WHO ने माना, कोरोना हवा से फैल सकता है, गाइडलाइन में कहा – एयरोसोल के जरिए दूर तक जा सकते हैं वायरस

कोरोना को महामारी घोषित किए जाने के लगभग एक साल बाद, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने आखिरकार माना कि कोरोना वायरस हवा में फैल सकता है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार "वायरस खराब वेंटिलेशन या भीड़ भरे बंद स्थानों पर भी फैल सकता है जहां लोग लंबे समय तक रहते हैं, क्योंकि एरोसोल हवा में एक मीटर से अधिक यात्रा कर सकता है।
WHO ने माना, कोरोना हवा से फैल सकता है, गाइडलाइन में कहा – एयरोसोल के जरिए दूर तक जा सकते हैं वायरस
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डेस्क न्यूज़- कोरोना को महामारी घोषित किए जाने के लगभग एक साल बाद, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने आखिरकार माना कि कोरोना वायरस हवा में फैल सकता है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार "वायरस खराब वेंटिलेशन या भीड़ भरे बंद स्थानों पर भी फैल सकता है जहां लोग लंबे समय तक रहते हैं, क्योंकि एरोसोल हवा में एक मीटर से अधिक यात्रा कर सकता है।" दरअसल, WHO ने कोरोना से जुड़े सवालों के जवाब अपडेट किए हैं। वे इस सवाल का जवाब भी शामिल करते हैं कि कोरोना लोगों में कैसे फैलता है? माना जा रहा है कि इसके बाद कोरोना से बचने के नए दिशा-निर्देश सामने आ सकते हैं। संगठन अब तक कहता आया था इसके पर्याप्त सबूत नहीं है कि कोरोना हवा के माध्यम से फैलता है।

कोरोना कैसे फैलता है? इसको लेकर वैज्ञानिकों में मतभेद

दरअसल, ड्रॉपलेट और एयरोसोल को लेकर

वैज्ञानिकों के बीच मतभेद है। अब तक, अधिकांश

वैज्ञानिकों का मानना था कि छींकने, खांसने, गाने या

बोलने के दौरान किसी व्यक्ति की नाक या मुंह से निकलने वाली छींट या बूंदें ड्रापलेट होती हैं। उनका आकार 5  माइक्रोमीटर से अधिक होता है। उनमें कोरोना वायरस होने के बावजूद, वह अपने वजन के कारण दो मीटर से अधिक  दूर नहीं जा पाते है। गुरुत्वाकर्षण के कारण नीचे गीर जाते हैं। अर्थात्, कोरोना हवा के माध्यम से नहीं फैलता है। एक  माइक्रोमीटर एक मीटर का दस लाखवाँ हिस्सा है। वहीं, विशेषज्ञों के एक अन्य समूह का कहना है कि मुंह और नाक से निकलने वाले छींटों का आकार 5 माइक्रोमीटर से कम हो सकता है और वे हवा के साथ दूर जा सकते हैं। यानी कोरोना वायरस हवा में भी फैल सकता है।

WHO कहा था, हवा से कोरोना फैलने के सबूत नहीं

कोरोना के प्रकोप के शुरुआती महीनों में, डब्ल्यूएचओ ने सभी को मास्क पहनने की बजाय केवल संक्रमित को मास्क पहनने की सलाह दी। जुलाई 2020 में, स्वतंत्र स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने कहा कि कोरोना वायरस हवा के माध्यम से भी फैलता है। उन्होंने डब्ल्यूएचओ से कहा कि वह कोरोना को हवा से फैलने वाली महामारी घोषित करे। WHO ने तब कहा था कि कोरोना वायरस के हवा से फैलने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है, लेकिन संगठन ने जल्द ही कहा कि इस बात के कोई सबूत नहीं हैं। जुलाई 2020 के दिशानिर्देश में, WHO का कहना था कि कोरोना किसी संक्रमित से संपर्क में आने, उसके मुंह या नाक से निकलने वाले ड्रॉपलेट्स यानी वायरस युक्त बूंदों और फोमिटीज यानी कपड़े, बर्तन, फर्नीचर आदि पर मौजूद वायरस से फैलता है।

