कोरोना से ठीक हो चुके है तो ब्लैक फंगस ले सकता है आपकी जान, जानिए ब्लैक फंगस इंफ़ेक्शन क्या है और इससे कैसे बचे?

दिल्ली से लेकर गुजरात के अहमदाबाद और मुंबई के अस्पतालों में बीते कुछ दिनों से एक दुर्लभ संक्रमण ब्लैक फंगस के मामले सामने आ रहे हैं। फंगस से संक्रमित होने वाले व्यक्ति को दो दिनों तक इलाज न मिलने पर उसकी आँखों की रोशनी जाने के साथ-साथ उसकी मौत भी हो सकती है।
कोरोना से ठीक हो चुके है तो ब्लैक फंगस ले सकता है आपकी जान, जानिए ब्लैक फंगस इंफ़ेक्शन क्या है और इससे कैसे बचे?

दिल्ली से लेकर गुजरात के अहमदाबाद और मुंबई के अस्पतालों में बीते कुछ दिनों से एक दुर्लभ संक्रमण ब्लैक फंगस (Black Fungus)  के मामले सामने आ रहे हैं। फंगस से संक्रमित होने वाले व्यक्ति को दो दिनों तक इलाज न मिलने पर उसकी आँखों की रोशनी जाने के साथ-साथ उसकी मौत भी हो सकती है।

दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में ब्लैक फंगस (Black Fungus) इंफ़ेक्शन यानी म्यूकॉरमाइकोसिस बीमारी का सबसे पहला मामला दर्ज किया गया है। इसके साथ ही दिल्ली के मैक्स, अपोलो, और फ़ोर्टिस जैसे कई अस्पतालों में भी ब्लैक फंगस के मरीज़ पहुँचना शुरू हो चुके हैं, जिनमें से कई मरीज़ों की मौत भी हो चुकी है।

कोरोना वायरस से संक्रमित और ठीक होने वाले लोगों के लिए एक बड़ा ख़तरा

कोरोना वायरस से संक्रमित और ठीक होने वाले लोगों के लिए एक बड़ा ख़तरा बनकर उभरे इस फंगस ने लोगों के बीच एक डर पैदा कर दिया है। सर गंगाराम अस्पताल से जुड़े वरिष्ठ ईएनटी विशेषज्ञ डॉ. मनीष मुंजाल मानते हैं कि ये एक गंभीर बीमारी ज़रूर है, लेकिन इससे डरने की ज़रूरत नहीं है।

वे कहते हैं, "ब्लैक फंगस (Black Fungus) या म्यूकॉरमाइकोसिस कोई नई बीमारी नहीं है। ये नाक, कान और गले ही नहीं, शरीर के अन्य अंगों को भी नुक़सान पहुँचाती है। लेकिन बीते कुछ दिनों से ये बीमारी एक बड़ा रूप अख़्तियार कर रही है, क्योंकि ये बीमारी इम्यून सिस्टम यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमज़ोर होने की वजह से होती है। पहले हम ये बीमारी कीमोथेरेपी, अनियंत्रित डायबिटीज़, ट्रांसप्लांट मरीज़ों, और बुज़ुर्ग लोगों में देखते थे। लेकिन कोविड के बाद को-मॉर्बिडिटी और ज़्यादा स्टेरॉइड लेने वाले मरीजों में भी ये बीमारी नज़र आने लगी है।"

ये बीमारी छुआ-छूत से नहीं फैलती है। लेकिन ये फंगस हवा में रहता है

डॉ. मुंजाल बताते हैं, "ये बीमारी छुआ-छूत से नहीं फैलती है। लेकिन ये फंगस हवा में रहता है। यही आपको फफूंदी की शक्ल में ब्रेड पर और पेड़ के तनों पर काले रूप में दिखती है। ये फंगस आपकी नाक से होते हुए बलगम में मिलकर आपकी नाक की चमड़ी में चला जाता है। इसके बाद ये बीमारी बहुत तेज़ी से फैलती हुई सब कुछ ख़राब करते हुए दिमाग़ तक चली जाती है। इसमें मृत्यु दर 50 प्रतिशत है।" इसके बावजूद डॉ. मुंजाल समेत अन्य डॉक्टर मानते हैं कि इस बीमारी से डरने की ज़रूरत नहीं है।

