डेस्क न्यूज़- ममता बनर्जी की सरकार को सुप्रीम कोर्ट से एक और झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) से परामर्श किए बिना पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) नियुक्त करने की पश्चिम बंगाल सरकार की याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए कहा कि यह कानून का दुरुपयोग होगा। हालांकि, न्यायमूर्ति नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की पीठ ने पश्चिम बंगाल सरकार को पुलिस सुधारों से जुड़े मुख्य मामले में पक्षकार बनने की अनुमति दी।
पीठ ने कहा कि हमने आपका आवेदन देखा है। अब आप जो बात उठा रहे हैं, वह ठीक वही है जो आपने पहले उठाया था कि डीजीपी की नियुक्ति में यूपीएससी की भूमिका नहीं होनी चाहिए। जब मुख्य मामले को सुनवाई के लिए लिया जाता है तो आप मामले पर बहस कर सकते हैं। लेकिन हम इस याचिका की अनुमति नहीं दे सकते। यह प्रक्रिया का दुरुपयोग है। हम आपके आवेदन को अस्वीकार करते हैं। हम ऐसी याचिकाओं पर सुनवाई नहीं कर सकते। हम इन आवेदनों पर इतना समय क्यों बर्बाद कर रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि अगर राज्य भी इस तरह से मामले दर्ज करना शुरू कर देते हैं, तो उनके लिए अन्य मामलों की सुनवाई के लिए समय निकालना मुश्किल होगा। बता दें कि पुलिस सुधार को लेकर 'प्रकाश सिंह' मामले में सुप्रीम कोर्ट के 2018 के आदेश में संशोधन को लेकर राज्य सरकार ने हस्तक्षेप याचिका दायर की है। राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने तर्क दिया कि राज्य सरकार को पुलिस अधिकारियों की निगरानी का अधिकार है। लेकिन शीर्ष अदालत के नकारात्मक रुख को देखते हुए उन्होंने खंडपीठ से याचिका को वापस लेने की अनुमति देने का अनुरोध किया, जिसे उसने स्वीकार कर लिया।
सुनवाई के दौरान पुलिस सुधार मामले के मुख्य याचिकाकर्ता प्रकाश सिंह की ओर से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने अदालत से जल्द से जल्द सुनवाई करने का अनुरोध किया जिस पर खंडपीठ ने अक्टूबर में सुनवाई का फैसला किया। पश्चिम बंगाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर मांग की थी कि राज्य सरकार को संघ लोक सेवा आयोग के हस्तक्षेप के बिना एक डीजीपी नियुक्त करने की अनुमति दी जाए।