डेस्क न्यूज. एक तरफ देश की अदालतों में मुकदमें का बोझ हैं। देश के न्यायलय लंबित मामलों से भरे पड़े है। फाइलें हर माह सुनवाई के लिए आ रही हैं। तारीख पर तारीख हमारी न्यायिक प्रणाली की पहचान बन गई है। लेकिन अगर हम कहें कि एक ऐसी अदालत है जिसने एक ही दिन में गवाही, बहस और फैसला सुना दिया है, बिहार की अररिया अदालत ने पेश की स्पीडी ट्रायल की मिसाल.
बिहार की अररिया जिला अदालत ने एक दिन में फैसला सुनाकर पूरे देश के लिए मिसाल कायम की है.
जिला अदालत ने पोक्सो एक्ट के तहत दर्ज मामले की सुनवाई करते हुए
आरोपी को उसी दिन गवाही और दलीलें सुनने के बाद उम्रकैद की सजा सुनाई है.
कोर्ट के इस फैसले की अब हर तरफ चर्चा हो रही है.
यह फैसला स्पेशल कोर्ट के जज शशिकांत राय ने पोक्सो एक्ट के लिए दिया है.
इसी साल 23 जुलाई को अररिया के नरपतगंज थाने में नाबालिग के साथ दुष्कर्म का मामला दर्ज किया गया था.
मामले की जांच अधिकारी रीता कुमारी ने आरोपी को गिरफ्तार कर 18 सितंबर को कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की थी.
इस मामले में न्यायाधीश शशिकांत राय की अदालत ने 20 सितंबर को संज्ञान लिया और 24 सितंबर को आरोप तय किए.
उसके बाद पोक्सो कोर्ट के विशेष न्यायाधीश शशिकांत राय ने उसी तारीख को सुनवाई करते हुए
कुल 10 गवाहों की गवाही सुनी और उसी दिन आरोपी दिलीप यादव को दोषी करार देते हुए
आजीवन कारावास और 50 हजार जुर्माने की सजा सुनाई. इस दौरान कोर्ट ने सरकार को पीड़िता
को सात लाख रुपये का मुआवजा देने का भी आदेश दिया.
इससे पहले हाल ही में जज शशिकांत राय ने 10 साल की बच्ची से सामूहिक दुष्कर्म के बाद हुई हत्या के मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया था. इस फैसले में कोर्ट ने आरोपी को मौत की सजा सुनाई। इससे पहले 4 अक्टूबर को कोर्ट ने 8 साल की बच्ची से रेप के आरोपी को एक अन्य मामले में आखिरी सांस तक जेल में रहने की सजा सुनाई थी. दोनों ऐतिहासिक फैसले अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश-6 सह पॉक्सो कोर्ट के न्यायाधीश शशिकांत राय ने सुनाए हैं.
अररिया जिला अदालत ने एक दिन में फैसला सुनाकर पूरे देश के लिए मिसाल कायम की है इस पूरे केस में अभियोजन पक्ष और स्थानीय महिला आईओ की अहम भूमिका रही हैं जिसने दो माह के अंदर न केवल आरोपपत्र दाखिल किया, बल्कि सभी गवाहों को कोर्ट में भी पेश किया और अगली तारीख पर फैसला दे दिया।
गौर करने की बात यह भी हैं कि देश की राजधानी में पिछले एक साल में हर रोज बाल-यौनाचार के 50 केस सामने आते हैं, लेकिन एक आंकलन के अनुसार 99 प्रतिशत केस में एक साल तक फैसले नहां आए. साथ ही 77 प्रतिशत मामलों में फैसला आने में 1 से तीन साल तक का वक्त लगा और 16 फीसदी में पांच साल तक लग गए. बरहाल अररीया कोर्ट का फैसला पीड़ित पक्ष के लिए एक राहत की बात हैं बाकि इस मामले से देश को सबक लेकर अपना रवैया बदलने की जरूरत हैं. अगर हम ऐसा करते हैं तो यह उन पीड़ितों के लिए मरहम का काम करेंगा जो इस दर्द से गूजरी हैं.