जब भारत और इसराइल ने मिलकर बनाई ये रणनीति, बना लिया था पाकिस्तान को तबाह करने का पूरा प्लान?

क्या इसराइल ने ऐसी किसी मदद की पेशकश की थी? क्या इस अभियान के लिए गुजरात की ज़मीन का इस्तेमाल होना था? क्या पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को रोकने का मौक़ा भारत ने कई बार गंवा दिया? और क्या पाकिस्तान के परमाणु संयंत्र को नष्ट करने में इसराइल की कोई दिलचस्पी थी?
जब भारत और इसराइल ने मिलकर बनाई ये रणनीति, बना लिया था पाकिस्तान को तबाह करने का पूरा प्लान?
India and Israel Made This Strategy : बीते दिनों इसराइल और फ़िलीस्तीनी चरमपंथी गुट हमास के बीच हिंसक झड़प के दौरान सैकड़ों लोगों की मौत हुई है और हज़ारों लोग बेघर हो गए। इसराइल ने संघर्षविराम की स्थिति को भांपते हुए हमास और उसके कैंप को ज़्यादा से ज़्यादा नुक़सान पहुंचाने की रणनीति पर काम किया।
इस दौरान ऑनलाइन की दुनिया में एक्सपर्ट लगातार इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि भारत को भी चरमपंथियों पर क़ाबू पाने के लिए इसराइली और मोसाद मॉडल को अपनाना चाहिए। यह चर्चा भी हो रही है कि अगर भारत ने इसराइल की मदद से उपयुक्त समय पर क़दम उठाया होता तो पाकिस्तान को परमाणु हथियार विकसित करने से रोका जा सकता था।
लेकिन सवाल यह है कि क्या इसराइल ने ऐसी किसी मदद की पेशकश की थी? क्या इस अभियान के लिए गुजरात की ज़मीन का इस्तेमाल होना था? क्या पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को रोकने का मौक़ा भारत ने कई बार गंवा दिया? और क्या पाकिस्तान के परमाणु संयंत्र को नष्ट करने में इसराइल की कोई दिलचस्पी थी?

इराक़ में इसराइली दख़ल

India and Israel Made This Strategy : 7 जून, 1981 को इसराइली वायुसेना तीन विरोधी देशों की सीमाओं में चीरते हुए इराक़ में दाख़िल हुई और ओसिरक में निर्माणाधीन परमाणु संयंत्र को नष्ट कर दिया था। इस हमले के लिए इसराइल के आठ एफ़-16 विमान और  2 एफ़-15 विमानों ने मिस्र के सिनाई रेगिस्तान स्थित एयरपोर्ट से उड़ान भरी थी। तब इस एयरपोर्ट पर इसराइल का क़ब्ज़ा था।
ये विमान सऊदी अरब और जॉर्डन की हवाई सीमाओं में महज़ 120 मीटर की ऊंचाई पर उड़े थे। इन विमानों के अतिरिक्त फ्यूल टैंक भी रखे गए थे जिन्हें सऊदी अरब के रेगिस्तानी इलाके में फेंकना पड़ा था।
इराक़ी सीमा में प्रवेश करने के बाद इसराइली विमानों ने 30 मीटर की ऊंचाई पर उड़ना शुरू कर दिया था ताकि वे रडार की पकड़ में नहीं आ सकें। शाम के साढ़ पांच बजे इन विमानों से 20 किलोमीटर की दूरी से अलग-अलग दिशाओं से उड़ान भरी और 2,130 मीटर की ऊंचाई तक गए।

ओसिरक के परमाणु संयंत्र के गुंबद की ओर 1100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से बढ़े।

