बाबरी विध्वंस की 31वीं बरसी, जानें क्यों कहते है इसे शौर्य दिवस

Madhuri Sonkar

बाबरी मस्जिद विध्वंस 6 दिसंबर 1992 को हुआ था। इसकी आज बरसी मनायी जा रही है। इस दिन को विश्व हिन्दू परिषद और उसके सहयोगी संगठन अयोध्या समेत देश भर में शौर्य दिवस के रूप में मनाते हैं, तो मुस्लिम काला दिवस के रूप में मनाते है।

6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद या विवादित ढांचे के विध्वंस के रूप में जाना जाता है। यह एक ऐसी घटना है जिसने आजाद भारत के भविष्य को एक अलग दिशा दी। दरअसल बाबरी मस्जिद बाबर के सेनापति मीर बाकी ने 1528-29 में बनवाई थी।

अंग्रेजों के समय से ही इस स्थान को लेकर विवाद रहा। मुस्लिम जहां इसे मस्जिद मानते आए वहीं हिंदुओं का विश्वास रहा कि जहां मस्जिद है वहीं भगवान राम की जन्मभूमि है। 1822 में फैजाबाद अदालत के एक अधिकारी द्वारा पहली बार यह दावा कि मस्जिद एक मंदिर की जगह पर थी। 1855 में इस स्थल पर धार्मिक हिंसा की पहली घटना दर्ज की गई।

1949 में मस्जिद के अंदर मूर्तियां मिलीं। कुछ ने कहा कि यह भगवान का प्रकटीकरण है तो कुछ ने कहा कि इन्हें गुप्त रूप से रखा गया। दोनों पक्षों ने जमीन पर दावा करते हुए दीवानी मुकदमा दायर कर दिया। इस स्थल को विवादित घोषित कर दिया गया और ताले लग गए।

1986 में एक जिला अदालत ने फैसला दिया कि विवादित स्थल पर हिंदुओं को पूजा करने की इजाजत दी जानी चाहिए। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इस बात का समर्थन किया और विवादित स्थल के ताले खुलवाए गए।

फरवरी 1989 में, विहिप ने घोषणा की कि विवादित स्थल के पास मंदिर निर्माण के लिए शिलान्यास किया जाएगा। देशभर से ईंटों का पूजन कर अयोध्या भेजा जाने लगा। नवंबर में विश्व हिंदू परिषद ने गृह मंत्री बूटा सिंह और तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी की उपस्थिति में “विवादित ढांचे” के निकट शिलान्यास किया।

1990 में बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर की मांग करते हुए रथ यात्रा निकाली। हालांकि 23 अक्टूबर को इस यात्रा को बिहार में ही रोक दिया गया। जिसके चलते बीजेपी ने वीपी सिंह सरकार से अपना समर्थन वापिस ले लिया और सरकार गिर गई।

6 दिसंबर की सुबह कारसेवकों की भीड़ ढांचे के आसपास जुटने लगी थी और शाम तक मस्जिद का ढांचा जमींदोज हो गया है। इसके बाद मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने शाम तक अपना इस्तीफा दे दिया और पूरे यूपी में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।