डेस्क न्यूज़- केंद्र सरकार आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 की जगह कृषि अधिनियम (Bill-2020) लेकर आई है, इसके खिलाफ देशभर में किसानों का प्रदर्शन जारी है, एक तरफ सरकार नए कानून को खत्म करने को तैयार नहीं है तो दूसरी तरफ जमाखोरी रोकने के लिए पुराने कानून का सहारा ले रही है, देश भर में सबसे अधिक मामले 1955-अधिनियम के तहत उत्तर प्रदेश राज्य में दर्ज किए गए हैं।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी)-2020 की रिपोर्ट में कहा गया है कि पुराने कृषि कानून के तहत देश के 32 राज्यों में एक साल में 6244 मामले दर्ज किए गए, इसमें सबसे ज्यादा 1705 मामले यूपी में दर्ज किए गए, दूसरे नंबर पर बिहार में 699 और फिर तीसरे नंबर पर महाराष्ट्र में 524 मामले दर्ज किए गए, इसके अलावा जम्मू-कश्मीर में 391, आंध्र प्रदेश में 357, असम में 108, छत्तीसगढ़ में 34, गुजरात में 130, हरियाणा में 132, हिमाचल प्रदेश में 18, झारखंड में 123, कर्नाटक में 478, केरल में 45, मध्य प्रदेश में 285, राजस्थान में 326, ओडिशा में 46, तमिलनाडु में 195, तेलंगाना में 248 और पश्चिम बंगाल में 225 मामले दर्ज किए गए।
इस कानून के तहत केंद्र सरकार राज्य सरकारों के माध्यम से वस्तुओं की आठ श्रेणियों को नियंत्रित करती है, इसमें दवाएं, उर्वरक, खाद्य तिलहन और तेल लेख, सूती धागे, पेट्रोलियम और उसके उत्पाद, कच्चे जूट और जूट के वस्त्र, खाद्य फसलों के बीज, फेस मास्क और हैंड सैनिटाइज़र शामिल हैं, इन वस्तुओं के स्टॉक की एक सीमा है।
अधिनियम-2020 को अधिनियम-1955 में संशोधन कर लागू किया गया है, इस संशोधन में अनाज, दालें, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू को धारा 3(1) के दायरे से बाहर रखा गया है, यानी अब सरकार आपदा, युद्ध जैसी स्थितियों में ही इन चीजों पर नियंत्रण कर पाएगी।
किसान विरोध पर वर्ष 2020 में 13 राज्यों में आईपीसी की धारा-147,151 (धारा-144 का उल्लंघन और शांति भंग) के तहत 2188 मामले दर्ज किए गए हैं, इनमें से बिहार में 1286, महाराष्ट्र में 279, उत्तर प्रदेश में 142, कर्नाटक में 148, झारखंड में 83, गुजरात में 80, हरियाणा में 34 मामले दर्ज किए गए हैं, 26 जनवरी 2021 को दिल्ली में ट्रैक्टर परेड हिंसा में 50 से अधिक मामले दर्ज किए गए थे, लेकिन यह मामला 2021 का है, इसलिए एनसीआरबी की रिपोर्ट में इसका उल्लेख नहीं है।