India and Israel Made This Strategy : इसके बाद वे ओसिरक के परमाणु संयंत्र के गुंबद की ओर 1100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से बढ़े। एक के बाद एक 16 बम संयंत्र पर गिराए गए, जिनमें केवल  2 में विस्फोट नहीं हुआ, बाक़ी बम ने अपना काम कर दिखाया। फ्रांसीसी डिज़ाइन में तैयार संयंत्र इन धमाकों में नष्ट हो गया। इराक़ की एंटी-एयरक्राफ्ट बंदूक़ों ने गरजना शुरू किया लेकिन तब तक इसराइली विमान 12,000 फ़ीट की ऊंचाई पर पहुंचकर वापस लौट चुके थे।
कोई भी इराक़ी विमान, इसराइली विमानों का पीछा नहीं कर सका। जब इसराइली विमान अपने देश लौटे तब उनके टैंकों में 450 लीटर ईंधन बचा हुआ था जिससे विमान 270 किलोमीटर की दूरी तय कर सकते थे। इस हमले में 11 सैनिकों और एक फ्रांसीसी नागरिक के मारे जाने की आधिकारिक पुष्टि हुई थी। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने इसराइली हमले की निंदा की थी। दूसरी ओर, इसराइल ने इराक़ में परमाणु संयंत्र के निर्माण में मदद करने के लिए फ़्रांस और इटली की आलोचना की थी।लेकिन इसराइल के ख़िलाफ़ किसी तरह की कार्रवाई नहीं हुई थी। लेकिन इस हमले से दुनिया भर के सिक्योरिटी एक्सपर्ट हैरान रह गए थे।

जब पाकिस्तान के लिए बनाई गई योजना

India and Israel Made This Strategy : भारत में 1975 में आपातकाल लगा, इसके बाद 1977 में हुए आम चुनाव में कांग्रेस पार्टी की हार हुई और देश में पहली बार ग़ैर-कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ था। यह सरकार पूरी तरह से गांधीवादी गुजराती नेता मोरारजी देसाई के नेतृत्व में थी। देसाई यह मानते थे कि 1971 में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध के बाद भारत की ख़ुफ़िया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) देश के नेताओं की निगरानी कर रही थी।
इसलिए जब जनता पार्टी की सरकार बनी तो मोरारजी देसाई ने रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के बजट में 30 प्रतिशत की कटौती कर दी। इसके अलावा पाकिस्तान को परमाणु संपन्न राष्ट्र बनने से रोकने के लिए एक गुप्त अभियान भी चलाया गया।
2018 में पाकिस्तान के ग्रुप कैप्टन एसएम हाली ने पाकिस्तान डिफ़ेंस जनरल पत्रिका में एक आलेख लिखा था। इस लेख में उन्होंने कहा था, '1977 में रॉ के एक एजेंट को पाकिस्तान के कहूटा परमाणु संयंत्र का ब्लू प्रिंट मिल गया था, उसने इसे भारत को देने के लिए दस हज़ार डॉलर मांगे थे।'

रॉ के एजेंट को पकड़ लिया गया और भारत को वह सीक्रेट ब्लू प्रिंट नहीं मिल पाया

India and Israel Made This Strategy : 'जब भारत के प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को इसका पता चला तो उन्होंने पाकिस्तान के सैन्य शासक जनरल ज़िया उल हक़ को फ़ोन किया और कहा कि हमें मालूम है कि कहूटा में आप लोग परमाणु बम बना रहे हैं।' इसका परिणाम यह हुआ कि जांच शुरू हुई और रॉ के एजेंट को पकड़ लिया गया और भारत को वह सीक्रेट ब्लू प्रिंट नहीं मिल पाया।
लेकिन रॉ को संदेह हो चुका था पाकिस्तान परमाणु संयंत्र तैयार करने पर काम शुरू कर चुका है, इसलिए रॉ ने पाकिस्तान में मौजूद अपने एजेंटों को सक्रिय किया। अपने गुप्त अभियान में रॉ ने पाया कि यह परमाणु अभियान इस्लामाबाद के नज़दीक कहूटा में चलाया जा रहा है। इस बात की पुष्टि के लिए रॉ के एजेंटों ने कहूटा के उस सैलून से बालों के सैंपल हासिल किए, जहां कहूटा संयंत्र के परमाणु वैज्ञानिक अपने बाल कटवाने जाते थे।
उनके बालों के सैंपल को भारत भेजा गया, जहां वैज्ञानिक परीक्षणों में मालूम चला कि उन बालों में रेडियोएक्टिव गुण मौजूद थे, जिससे स्पष्ट हो रहा था कि ये वैज्ञानिक जहां काम कर रहे हैं वहां परमाणु संयंत्र संबंधित अभियान चलाया जा रहा था। इस जानकारी को हासिल करने के बाद भारत ने कहूटा के प्लांट का ब्लू प्रिंट हासिल करने के लिए गुप्त अभियान चलाया।
तब तक भारत में इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री के तौर पर वापसी कर चुकी थीं और रॉ ने आपरेशन कहूटा शुरू किया। भारत कहूटा स्थित परमाणु संयंत्र को उसी तरह से नष्ट करना चाहता था जिस तरह से इसराइल ने इराक़ के निर्माणाधीन परमाणु संयंत्र को नष्ट किया था।

