दुनियाभर में कोरोना का नया वैरिएंट ओमिक्रॉन तेजी से पैर पसार रहा है। पहली और दूसरी लहर के बाद अब संभवत: तीसरी लहर और ओमिक्रॉन वैरीएंट के बढ़ते खतरे को देखते हुए अब लोगों के मन में डर बढ़ता जा रहा है। भारत में ओमिक्रॉन संक्रमण के मामले 200 के पार हो गए हैं। देश में सबसे ज्यादा प्रभावित राज्यों में दिल्ली और महारष्ट्र शामिल है। इन दोनों राज्यों में ओमीक्रॉन के 54 - 54 मामले सामने आए है। खतरे की बात यह है कि, देश में पहले 100 मामले 15 दिन में मिले थे, लेकिन 100 से बढ़कर 200 मामले होने में मात्र 5 दिन का समय लगा। बता दें कि, कोरोना का यह नया वैरिएंट अब तक देश के 11 राज्य और केंद्र साशित प्रदेशों तक फ़ैल चुका है।
तेज़ी से फ़ैल रहा है ओमीक्रॉन
शुरुआत में 2 दिसंबर को देश में ओमीक्रॉन के केवल 2 मामले सामने आए थे, जो कर्नाटक में मिले थे। इसके बाद 14 दिसंबर को मामले बढ़कर 50 पर पहुंचे और 50 से 100 होने में मात्र 3 दिन का समय लगा। जिस रफ़्तार से ओमीक्रॉन फ़ैल रहा है, उसे देखते हुए दुनियाभर के वैज्ञानिकों का कहना है कि इसकी संक्रमण दर बहुत ज्यादा है। देश में दिनों - दिन बढ़ते ओमीक्रॉन के आंकड़ो को देखकर कहा जा सकता है कि इसके संक्रमण की रफ़्तार बहुत ज्यादा बढ़ गई है।
अमेरिका में हुई ओमीक्रॉन से पहली मौत
ओमीक्रॉन से हुई मौतों का आंकड़ा देखा जाए, तो अमेरिका के टेक्सास में ओमिक्रॉन वैरिएंट से पहली मौत हुई है। स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक, इस व्यक्ति ने वैक्सीन की एक डोज़ भी नहीं लगवाई थी। मृतक की उम्र भी 50 से 60 साल के बीच बताई जा रही है। अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार, 11 दिसंबर को समाप्त हुए हफ्ते में नए कोरोना केस में 73.2% मामले ओमीक्रॉन के पाए गए है। बता दें कि, इससे पहले ब्रिटेन में भी ओमीक्रॉन से संक्रमित एक शख्स की मौत हो चुकी है।
हर केस की जीनोम सीक्वेंसिंग संभव नहीं - डॉ. वीके पॉल
भारत में निति आयोग ने पहले ही संक्रमण बढ़ने की चेतावनी दी थी। निति आयोग के सदस्य डॉ. वीके पॉल ने कहा था कि, "अगर हम ब्रिटेन में ओमीक्रॉन के संक्रमण का पैमाना देखें और उसकी तुलना भारत की आबादी से करें तो कहा जा सकता है कि, भारत में संक्रमण फैलने पर रोजाना 14 लाख केस आ सकते है। डॉ. वीके पॉल ने यह भी कहा था कि हर केस की जीनोम सीक्वेंसिग नहीं की जा सकेगी। जीनोम सीक्वेंसिंग करने के मामले में भारत दुनिया में दूसरे नंबर पर है और इसे लगातार बढ़ाया ही जा रहा है। डॉ. पॉल ने कहा कि यह बीमारी को पहचानने का नहीं, बल्कि महामारी का आंकलन करने और इसकी निगरानी का एक टूल मात्र है। उन्होंने आगे कहा कि, "हम इस बात का भरोसा दिला सकते है कि फिलहाल पर्याप्त सिस्टेमैटिक सैंपलिंग की जा रही है।
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