अमेरिका ने 82 मिलियन डॉलर (करीब 6 अरब 9 करोड़ 20 लाख 87 हजार 500 रु.) की एंटी शिप हारपून मिसाइल डील को मंजूरी दे दी है। इस मिसाइल्स के साथ भारत को इससे जुड़े कई दूसरे उपकरण भी दिए जाएंगे। भारत सरकार ने अमेरिका से हारपून मिसाइल खरीदने की इच्छा जाहिर की थी। बाइडेन प्रशासन ने आदेश में कहा कि इस डील से इंडो-पैसिफिक रीजन में उनके बड़े डिफेंस पार्टनर को अपनी सुरक्षा करने में मदद मिलेगी। दोनों देशों के संबंधों को मजबूती मिलेगी।
पेंटागन की डिफेंस सिक्योरिटी कॉर्पोरेशन एजेंसी (DSCA) ने सोमवार को अमेरिकी कांग्रेस का अनुमति लेटर जारी किया।
इसमें मिसाइल के मेंटेनेंस के लिए एक सर्विस स्टेशन खोलने, स्पेयर पार्ट्स और सपोर्ट देने और टेक्निकल डॉक्यूमेंट के अलावा पर्सनल ट्रेनिंग भी शामिल है।
इसके अलावा इंजीनियरिंग और लॉजिस्टिक सपोर्ट भी दिया जाएगा। इस डील को अमेरिका की साउथ एशिया में दबदबा बढ़ाने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका दौरे के समय 2016 में US ने भारत को अपना बड़ा डिफेंस पार्टनर घोषित किया था। जिस देश को अमेरिका ये टैग देता है, उसके साथ अमेरिकी टेक्नोलॉजी आसानी से शेयर की जा सकती है। डील के डॉक्यूमेंट में कहा गया है कि इस डील से भारत को वर्तमान और भविष्य में आने वाले खतरों से निपटने में मदद मिलेगी।
पेंटागन की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि इस मिसाइल को अपनी आर्मी में शामिल करने में भारत को कोई दिक्कत नहीं होगी। डील अमेरिकी कंपनी बोइंग और भारत सरकार के बीच होगी। फिलहाल तक इसमें किसी ऑफसेट एंग्रीमेंट की बात सामने नहीं आई है। भारत सरकार नेगोशिएशंस (मोल-भाव) में इसका जिक्र कर सकती है।
हारपून को दुनिया की सबसे सफल एंटी शिप मिसाइल माना जाता है। इसे 30 देशों की सेना इस्तेमाल कर रही है। इसे सबसे पहले 1977 में डिप्लॉय किया गया था। किसी भी मौसम में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। बोइंग के मुताबिक इसमें एक्टिव रडार गाइडेंस सिस्टम लगा हुआ है।