क्या इसराइल ने की थी मदद की पेशकश?

India and Israel Made This Strategy : भारत के एक सेवानिवृत वायुसेना अधिकारी के मुताबिक़, 'खाड़ी देशों से भारतीय वायु सीमा में प्रवेश करने वाले विमानों का मुख्य गेट गुजरात का जामनगर है। यही वजह है कि विदेश से ख़रीदे गए एयरक्राफ्ट इसी रूट से भारत लाए जाते हैं।'
'रफ़ाल विमान को भी जामनगर ही आना था लेकिन बाद में विमान और उसके पायलटों की क्षमता को प्रदर्शित करने के लिए इसे बाद में अंबाला में लाया गया, लेकिन यह निश्चित तौर पर नहीं कह सकता।' 'डिसेप्शन: पाकिस्तान, द यूनाइटेड स्टेट्स एंड द ग्लोबल न्यूक्लियर कांस्पिरेसी' में पत्रकार एड्रियन लेवी और कैथरीन स्कॉट क्लार्क ने दावा किया है कि भारत ने जगुआर विमानों की मदद से पाकिस्तान के कहूटा परमाणु संयंत्र पर हमला करने की योजना बनाई थी।
फ़रवरी, 1983 में भारत के शीर्ष सैन्य अधिकारियों ने गुप्त रूप से इसराइल का दौरा किया था। इस दौरे के दौरान भारतीय सैन्य अधिकारियों ने ऐसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण के बारे में जानने की कोशिश की थी जो कहूटा संयंत्र की सुरक्षा व्यवस्था के बारे में पता लगा सके।

इसराइल ने भारत को पाकिस्तान के एफ़-16 लड़ाकू विमानों के बारे में तकनीकी जानकारी दी थी

India and Israel Made This Strategy : इसराइल ने भारत को पाकिस्तान के एफ़-16 लड़ाकू विमानों के बारे में तकनीकी जानकारी दी थी। वहीं इसके बदले में भारत ने इसराइल को मिग-23 विमान के बारे में तकनीकी जानकारी मुहैया करायी थी। इसराइल को इस सोवियत विमान के बारे में जानकारी की इसलिए ज़रूरत थी क्योंकि पड़ोस के अरब देशों के पास यही विमान मौजूद था।
इसके बारे में वरिष्ठ सुरक्षा विश्लेषक भरत कर्नाड ने अपने ब्लॉग में लिखा था, 'मैं बेरूत में 1983 में इसराइल के प्रसिद्ध एवं रिटायर हो चुके सैन्य खुफ़िया प्रमुख एरोन यारीव से मिला था। उन्होंने इसके बारे में मुझे नाश्ते पर बताया था।' प्लान के मुताबिक़, 6 एफ़-16 लड़ाकू विमान और 6 एफ़-15 विमान इसराइल के हाइफ़ा से उड़ान भर कर दक्षिण अरब सागर के रास्ते से जामनगर में लैंड करते। वहां इसके पायलट और सदस्य आराम करते और ज़रूरी बदलाव करते।

