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गहलोत की राहत में जनता को हो सकती है आफत, जनता की राय बिल होने चाहिए मांफ

savan meena

न्यूज – सूबे की गहलोत सरकार ने अहम निर्णय में प्रदेश की जनता को बिजली-पानी के दो माह के बिलों के भुगतान को स्थगित कर जनता को फिलहाल राहत अवश्य दे दी है लेकिन प्राइवेट सेक्टर में काम करने वाले परिवारों के सामने मई-जून में दो माह का एक साथ बिल चुकाना भी आफत बन सकती है।

दरअसल हकीकत यह है कि निजी क्षेत्र में मजदूरी करने वाले फिलहाल बेरोजगार हो चुके है।ये ऐसे लोग है जो हर माह थोड़ी बहुत मिलने वाली मजदूरी से पानी-बिजली के बिलों को बेमुश्किल से जमा करा पाते है।हालांकि सरकारी दावे है कि मजदूरों को घर बैठे मजदूरी मिलेगी लेकिन यह समय ही बताएगा कि सरकारी आदेश निजी क्षेत्र पर कितना प्रभावी हो पाते है।

निजी क्षेत्र में जब बीमारी-हारी होने पर ही चार अंकों के वेतन से ही कटौती कर ली जाती है ऐसे में लगता नहीं कि उन्हें इतना भी पैसा मिल पाएगा कि वे एक साथ दो माह का भारी भरकम बिल अदा कर पाएंगे।माना सरकार का वर्तमान स्थिति को देखते हुए यह निर्णय स्वागत योग्य हो सकता है लेकिन निर्णय में शायद जनता के साथ होने वाले दूरगामी परिणाम को गंभीरता से नहीं लिया है।

निर्णय में यह कतई स्पष्ट नहीं किया गया है कि दो माह के बिल की राशि उपभोक्ताओं से एक मुश्त ली जाएगी या फिर हर माह आने वाले बिलों में कुछ कुछ राशि जोड़कर ली जाएगी।

गहलोत सरकार ने सत्ता संभालने के बाद तीन बार बिजली के दामों में बढ़ोतरी कर प्रदेश की जनता की आर्थिक कमर तोड़ दी है।ऐसे में जनता के मुसीबत के वक्त में भी  बिजली-और पानी के बिलों को स्थगित करना जनता को रास नहीं आ रहा है। अमूमन ऐसी जनता जो सरकार के आंकड़ों के खेल से अनभिज्ञ है वह कन्फ्यूज है कि उसके दो माह के बिलों को माफ कर दिया गया है।

जबकि दुनिया दारी से दूर रहने वाली जनता को  यह समझ लेना चाहिए कि स्थगित का अर्थ यह नहीं है कि वे जो समझ रहे है। उन्हें ज्ञान होना चाहिए कि सरकार ने सिर्फ बिल जमा कराने की निर्धारित समय सीमा बढ़ाई है लेकिन मई-जून में बिजली कम्पनियां बिलों की एक एक पाई का हिसाब अवश्य लेगी।

दूसरी तरफ सरकार की विचारधारा से मेल रखने वाले नेता सरकार के इस निर्णय को भुनाने में लग गए है लेकिन किसी भी नेता की जुबान से यह नहीं निकल पा रहा कि गरीब जनता को दो माह का एक साथ बोझ देने की बजाए मांफ ही कर देना चाहिए। कम से कम उन नेताओं को अवश्य आवाज उठानी चाहिए जो अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर अर्थहीन विषयों का समर्थन  कर देश के शांत माहौल को गंभीर बनाने का प्रयास करते है। जनता की नसीहत है उन नेताओं को खामोश रहने की बजाए अभिव्यक्ति की आजादी अपना कर जनता की गंभीर समस्या पर बोलना  ही चाहिए।

दूसरी ओर जनता का मानना है कि सूबे की सरकार को मुसीबत के वक्त जनता के बिलों को स्थगित करने की बजाए समाप्त ही कर देना चाहिए।बिजली कंपनियों ने दस तरह के चार्ज लगाकर जनता की पहले ही कमर तोड़ दी है।ऐसे में सरकार का दो माह का बिल एक साथ भरने का निर्णय जनता के घाव पर मिर्च छिड़कने जैसा ही साबित हो सकता है।

बेशक ऐशो आराम की जिंदगी जीने वाले नेताओं के लिए एक साल का एक साथ बिलों का भुगतान करना सहज  ही है लेकिन एक गरीब परिवार के लिए कोरोना बेरोजगारी की मुश्किल घड़ी में दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कर पाना सम्भव नहीं हो पा रहा है ऐसे में दो माह का बिल भरना चुनोती से कम नहीं है। जनता की मानें तो सरकार को जनहित में एक बार और विचार कर बिजली-पानी के बिलों को मांफ ही कर देना चाहिए।उल्लेखनीय है कि मजदूरों से हमदर्दी दिखाने वाली सरकार में जिले के श्रम मंत्री टीकाराम जूली भी है लेकिन मजदूर विद्यार्थियों को समय पर स्कॉलरशिप ही नहीं मिल पा रही है।

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