कोरोना की ये लहर भी बीत जाएगी लेकिन लाखों लोगों की जिंदगी शायद पहले जैसी नहीं हो पाएगी…

कोरोना इससे हर कोई परेशान है। इस शब्द के कान में जाते ही मानो दुख का अहसास खुद ब खुद होने लगता है। कोरोना की ये लहर भी बीत जाएगी लेकिन लाखों लोगों की जिंदगी शायद पहले जैसी नहीं हो पाएगी
कोरोना की ये लहर भी बीत जाएगी लेकिन लाखों लोगों की जिंदगी शायद पहले जैसी नहीं हो पाएगी…

कोरोना की ये लहर भी बीत जाएगी लेकिन लाखों लोगों की जिंदगी शायद पहले जैसी नहीं हो पाएगी… : कोरोना इससे हर कोई परेशान है। इस शब्द के कान में जाते ही मानो दुख का अहसास खुद ब खुद होने लगता है।

कोरोना की ये लहर भी बीत जाएगी लेकिन लाखों लोगों की जिंदगी शायद पहले जैसी नहीं हो पाएगी।

अपनों को खोने की पीड़ा को समझा जा सकता है लेकिन महामारी ने परिवारों को ऐसे तोड़ा है जिसकी शायद ही उन्होंने कभी कल्पना की हो।

मनोवैज्ञानिक तक भी इस बात को कहने लगे हैं कि इस महामारी का दुख कुछ अलग ही है। 

मनोवैज्ञानिक आरती सी राजरत्नम अपनी जिंदगी का दर्द बयां करती….

कोरोना की ये लहर भी बीत जाएगी लेकिन लाखों लोगों की जिंदगी शायद पहले जैसी नहीं हो पाएगी… :

कोरोना की पहली लहर से दूसरी लहर आ गई और कई लोगों की इससे जान चली गई। ये लहर शोक की लहर बन गई।

आरती सी राजरत्नम अपने पिता को काफी साल पहले ही खो चुकी हैं।

कुछ हफ्ते पहले जब उनको कोरोना हुआ तो वो पुरानी बातों को याद करने लगी।

मैं घर पर अकेली हूं बीमारी के वक्त पिता को और अधिक याद करने लगी।

राजरत्नम का कहना था कि मैं एक बार फिर से उसी दुख को महसूस कर रही हूं जो वर्षों पहले हुआ।

मनोवैज्ञानिक का कहना है कि किसी अपने को खोने का नुकसान सिर्फ एक नुकसान नहीं।

इससे जुड़ी कई और चीजें भी है।

आर्थिक नुकसान समेत कई और दूसरी चीजें भी हैं।

कोरोना इम महामारी में कुछ लोग खुद को ही दोषी मानने लगे हैं

कोरोना की वजह से किसी की जान चली गई तो कुछ ऐसे लोग भी हैं

उस परिवार के जिनको लगता है कि वो समय पर जरूरी हेल्थ सेवाएं नहीं दिला पाए।

समय पर उनका इलाज नहीं करा सके।

वहीं कुछ लोग इस दुख में है कि जब किसी उनके अपने ने दम तोड़ा तो ऐसी मुश्किल घड़ी में भी वो उनके साथ नहीं थे।

कोरोना के कारण होने वाली मौतों से लोगों का दुख कहीं अधिक है

जनवरी में एक जर्नल में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई जिसमें यह कहा गया कि कोरोना के कारण होने वाली मौतों से लोगों का दुख कहीं अधिक है।

दुनिया भर में यह बीमारी एक चिंता का विषय बन गई है।

कोरोना के कारण अचानक से ऐसे लोगों की मौत हो गई जिनकी सेहत ठीक थी और कोई ऐसा सोच भी नहीं सकता था।

अचानक बिना किसी बीमारी के कोरोना की वजह से जान चली जाए इससे लोगों का दुख और भी अधिक बढ़ जा रहा है।

कोई अपना साथ रह रहा हो और मरने के बाद उसे देख न पाए, ऐसे लोगों का दुख और भी बढ़ गया है

उन्होंने कभी नहीं सोचा कि दोबारा कभी देख ही नहीं पाएंगे।

कोरोना महामारी के इस दौर में कई लोग अपने चाहने वाले को अंतिम वक्त में भी देख नहीं पाए।

यह ऐसा दुख है जो उनके साथ लंबे समय तक रहेगा।

मनोचिकित्सक सरस भास्कर का कहना है कि कई परिवार ऐसा सामना कर रहे हैं।

उन्हें दुख है, गुस्सा है। यह उनकी बेचैनी को और बढ़ा रहा है।

कोरोना से अचानक से होने वाली मौत से परिवारों पर गहरा असर पड़ रहा है

मनोचिकित्सक डॉ. एन रंगराजन का कहना है कि कोरोना से अचानक से होने वाली मौत से परिवारों पर गहरा असर पड़ रहा है।

इस महामारी में लोग असहाय नजर आ रहे हैं।

किसी के परिवार में कोई बीमार पड़ रहा है तो उसे इस बात का डर सताने लग रहा है कि उसे इलाज नहीं मिल पाएगा।

कहीं ऑक्सिजन, बेड न मिला तो कोई अनहोनी न हो जाए।

पहले कोई यदि किसी बीमारी से भले न बच पाया हो लेकिन परिवारवालों को इस बात का संतोष रहता था कि उसे बेहतर इलाज दिला सके।

इस बार लेकिन उसे इस बात का दुख हमेशा रहेगा कि इलाज ही न मिल सका।

परिवार अपने किसी को खोने के गम में तो हैं ही वो अपने भविष्य को लेकर भी परेशान हैं।

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