इसराइली वायु सेना का कार्गो विमान सी-17 उधमपुर हवाई अड्डे पर विस्फोटकों और अन्य उपकरणों के साथ लैंड करता

वो लिखते हैं, 'इसी दौरान इसराइली वायु सेना का कार्गो विमान सी-17 जम्मू और कश्मीर के उधमपुर हवाई अड्डे पर विस्फोटकों और अन्य उपकरणों के साथ लैंड करता। एफ़-16 विमान को जामनगर से उड़कर हवा में ही ईंधन भरवाते हुए उधमपुर पहुंचना था।' 'यहां से ये विमान पाकिस्तान की सीमा में प्रवेश करते, पर्वतीय इलाके से गुज़रने की वजह से ये रडार से बच सकते थे। जब ये विमान पर्वतीय इलाके से खुले में आते तब  2 एफ़-16 विमान कहूटा परमाणु संयंत्र पर बम गिराते।'
'इस दौरान एफ़-15 विमान हवा में मंडराते रहते और पाकिस्तानी वायु सेना की किसी कार्रवाई का जवाब देते। इस हमले के बाद एफ़-16 विमान पश्चिम की ओर बढ़ते हुए पाकिस्तान की वायुसीमा से बाहर निकल जाते। कम ऊंचाई पर उड़ान भरते हुए वे दक्षिण की ओर जाते और पहाड़ों में उड़ते हुए वे अपने ठिकाने पर उतर जाते। इसराइली सैन्य रणनीतिकारों के मुताबिक पहाड़ों में इसराइली विमानों का पीछा पाकिस्तानी विमान नहीं कर सकते थे।'

इसराइल चाहता था कि भारत इस हमले में उसका साथ दे

भरत कर्नाड ने इसराइली सैन्य ख़ुफ़िया प्रमुख के साथ अपनी बातचीत का हवाला देते हुए यह भी लिखा है, 'इसराइली मानते हैं कि भारत ने इस हमले में अपनी संलिप्ता से इनकार कर दिया था। यही वजह थी कि इसराइल इस बात पर तैयार हो गया था कि उसके विमानों पर उसके सैन्य चिन्ह मौजूद होंगे। इसराइल चाहता था कि भारत इस हमले में उसका साथ दे।'
उन्होंने बीबीसी से कहा, 'गुजरात के जामनगर एयरबेस में इसराइली विमानों के उतरने और पाकिस्तान के कहूटा परमाणु संयंत्र पर हमले को लेकर काफ़ी बात हुई है। बाद में अमेरिका और हंगरी के डीक्लासिफ़ाइड दस्तावेज़ों से पता चला है कि कि इस योजना को लेकर अमेरिका और सोवियत संघ चिंतित थे। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि उनके पास कोई ठोस जानकारी थी या वे केवल अनुमान लगा रहे थे। इसलिए इस मुद्दे पर कुछ स्पष्टता से नहीं कहा जा सकता।'

यूरेनियम तकनीक बेचने का आरोप भी लगा

तेल अवीव से छपने वाले समाचार पत्र यरूशलम पोस्ट ने फ़रवरी, 1987 में दावा किया था कि इसराइली सैन्य अधिकारियों ने तीन बार भारत से कहूटा परमाणु संयंत्र पर संयुक्त हमले के बारे में बात की थी। डॉ. राजगोपालन के मुताबिक़, इसराइल के लिए इसराइल से जामनगर की लंबी दूरी गुप्त ढंग से तय करना और इसके बाद अपनी मौजूदगी को गुप्त रखना बेहद मुश्किल था।
इसराइल को उस वक़्त संदेह था कि अगर पाकिस्तान परमाणु बम बना लेगा तो उसकी पहुंच इराक़, लीबिया और ईरान तक हो जाएगी। पाकिस्तान के शीर्ष परमाणु वैज्ञानिक अब्दुल क़दीर ख़ान पर यूरोपीय संघ की कंपनियों, ईरान, लीबिया और उत्तरी कोरिया से यूरेनियम तकनीक बेचने का आरोप भी लगा।

