्होंने साफ कह दिया था कि अगर आज मेडल नहीं आया होता तो मैं तुम्हारा अपराधी होता। आपको एक बात बता दूं कि इस मेडल के लिए मैंने अपनी बेटी को काफी देर तक सुशील से दूर रखा। महाबली बहुत खुश हुए, योगेश्वर दत्त ने उसी ओलंपिक में रेपचेज के जरिए कांस्य पदक जीता था और सतपाल और छत्रसाल स्टेडियम को गौरवान्वित किया था। लेकिन इस ओलिंपिक से छत्रसाल अखाड़े पर काली छाया भी पड़ गई।

लंदन में खिंची लकीर

लंदन ओलंपिक की कोचिंग टीम में दिवंगत हो चुके छत्रसाल स्टेडियम के यशवीर डबास भी वहां मौजूद थे। वह योगेश्वर और सुशील की खूबियों और कमियों से परिचित थे, इसलिए उन्हें कोचिंग टीम का हिस्सा बनाया गया। जब सुशील 2010 में विश्व चैंपियन बने, तो यशवीर को विश्व कुश्ती संगठन फिला द्वारा सर्वश्रेष्ठ कोच के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। लंदन में जब सुशील और योगेश्वर पदक के करीब पहुंचे तो यशवीर को उनके मुकाबले से हटा दिया गया। भारतीय कुश्ती महासंघ के तत्कालीन सचिव राज सिंह ने खुद कोच की भूमिका संभाली थी। छत्रसाल की झोली में दो मेडल थे, लेकिन कोच यशवीर की आंखों में अपमान के आंसू थे।

छत्रसाल अखाड़ा बना देश का सबसे ताकतवर अखाड़ा

सतपाल का सपना पूरा हुआ। एशियाड 1982 के स्वर्ण पदक विजेता ने कहा कि उनका लक्ष्य ओलंपिक पदक जीतकर अपने गुरु हनुमान को श्रद्धांजलि देना था। रोशनारा पार्क क्षेत्र के बिड़ला जिमनैजियम से देश को कई दिग्गज पहलवान देने वाले गुरु हनुमान के मन में भी यही कसक थी कि उनका कोई भी पट्ठा ओलंपिक पदक नहीं ला सका। सतपाल ने गुरु के उसी भाग्य को मिटाने के लिए छत्रसाल में कुश्ती का कौशल विकसित किया था। यह देश का एकमात्र अखाड़ा है जिसे एक ओलंपिक रजत और दो कांस्य पदक जीतने का गौरव प्राप्त है। वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड भी देश के इसी अखाड़े के नाम है।

सुशील को सौंपी सल्तनत

सुशील के दोहरे ओलंपिक पदक और योगेश्वर के कांस्य पदक ने न केवल छत्रसाल स्टेडियम की भारतीय कुश्ती जीती बल्कि देश पर भी अपना दबदबा कायम रखा। लेकिन महाबली सतपाल का जोड़ा हुआ कुल बिखरने लगा। यशवीर पहले छत्रसाल से अलग हुए थे। सतपाल 2015 में सेवानिवृत्त हुए तो अपने दबदबे के बल पर उन्होंने सुशील को रेलवे से प्रतिनियुक्ति पर लाकर अपनी कुर्सी पर बिठा दिया। सुशील का कद काफी बढ़ गया था। कभी-कभी वह योगेश्वर के पैर छूना सम्मान समझते थे। संबंध तनावपूर्ण थे। जब द्रोणाचार्य पुरस्कार विजेता कोच रामफल से नाखुश थे, योगेश्वर और रामफल दोनों ने छत्रसाल को छोड़ दिया। कोच वीरेंद्र मान भी चलते बने।

सुशील की गलत संगत सब कुछ तबाह कर दिया

जानकार बताते हैं कि बचपन के कोच और आदर्श रहे गुरु भाई अलग हुए तो सुशील की संगत गलत लोगों से हो गई। वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गैंगस्टर सुंदर भाटी, दिल्ली-हरियाणा के गैंगस्टर्स नीरज बवानिया, मकोका में बंद उसका मामा पूर्व विधायक रामबीर शौकीन, दिवंगत हो चुका राजीव उर्फ काला असौदा, संदीप उर्फ काला जठेड़ी के साथ जुड़ने लगा। सुशील राह भटक गए। अब लॉरेंस बिश्नोई गैंग की कमान संभाल रहा काला जठेड़ी अपने करीबी जयभगवान उर्फ सोनू महाल के अपमान का बदला लेने के लिए सुशील के पीछे पड़ा है। भारतीय इतिहास के जिस सर्वश्रेष्ठ पहलवान का रेसलिंग डे 23 मई के दिन सम्मान होना चाहिए था, वह पुलिस कस्टडी में मुंह छुपाए घूम रहा है। इसलिए यह भारतीय कुश्ती का काला दिन है…!

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