दो बहनों ने 5 साल पहले घर से शुरु की हैंडीक्राफ्ट साड़ियों की मार्केटिंग, अब सालाना 60 लाख रुपए हैं टर्नओवर

नोएडा की दो बहनों ने 5 साल पहले स्टार्टअप शुरू किया था। जिसके माध्यम से वे अपने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से देश भर के विभिन्न राज्यों के स्थानीय बुनकरों द्वारा बनाई गई साड़ी और कपड़े बेचते हैं। विदेशों में भी इनके उत्पादों की अच्छी मांग है। इससे वह सालाना 60 लाख रुपये का कारोबार कर रही हैं।
Photo | Dainik Bhaskar
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डेस्क न्यू़ज़- भारत हमेशा से पारंपरिक कला का केंद्र रहा है। यहां की हर जगह की अपनी खासियत है। खासकर कपड़ों को लेकर। हमारे बुनकरों की हाथ से बनी साड़ियां और कपड़े विदेशों में भी मांग में हैं। कई लोग अलग-अलग राज्यों से खास ड्रेस का कलेक्शन रखते हैं, लेकिन दिक्कत उनकी उपलब्धता को लेकर है। कई बार खोजने के बाद भी हमें अपनी पसंद के कपड़े नहीं मिल रहे हैं। मिलते भी हैं तो उनके मन में उनकी गुणवत्ता को लेकर संशय बना रहता है।

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दो बहनों ने शुरु किया स्टार्टअप

इसी समस्या को दूर करने के लिए नोएडा की रहने वाली दो बहनों ने 5 साल पहले स्टार्टअप शुरू किया था। जिसके माध्यम से वे अपने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से देश भर के विभिन्न राज्यों के स्थानीय बुनकरों द्वारा बनाई गई साड़ी और कपड़े बेचते हैं। विदेशों में भी इनके उत्पादों की अच्छी मांग है। इससे वह सालाना 60 लाख रुपये का कारोबार कर रही हैं। 41 साल की इप्सिता और 44 साल की विनीता दोनों इंजीनियरिंग ग्रेजुएट हैं। दोनों ने 12 साल से अधिक समय तक कॉर्पोरेट जॉब की है।

नौकरी छोड़ शुरु किया कारोबार

इप्सिता का कहना है कि लंबे समय तक कॉरपोरेट जॉब करने के बाद मैंने खुद का कुछ शुरू करने का फैसला किया। इसके बाद 2012 में मैंने बैंगलोर में बिजनेस शुरू किया। जिसमें हम इंजीनियरिंग के छात्रों को प्रैक्टिकल और प्रोफेशनल ट्रेनिंग देते थे, ताकि वे नौकरी के लिए फिट हो सकें। इसने अच्छा काम किया। इससे कई छात्रों को नौकरी भी मिली, लेकिन दो साल बाद मेरे पति की पोस्टिंग नोएडा में हो गई। उसके बाद मैं भी उनके साथ नोएडा शिफ्ट हो गई।

नोयडा में अर्निंग के लिए शुरु कीया साडियों का काम

इप्सिता कहती हैं कि नोएडा शिफ्ट होने के बाद मुझे अर्निंग के लिए कुछ करना था। मैं कॉरपोरेट सेक्टर में वापस नहीं जाना चाहती थी। इसलिए मैं अपना कुछ शुरू करना चाहती थी। मेंरी कला में रुचि थी, और साड़ियों का शौक था। इसलिए वह अलग-अलग राज्यों के स्पेशल कलेक्शन अपने पास रखती थीं। मेरे दोस्तों को भी वो साड़ियाँ बहुत पसंद थीं। इसलिए तय किया गया कि कुछ ऐसा काम शुरू किया जाए जिससे पूरे भारत से खास साड़ियों का कलेक्शन लोगों को एक ही प्लेटफॉर्म से मिल सके।

कैसे करती है, मार्केटिंग?

साल 2016 में इप्सिता भारत के कई शहरों में गई थी। वहां के स्थानीय बुनकरों से मुलाकात की। उनका काम देखा और साड़ियों की बनावट को समझा। इसके बाद वह कुछ सैंपल अपने साथ नोएडा ले आई। यहां उन्होंने खुद कुछ दिनों तक इनका इस्तेमाल किया। रिस्पांस अच्छा रहा तो इसकी मार्केटिंग की प्लानिंग शुरू कर दी। इप्सिता का कहना है कि हमने अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ शुरुआत की। उन्हें हमारा उत्पाद पसंद आया, तो उन्होंने इसे अपने परिचितों के साथ साझा किया। इस तरह एक से दो, दो से तीन करके ग्राहकों का नेटवर्क बना लिया। हमने सोशल मीडिया के जरिए लोगों तक उत्पाद पहुंचाना शुरू किया। हमने कुछ प्रदर्शनियों में भी भाग लिया। उसके बाद हमें विदेशों से भी ऑर्डर मिलने लगे। उन्होंने अपनी कंपनी का नाम 6yardsandmore रखा।

