केरल के कोझीकोड में 15 मार्च 1977 को एक ऐसे हीरो का जन्म हुआ, जिसने अपना जीवन देश को समर्पित कर दिया। वह अपने माता-पिता की इकलौती संतान थे और इसके बाद भी वे देश की सेवा से कभी पीछे नहीं हटे। उनकी बहादुरी की मिसाल आज भी लोगों को दी जाती है।
मेजर उन्नीकृष्णन बचपन से ही आर्मी ऑफिसर बनना चाहते थे। उन्नीकृष्णन ने कारगिल युद्ध में हिस्सा लिया था। 12 जुलाई 1999 को जब कारगिल युद्ध चल रहा था तब मेजर उन्नीकृष्णन को सेना में कमीशन दिया गया था।
मेजर उन्नीकृष्णन लेफ्टिनेंट के रूप में कारगिल पहुंचे और ऑपरेशन विजय का हिस्सा बने। मेजर उन्नीकृष्णन 7 बिहार रेजिमेंट के साथ थे और उनके साथी आज तक उन्हें नहीं भूले हैं। 26 नवंबर 2008 को जब मुंबई पर आतंकी हमला हुआ था तब मेजर संदीप महज 31 साल के थे।
वर्ष 1995 में पुणे में राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) में प्रवेश लिया। एनडीए के ऑस्कर स्क्वाड्रन में शामिल हुए और इसके 94 वें पाठ्यक्रम से उत्तीर्ण हुए और 7 बिहार में कमीशन किए गए। उनके योगदान को आज भी देश कभी नहीं भूल पाएगा। उनके अंतिम संस्कार के समय लाखों की संख्या में लोग जमा थे और उनके साथियों को वह दृश्य आज भी याद है।
मेजर उन्नीकृष्णन को अपने एक मित्र की शादी में जाना था, लेकिन भाग्य में कुछ और ही था। रिजर्वेशन टिकट होने के बाद भी वह अपने दोस्त की शादी में शामिल नहीं हो पाए और देश के लिए शहीद हो गए। मेजर उन्नीकृष्णन को ऑपरेशन टॉरनेडो में अदम्य साहस के प्रदर्शन के लिए अशोक चक्र से सम्मानित किया गया था।
ऑपरेशन ब्लैक टॉरनेडो में 10 कमांडो की टीम का नेतृत्व
आतंकवादियों को खत्म करने और बंधको को निकालने के लिए 51 स्पेशल एक्शन ग्रुप (एसएजी) ने ऑपरेशन ब्लैक टॉरनेडो शुरू किया। एसएसजी एनएसजी का हिस्सा है। मेजर उन्नीकृष्णन इस ऑपरेशन में 10 कमांडो की टीम का नेतृत्व कर रहे थे।
मेजर 28 नवंबर को कमांडो के साथ होटल ताज में एंट्र हुए। होटल की तीसरी मंजिल पर कुछ महिलाओं को आतंकियों ने बंधक बना लिया और कमरा अंदर से बंद था। दरवाजा तोड़कर जब मेजर संदीप अपने साथी कमांडो सुनील यादव के साथ अंदर दाखिल हो रहे थे, तभी यादव को गोली लग गई। मेजर संदीप ने आतंकियों को फायरिंग में व्यस्त रखा और यादव को वहां से निकाला।
इसके बाद मुठभेड़ के दौरान जब वह दूसरी मंजिल पर पहुंचे तो आतंकियों ने उसकी पीठ पर गोली मार दी। गोली लगने के बाद भी मेजर संदीप ने अपने साथियों से कहा, ऊपर मत आओ, मैं संभाल लूंगा।
बैंगलोर के रहने वाले मेजर संदीप के पिता उन्नीकृष्णन इसरो से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और मां गृहिणी हैं। मेजर संदीप ने अपनी पढ़ाई फ्रैंक एंथोनी पब्लिक स्कूल, बैंगलोर से पूरी की।
जब मेजर उन्नीकृष्णन को कारगिल युद्ध में भेजा गया था, तब उन्हें अग्रिम चौकियों पर तैनात किया गया था। यहां दुश्मन की ओर से भारी तोपों से फायरिंग की जा रही थी। पाकिस्तानी सैनिक लगातार भारतीय सैनिकों पर छोटे हथियारों से हमला कर रहे थे। इस युद्ध के बाद 31 दिसंबर 1999 को मेजर उन्नीकृष्णन ने छह सैनिकों की टीम की मदद से एलओसी पर 200 मीटर दूर पोस्ट पर दोबारा कब्जा कर लिया, जिस पर पाकिस्तानी सैनिक आकर जबरन कब्जा कर लिया था।