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राजनीति में बगावत के सुर को कैसे दबाया इन दिग्गज नेताओं ने जाने ?

Ranveer tanwar

राजस्थान की राजनीती में उफान अब जोरो पर है लेकिन जादूगर अभी मोंन है वही राजस्थान में अनलॉक की प्रक्रिया के साथ राजनेताओ के मुख भी अनलॉक होने लगे है. वही अब पायलट भी अपनी मांगो को लेकर इंतजार कर रहे है आखिर आलाकमान ने जो वादे किये थे उन्हें पूरा करने का समय आ गया है। लेकिन गहलोत सरकार ने 10 महीने से किसी तरह की कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है ना ही मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ हैं।

वही राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह बगावत की समस्या से जूझ रहे हैं, लेकिन दोनों ही मुख्यमंत्री न केवल बगावत की हवा निकाल रहे बल्कि खुद की सरकार को पूरी तरह से सुरक्षित रखे हुए हैं। कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व चाहकर भी दोनों ही राज्यों में बहुत ज्यादा दखल दे पाने की स्थिति में नहीं है।

दोनों राज्यों में मुख्यमंत्री ही सब कुछ है। यहां तक की आलाकमान की भूमिका में भी मुख्यमंत्री ही हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और अमरिंदर सिंह के बीच किस तरह की समानता है, जरा आप भी पढ़िए।

अशोक गहलोत: बसपा व निर्दलीयों को तोड़ ताकत बढ़ाई

राजस्थान में अशोक गहलोत के खिलाफ सचिन पायलट बगावत की आवाज को बुलंद किए हुए हैं, लेकिन असर कुछ भी नहीं हो पा रहा। बगावत के बावजूद निर्दलीयों की मदद से अशोक गहलोत संख्या बल को बनाए हुए हैं, जिससे सरकार की मजबूत स्थिति बनी हुई है। प्रियंका गांधी और राहुल गांधी के हस्तक्षेप के बावजूद राजस्थान में सचिन पायलट काे सत्ता में फिर से

हिस्सेदारी नहीं मिल पा रही है।

सरकार की स्थिति इतनी अधिक मजबूत है कि सारे फैसले सीएम के स्तर पर ही होते हैं। यहां पर कांग्रेस प्रभारी की भूमिका शून्य हो चुकी है।

ब्यूरोक्रेसी से लेकर राजनीतिक नियुक्तियां कैसे, कब और किसकी करनी है, यह सब सीएम खुद तय करते हैं। किसी का दखल नहीं है।
कै. अमरिंदर सिंह : आप विधायक तोड़ संख्या बल बढ़ाया

पंजाब में नवजाेत सिंह सिद्धू ने कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ बागी तेवर से कांग्रेस में सियासी हलचल तेज है पर असर कुछ भी नहीं पड़ा। गहलोत की तर्ज पर पिछले दिनों अमरेंद्र सिंह ने आप के विधायकों को तोड़ कर अपनी संख्या बल को बढ़ा दिया।
राहुल गांधी के दखल के बावजूद आज तक कांग्रेस नवजोत सिंह को पंजाब में कैप्टन के विकल्प के तौर पर स्थापित नहीं कर पाई है।
कैप्टन की पंजाब में स्थिति इतनी मजबूत है कि वह अपने राज्य में तमाम फैसले खुद ही करते हैं। ऐसे में पंजाब में कैप्टन ही आलाकमान की भूमिका में हैं। गहलोत की तर्ज पर ही पंजाब में ब्यूरोक्रेसी से हर बड़े फैसले सीएम के स्तर पर होते हैं। किसी का दखल नहीं है।

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