कंपनी शुरु करने का बाद जुडी बहन

बाद में उनकी बहन विनीता भी इसमें शामिल हुईं। वह कहती हैं कि हमारे पास कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक की साड़ियों का कलेक्शन है। इसके अलावा सूट, दुपट्टे और हस्तनिर्मित उत्पाद भी शामिल हैं। ये सभी स्थानीय कारीगरों द्वारा हाथ से बनाए गए हैं। आमतौर पर एक अच्छी साड़ी की रेंज 2 हजार से 10 हजार रुपये तक होती है। अगर किसी को ज्यादा महंगा कलेक्शन लेना है तो हमारे पास 50 हजार रुपये तक की साड़ियां हैं।

क्या है बिजनेस मॉडल?

इप्सिता और उनकी बहन विनीता मिलकर यह काम संभालती हैं। जरूरत पड़ने पर वे कुछ इंटर्न भी हायर करते हैं। इसिप्टा का कहना है कि हम अलग-अलग वैरायटी का कलेक्शन अपने पास रखते हैं। हम इन्हें अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पोस्ट करते हैं। उसके बाद, जिस उत्पाद के लिए ऑर्डर प्राप्त होता है, हम उसे तैयार करने वाले कारीगर को सूचित करते हैं। वह इसे तैयार करता है और हमें भेजता है। फिर गुणवत्ता परीक्षण के बाद, हम इसे ग्राहक के पते पर भेजते हैं। हम किसी भी उत्पाद को पहले से स्टोर नहीं करना चाहते हैं।

40 बुनकरों के समूह के साथ कीया हैं करार

इप्सिता ने देश भर में लगभग 40 बुनकरों के समूह के साथ करार किया है। प्रत्येक समूह में 5 से 7 कारीगर होते हैं। कोई बीच का आदमी नहीं। वे उन कारीगरों को कपड़े बनाने और उस उत्पाद के लिए भुगतान करने के लिए कहते हैं। इससे उन्हें अच्छी आमदनी भी होती है। वह बताती हैं कि आए दिन हमें कोई न कोई ऑर्डर मिलता रहता है। त्योहारों के दौरान और दिसंबर के महीने में हमारी बिक्री अधिक होती है। फिर हमें और ऑर्डर मिलने लगते हैं। इप्सिता ने देश के कई शहरों और संस्थानों में हथकरघा क्षेत्र को लेकर भाषण दिए हैं। फिलहाल वे IIM संबलपुर में हैंडलूम सेक्टर के लिए मेन्टॉर की भूमिका भी निभा रही हैं।

आप कैसे कर सकते हैं यह काम?

भारत में पारंपरिक कला के क्षेत्र में काफी गुंजाइश है। बड़े शहरों में भी स्थानीय कारीगरों द्वारा बनाए गए उत्पादों की काफी मांग है। सबसे पहले बुनकरों से मिलें, उनके काम को समझें। उत्पाद की कीमत को समझें और यह भी पता करें कि बाजार में उस उत्पाद की कीमत कितनी है। अगर आप ग्राहकों को वही प्रोडक्ट कम कीमत में उपलब्ध कराते हैं तो लोग आपको बेहतर रिस्पोंस देंगे।

अगर आपका बजट कम है तो आप छोटे स्तर से शुरुआत करें। कुछ बुनकरों को अपने साथ जोड़ें, उनके उत्पादों के वीडियो और फोटो सोशल मीडिया पर अपलोड करें, उन्हें अपने रिश्तेदारों को भेजें। आपको प्रतिक्रिया अवश्य मिलेगी। ऑर्डर मिलने के बाद आप उस बुनकर से प्रोडक्ट कलेक्ट करते हैं और अपने कस्टमर को भेजते हैं। आप चाहें तो इसे अपने रिश्तेदारों और बड़ी-बड़ी हस्तियों को भी तोहफे के तौर पर भेज सकते हैं। इससे आपकी ब्रांडिंग फ्री में हो जाएगी। जैसे-जैसे ऑर्डर और मांग बढ़ती है, आप अपनी पहुंच का विस्तार कर सकते हैं और अन्य बुनकरों को भी जोड़ सकते हैं। सोशल मीडिया पर सशुल्क विज्ञापन चलाएं, लगातार पोस्ट करते रहें।

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