22 सितंबर, 1984 को जानकारी दी कि भारत पाकिस्तान पर हवाई हमला कर सकता है

डीक्लासिफ़ाइड दस्तावेज़ों के मुताबिक़, पाकिस्तान स्थित अमेरिकी राजदूत ने तब के सैन्य शासन जनरल ज़िया उल हक़ को यह भरोसा दिया था कि अगर उन लोगों को कहूटा परमाणु संयंत्र पर भारत के किसी हमले की जानकारी मिलती है तो वह उसे पाकिस्तान के साथ साझा करेगा। अमेरिकी सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (सीआईए) के उप निदेशक ने पाकिस्तान के वरिष्ठ अधिकारियों को 22 सितंबर, 1984 को जानकारी दी कि भारत पाकिस्तान पर हवाई हमला कर सकता है।
इसी दिन एबीसी टेलीविज़न ने सीआईए के अमेरिकी सीनेट की सिक्योरिटी सबकमिटी में ऐसे हमले की आशंका जताने वाली ख़बर प्रसारित की। इन सबसे ज़ाहिर हो रहा है कि भारत पर पश्चिमी देशों का दबाव बढ़ा होगा जिसके चलते भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने योजना को रद्द किया होगा। इसके एक महीने बाद ही 31 अक्टूबर, 1984 को श्रीमति इंदिरा गांधी के बॉडीगार्ड्स ने ही उनकी हत्या कर दी और उसके बाद उनके बेटे राजीव गांधी भारत के प्रधानमंत्री बने।

इसराइल के साथ भारत के संबंध

15 मई, 1948 को यहूदियों के देश के तौर पर इसराइल विश्व नक्शे पर आया। इस ऐतिहासिक घटनाक्रम से नौ महीने पहले भारत को आज़ादी मिली थी। भारत ने इसराइल को मान्यता देने में क़रीब ढाई साल लगाए। 15 सितंबर, 1950 को भारत ने इसराइल की मान्यता मानी, इसके बाद 1951 को इसराइल ने तत्कालीन बंबई में अपना दूतावास खोला। भारत भी 1952 में इसराइल में दूतावास खोलना चाहता था लेकिन बाद में इस निर्णय को टाल दिया गया।
1956 में मिस्र के राष्ट्रपति नासिर ने स्वेज़ नहर के राष्ट्रीयकरण की घोषणा की, पहले इस नहर पर ब्रिटेन और फ्रांस का स्वामित्व था। इसराइल ने तब मिस्र पर हमला कर दिया था। इस युद्ध में ब्रिटेन और फ्रांस भी शामिल हुए। युद्ध में इसराइल की भूमिका को देखते हुए भारत ने वहां दूतावास स्थापित करने का विचार त्याग दिया था। लेकिन दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध जारी रहे। 1968 में इंटेलिजेंस ब्यूरो से अलग करके रॉ की स्थापना हुई और इसके बाद दोनों देशों के बीच खुफ़िया संबंध बढ़ने लगे।