स्टार इमेजिंग लैब के निदेशक डॉ। समीर भाटी बताते हैं, "हमें ये समझने की ज़रूरत है कि ये कोई नई बीमारी नहीं है। ये बीमारी पहले से हमारे बीच मौजूद थी। ये भी जानने की ज़रूरत है कि इससे अनियंत्रित डायबिटीज़ वाले लोगों को ख़तरा है। इसके साथ ही ट्रांसप्लांट वाले और आईसीयू में भर्ती मरीज़ों को भी ख़तरा है क्योंकि उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता पहले से ही कम होती है।"

ब्लैक फंगस का कोरोना से कनेक्शन

इस फंगस से संक्रमित होने वाले लोगों में कई लोग कोरोना की जंग लड़कर भी आए हैं। दिल्ली के मैक्स अस्पताल में ईएनटी विशेषज्ञ डॉ। संजय सचदेवा बताते हैं, "हमारे पास ब्लैक फंगस के जो मरीज़ आ रहे हैं, उनमें से ज़्यादातर पहले से डायबिटीज़ के मरीज़ हैं, कुछ स्टेरॉइड ले रहे होते हैं, लेकिन ज़्यादातर कोविड से ठीक होने के बाद आ रहे हैं। तीन मरीज़ हमारे पास कोविड संक्रमित रहते हुए आए हैं, जिनमें से दो की मौत हो चुकी है।

ज़्यादातर मरीज हमारे पास जो आ रहे हैं, वो कहते हैं कि उन्हें आँख से दिख नहीं रहा है, कोई कहता है कि आँखों से धुंधला दिख रहा है। फंगस की वजह से आँख पर सूजन आ जाती है जिसके एक-दो दिन में ही आंखों की रोशनी काफ़ी कम हो जाती है। ज़्यादातर मरीज़ तो अपनी आँखों की रोशनी खो चुके हैं।"

इसके साथ ही डॉ। सचदेवा बताते हैं कि जो लोग भी कोविड से रिकवर हुए हैं, स्टेरॉइड लेते हैं और डायबेटिक हैं, उन्हें सिर में दर्द होने पर डॉक्टरी मदद लेनी चाहिए।

संक्रमण ठीक कैसे हो सकता है?

इस बीमारी के इलाज के लिए लोगों को कई कई दिनों तक अस्पताल में रहना पड़ सकता है।

ब्लैक फंगस के इलाज़ की प्रक्रिया समझाते हुए डॉ। मनीष मुंजाल कहते हैं, "जब हमारे पास मरीज़ आते हैं, तो हम सबसे पहले ये सुनिश्चित करते हैं कि ये ब्लैक फंगस ही है। ये सुनिश्चित करने के बाद बहुत स्ट्रॉंग एंटी-फंगस दवाएँ देनी पड़ती हैं। क्योंकि जिन लोगों को ये होती है, उनके लिए ये बहुत ख़तरनाक होती है।"

"अगर दवाई से ठीक हो जाता है तो सही है, नहीं तो हमें हर उस हिस्से को काटना पड़ता है जिसे फंगस ने नुक़सान पहुँचाया होता है। क्योंकि वो हिस्सा गैंगरीन जैसा हो जाता है जिसके पीछे फंगस छिपा होता है और शरीर के अन्य हिस्सों तक पहुँचने लगता है। इसका इलाज़ काफ़ी महंगा होता है और इसके लिए काफ़ी दिनों तक अस्पताल में रहना पड़ता है। और कई लोगों ने इस वजह से अपनी जान भी गँवाई है। ऐसे में ये बीमारी काफ़ी ख़तरनाक है।"

बीमारी से बचाव कैसे संभव है?

डॉ. भाटी बताते हैं कि लोगों को इस बीमारी से कोविड की तरह घबराने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि इस बीमारी का इलाज पहले से मौजूद है।

लेकिन सवाल ये उठता है कि इस बीमारी का शिकार होने पर आपको क्या करना चाहिए।

डॉ। मुंजाल बचाव की टिप्स देते हुए कहते हैं, "जितना जल्दी लोगों को पता चल जाए, उन्हें उतनी ही जल्दी क़दम उठाने चाहिए। जिन्होंने स्टेरॉइड वगैरह ली है, उन्हें अपने लक्षण पहचानने चाहिए।

फंगस नाक में जाने के बाद कुछ इस तरह के लक्षण सामने आ सकते हैं

  • नाक की अंदरुनी दीवारों पर सूखापन आना
  • नाक के अंदर काली और भूरे रंग की पपड़ियाँ जमना
  • नाक बंद होना शुरू हो जाना
  • ऊपर वाले होठों और गालों का सुन्न होना शुरू हो जाना
  • आँखों में सूजन आना
  • आँखों का लाल होना

इनमें से किसी भी तरह के लक्षण सामने आने पर लोगों को अपने डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।

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