डेस्क न्यूज. 1947 में भारत पाकिस्तान के विभाजन के बाद बड़ी संख्या में शरणार्थी भारत से पाकिस्तान की तरफ और पाकिस्तान से बड़ी संख्या में भारत की तरफ आए। भारत पाकिस्तान विभाजन देश के लिए एक बड़ी त्रासदी थी । इस दौरान पाकिस्तान के ल्यालपुर से अपने पिता के साथ मदन लाल खुराना भी आए, किस तरह पाकिस्तान से आए एक शरणार्थी ने इतिहास रच दिया जानिए।
1959 में मदन लाल खुराना छात्रसंघ महामंत्री के पद चुने गए, इस बीच महामंत्री और अध्यक्ष के बीच विवाद हुआ । उद्घाटन समारोह में अध्यक्ष प्रधानमंत्री नेहरू को बुलाना चाहते थे, लेकिन मदन लाल खुराना को इस पर असहमति थी, खुराना इस कार्यक्रम में बलरामपुर के युवा सांसद अटल बिहारी वाजपेई को भुलाने पर अडे थे ।
मदन लाल खुराना एक राजनेता के साथ-साथ एक लेक्चरर भी थे, उन्होंने पहले संघ द्वारा संचालित बाल भारती स्कूल में बच्चों को पढ़ाना शुरू किया, इसके बाद आगे चलकर कॉलेज में लेक्चरर रहे, इस समय मदनलाल रोटी रोटी के लिए संघर्ष कर रहे थे ।
1993 में जब दिल्ली में चुनाव हुए, तो इसका नेतृत्व मदन लाल खुराना ने किया, इस चुनाव में कांग्रेस को बुरी तरह शिकस्त मिली, कई राजनीतिक विद्वानों का कहना है कि उस समय खुराना ने बाहरी दिल्ली और यमुना पार के इलाकों पर खूब फोकस किया और मुस्लिम बहुल इलाकों के वोट काट कर कांग्रेस का गणित खराब किया । इस चुनाव में बीजेपी ने 70 सीटों में से 49 सीटों पर जीत दर्ज की और कांग्रेस 14 सीटों तक सीमित रह गई । जनता दल की चार समेत अन्य के खाते में 7 सीटें उस समय गई ।
पार्टी की प्रचंड जीत के बाद दिल्ली में 2 दिसंबर 1993 को मदन लाल खुराना ने शपथ ग्रहण की, और दिल्ली के पहला मुख्यमंत्री बने, एक ऐसा मुख्यमंत्री जो विभाजन के समय एक शरणार्थी के रूप में भारत आया और कड़े संघर्ष के बाद एक मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण कर इतिहास रचा ।
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