भारत के सैन्य या खुफ़िया अधिकारी तुर्की और साइप्रस के रास्ते इसराइल पहुंचते थे

सुरक्षा विशेषज्ञ राहुल बेदी ने बीबीसी से पहले कहा है कि 1965 और 1971 के युद्ध के दौरान इसराइल ने गुप्त तौर पर भारत की मदद की थी, तब भारत के सैन्य या खुफ़िया अधिकारी तुर्की और साइप्रस के रास्ते इसराइल पहुंचते थे। उनके पासपोर्ट पर इसराइल अपने स्टांप नहीं लगाता था बल्कि उन्हें एक पेपर दिया जाता था जिसके आधार पर वे इलाक़े में यात्रा करते थे।
बहरहाल, भारत ने इसराइल में अपना दूतावास 1992 में खोला। साल 2000 में तत्कालीन गृह मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी इसराइल गए। यह भारत के किसी शीर्ष मंत्री की ओर से इसराइल का पहला दौरा था। 2003 में गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी ने इसराइल का दौरा किया था। प्रधानमंत्री बनने से पहले नरेंद्र मोदी ने खेती किसानी और डेयरी क्षेत्र में गुजरात और इसराइल के संबंधों को मज़बूत किया था।

2014 में नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने तो इसराइल के प्रधानमंत्री नेतान्याहू बने

भारत और इसराइल 2014 में नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने तो इसराइल के प्रधानमंत्री नेतान्याहू बने। इसके बाद से दोनों देशों के आपसी रिश्ते मज़बूत हुए। पहले भारत और इसराइली के बीच हीरा, दवाइयां, खेती और डेयरी को लेकर आपसी संबंध थे, जो सुरक्षा के साथ-साथ दूसरे क्षेत्रों में भी तेज़ी से बढ़े हैं।
भारत के पूर्व वरिष्ठ नौकरशाह के। सुब्रमण्यम ने अपनी किताब '1964-98 ए पर्सनल रिकलेक्शन' में लिखा है कि पश्चिमी मीडिया में भारत और पाकिस्तान के परमाणु संयंत्र पर हमले की ख़बर लगातार छपा करती थीं, जिसे देखते हुए उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को पाकिस्तान के परमाणु संयंत्र पर हमला नहीं करने की सलाह दी थी।

भारत और पाकिस्तान, 1985 में मौखिक तौर पर एक दूसरे के परमाणु संयंत्र पर हमला नहीं करने के लिए तैयार हुए थे

भारत और पाकिस्तान, 1985 में मौखिक तौर पर एक दूसरे के परमाणु संयंत्र पर हमला नहीं करने के लिए तैयार हुए थे, जिस पर आधिकारिक सहमति 1988 में हुई लेकिन यह समझौते के तौर पर 1991 में तैयार हुआ। 1992 से भारत और पाकिस्तान, अपने-अपने देशों के परमाणु संयंत्रों की सूची एक दूसरे को साल के पहले दिन सौंपते हैं।
राजीव गांधी अपने प्रधानमंत्री वाले कार्यकाल में इसराइली प्रधानमंत्री से मिले थे। यह दोनों देशों के बीच प्रधानमंत्री स्तर की पहली मुलाक़ात थी। भारत ने अपने वीआईपी लोगों की सुरक्षा के लिए नेशनल सिक्योरिटी गार्ड्स और स्पेशल प्रोटेक्शन गार्ड्स को इसराइली कमांडो की तर्ज़ पर तैयार किया। इसराइल ने इन सबकी ट्रेनिंग में भारत की बहुत मदद की।

भारत ने 1998 में परमाणु परीक्षण किया, जिसके बाद पाकिस्तान ने भी परमाणु परीक्षण कर दिखाया

भारत ने 1998 में परमाणु परीक्षण किया, जिसके बाद पाकिस्तान ने भी परमाणु परीक्षण कर दिखाया। लेकिन पाकिस्तान ने यह परीक्षण गोपनीयता के साथ नहीं किया। सैटेलाइट तस्वीरों से यह दुनिया को पता चला।
इसके बाद अंतरराष्ट्रीय दबावों के बाद भी पाकिस्तान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को जारी रखा। उस वक्त पाकिस्तान ने दावा किया था कि भारत और इसराइल ने संयुक्त तौर पर उसके परमाणु कार्यक्रम को रोकने की कोशिश की थी और इसराइली विमानों ने  2 बार उसकी सीमा में प्रवेश की कोशिश की थी। हालांकि तब इसराइल और भारत ने पाकिस्तान के आरोपों को ग़लत बताया था।

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