
भारत में पानी की बोतल का दूसरा नाम है - बिसलेरी। ये बिसलेरी अब बिकने वाली है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, रमेश चौहान बिसलेरी इंटरनेशनल को लगभग 7 हजार करोड़ में टाटा कंज्यूमर प्रोडक्ट्स लिमिटेड (TCPL) को बेचने जा रहे हैं। चौहान ने लगभग तीन दशक पहले ऐसे ही सॉफ्ट ड्रिंक ब्रांड थम्स अप, गोल्ड स्पॉट और लिम्का को कोका-कोला कम्पनी को बेचा था।
उद्योगपति रमेश चौहान अब 82 वर्ष के हो चुके हैं और इन दिनों उनका स्वास्थ्य भी ठीक नहीं है। इसके आलावा उनका कहना है कि बिसलेरी को विस्तार के अगले स्तर पर ले जाने के लिए उनके पास कोई उत्तराधिकारी नहीं है। उनकी बेटी जयंती (Jayanti) कारोबार में दिलचस्पी नहीं रखती। इसके चलते अब बिसलेरी का सौदा टाटा ग्रुप के साथ किया जा रहा है।
रमेश चौहान का जन्म 17 जून, 1940 को जयंतीलाल और जया चौहान के यहां मुंबई में हुआ था। उनके दोस्त उन्हें आरजेसी के नाम से बुलाते हैं। उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग और बिजनेस मैनेजमेंट किया है। चौहान 27 साल की उम्र में भारतीय बाजार में बोतलबंद मिनरल वाटर पेश किया था।
पारले एक्सपोर्ट्स ने 1969 में इटली के एक बिजनेसमैन से बिसलेरी को मात्र खरीदा 4 लाख में खरीदा था। 50 साल से ज्यादा के करियर में चौहान ने बिसलेरी को मिनरल वाटर का भारत का टॉप ब्रांड बना दिया। चौहान ने प्रीमियम नेचुरल मिनरल वाटर ब्रांड वेदिका भी बनाया है। इसके अलावा, थम्सअप, गोल्ड स्पॉट, सिट्रा, माजा और लिम्का जैसे कई ब्रांड को बनाने वाले भी चौहान ही हैं।
रमेश चौहान की बेटी जयंती ने हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद 24 साल की उम्र में बिसलेरी जॉइन की। उन्होंने 2011 में मुंबई ऑफिस का कार्यभार संभाला। न्यू प्रोडक्ट डेवलपमेंट के साथ वो पुराने प्रोडक्ट के ऑपरेशन को स्ट्रीमलाइन करने में भी शामिल रहीं। अभी वो कंपनी में वाइस चेयरपर्सन है। इसके जयंती शौकिया फोटोग्राफर और ट्रैवलर भी हैं।
एक समय ऐसा भी था जब पानी खरीदने या बेचने की बात करने पर लोग हंसते थे, लेकिन केवल कुछ ही दशकों में पानी बेचने-खरीदने का उद्योग 20,000 करोड़ से ज्यादा का हो गया. ऐसी ही कुछ कहानी है देश के सबसे बड़े पानी के ब्रांड बिसलेरी की। आइये जानते है Bisleri Mineral Water brand के पॉपुलर होने के पीछे की कहानी,,,
बिसलेरी की शुरुआत यूरोपीय देश इटली से हुई। जिसके फाउण्डर थे फेलिस बिसलेरी। फेलिस की मौत के बाद उनके परिवार के डॉक्टर रॉसी ने कंपनी को संभाला और अपने पहचान के भारतीय वकील खुशरू संतकू के साथ मिलकर 1965 में मुंबई के ठाणे में बिसलेरी का पहला वाटर प्लांट स्थापित किया।
बिसलेरी ने शुरुआत में मार्केट में दो प्रॉडक्टों को उतारा। पहला था बिसलेरी वाटर और दूसरा था बिसलेरी सोडा। शुरुआत में बिसलेरी, पानी से ज्यादा सोडे के लिए जाना जाता था और जब बिसलेरी वाटर बेचने में ज्यादा सफलता हासिल नहीं हो पाई तो खुसरू संतुक अपने इन ब्रांड्स को बेचने का प्लान किया। इसके बाद साल 1969 में चौहान ने बिसलेरी को 4 लाख रुपए में खरीद लिया। हालाँकि चौहान का सपना पानी बेचने का नहीं था बल्कि वो तो बिसलेरी ब्रांड के तले सोडा बेचना चाहते थे। आगे चलकर रमेश ने सोडा बेचा लेकिन पानी बेचना कभी बंद नहीं किया।
90 के दशक से पहले पानी कांच की बोतलों में बिकता था लेकिन जब प्लास्टिक की बोतल की एंट्री हुई तो पैकेज्ड ड्रिंकिंग वाटर इंडस्ट्री के दिन हमेशा के लिए बदल गए अब इंडस्ट्री रफ्तार पकड़ने लगी। क्योकि प्लास्टिक बॉटल्स हल्की, पोर्टेबल, रिसाइकलेबल थी उसे किसी भी शेप में आसानी से ढाला जा सकता था।
लेकिन 90 के दशक में MNCs की एन्ट्री हुई और इंडस्ट्री में कॉम्प्टीशन बढ़ गया। बेली, एक्वाफीना और किनले जैसे ब्रांड्स ने मार्केट में सेंधमारी की, लेकिन बिसलेरी की मार्केटिंग ने उसे बाकी के ब्रांड्स से अलग पहचान दी। यूनीक मार्केटिंग कैंपेन ने बिसलेरी को बाजार में एक अग्रणी ब्रांड बना दिया। इस तरह आज बिसलेरी की भारत में बोतलबंद पेयजल में 60% हिस्सेदारी है।
1965 में मुंबई के ठाणे में पहला 'बिसलेरी वॉटर प्लांट' स्थापित किया। भारत में पैकेज्ड वाटर का मार्केट करीब 20,000 करोड़ रुपये से अधिक का है। इसमें से 60 फीसदी हिस्सा असंगठित है। आज बिसलेरी की संगठित बाजार में हिस्सेदारी लगभग 32% है। जानकारी के अनुसार, बिसलेरी के 122 से अधिक ऑपरेशनल प्लांट हैं। पूरे भारत में 5,000 ट्रकों के साथ 4,500 से अधिक इसका डिस्ट्रीब्यूटर नेटवर्क है।