वैज्ञानिकों ने सबुतों के साथ दावा किया कि कोरोना हवा से फैलता हैं

कोरोना के प्रकोप के बारे में बहस ने इस साल अप्रैल में एक बड़ा मोड़ लिया, जब वैज्ञानिकों के एक समूह ने मशहूर मेडिकल जर्नल द लैंसेट में 10 सबूत के साथ दावा किया कि कोरोना वायरस हवा से भी फैलता है।

वहीं, अमेरिका में MIT यानी मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के अध्ययन में दावा किया गया है कि 6 फीट के सोशल डिस्टेंसिंग नियम का कोई मतलब नहीं है। पर्याप्त सबूत हैं कि छींकते या खांसते समय मुंह या नाक से निकलने वाली बूंदें इतनी छोटी होती हैं कि वे एरोसोल बन जाती हैं। वे सुपर-स्प्रेडर के रूप में कार्य करते हैं, विशेष रूप से बंद स्थानों में। अनुसंधान ने अमेरिका, चीन और कोरिया में कोरोना के प्रकोप की कई घटनाओं का उल्लेख किया।

वैज्ञानिकों ने द लांसेट में प्रस्तुत किए प्रमाण

1. मानव व्यवहार का विश्लेषण, बातचीत का तरीका, कमरों का आकार, वेंटिलेशन और अन्य चीजें दर्शाती हैं कि कोरोना केवल ड्रॉपलेट्स और फोमिटीज यानी कपड़े, बर्तन, फर्नीचर, आदि पर मौजूद वायरस के कारण इतनी तेजी से नहीं फैल सकता है।

2. क्वारैंटाइन होटल से बहुत सारे रिकॉर्ड मिले हैं कि आस-पास के कमरों में रहने वाले लोग एक-दूसरे से मिलने या एक-दूसरे के संपर्क में आए बिना संक्रमण फैलाते हैं।

3. 33% से 59% कोरोना मामले बिना लक्षण वाले संक्रमितों से फैलते है, जबकि वे छींक और खांसी नहीं करते हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि कोरोना हवा के माध्यम से भी फैलता है।

4. खुले स्थानों की तुलना में बंद कमरों में कोरोना अधिक तेजी से फैलता है। कमरों के खिड़की दरवाजे खोलने से प्रसार की दर कम हो जाती है। मतलब कोरोना हवा से फैलता है।

5. अस्पतालों में होने वाले इंफेक्शन (nosocomial infections) PPE पहनने वाले हेल्थ केयर प्रोफेशनल्स में भी मिले हैं। वजह यह कि उनके PPE ड्रॉपलेट से बचने के लिए तो डिजाइन किए गए, लेकिन एयरोसोल से बचने के लिए नहीं।

5. विशेषज्ञों ने कहा कि प्रयोगशाला में तीन घंटे तक कोरोना वायरस को हवा में तैरते देखा गया है।

6. कोरोना वायरस अस्पतालों और भवनों में स्थापित एयर फिल्टर और डक्ट में भी पाए गए हैं, ऐसी जगहों पर एयरोसोल के बिना वायरस नहीं पहुंच सकता है।

7. कोरोना जानवरों तक बंद पिंजरे में पहुंचने से पता चलता है कि वायरस हवा में भी फैलता है।
8. अब तक ऐसा कोई सिद्धांत सामने नहीं आया है, जो इस तथ्य को खारिज करें कि कोरोना वायरस हवा से नहीं फैलता है।
9. कोरोना फैलाने के अन्य तरीकों का समर्थन करने के लिए सीमित सबूत हैं, जैसे कि नाक और मुंह से बूंदें और फोम से फैलाना, अर्थात कपड़े, बर्तन, फर्नीचर, आदि।

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