‘यादव लैंड’ में BJP पुराना प्रदर्शन दोहराएगी या गढ़ बचाने में कामयाब होगी सपा?

सैफई गांव के लोगों का कहना है कि यहां समाजवादी पार्टी को किसी से चुनौती नहीं मिल रही है. गांव के ही एक युवक अभिषेक यादव कहते हैं, “यहां तो कोई टक्कर है ही नहीं, पूरे प्रदेश में भी सपा ही जीत रही है. बीजेपी सरकार से सभी लोग परेशान हैं
‘यादव लैंड’ में BJP पुराना प्रदर्शन दोहराएगी या गढ़ बचाने में कामयाब होगी सपा?

यूपी से वरिष्ठ पत्रकार समीरात्मज मिश्र की खास रिपोर्ट. “ओपीएस यानी पुरानी पेंशन स्कीम का मुद्दा कहीं दिख नहीं रहा है लेकिन चुनाव में सत्तारूढ़ पार्टी पर तगड़ी चोट करने जा रहा है. सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह है कि सरकार ने इस मुद्दे पर कर्मचारियों की बात तक नहीं सुनी है. लेकिन चुनाव में कर्मचारी शायद अपनी बात सरकार को सुना देंगे.”

इटावा शहर में एक चाय की दुकान पर कुछ लोगों के बीच चल रही चर्चा के दौरान बेसिक स्कूल के एक शिक्षक धीरेंद्र कुमार ने यह बात कही. वहां मौजूद दूसरे लोगों, जिनमें कई शिक्षक और अन्य विभागों के सरकारी कर्मचारी थे, वो भी इस बात से सहमत दिखे.

जिस वक्त लोगों से यह बात हो रही थी, उससे कुछ देर पहले ही इटावा सदर की मौजूदा बीजेपी विधायक सरिता भदौरिया का एक वीडियो वायरल हो रही थी जिसमें वो मतदाताओं की बेरुखी के प्रति अपनी झुंधलाहट जता रही थीं. वीडियो में सरिता भदौरिया एक सभा में कहती दिख रही हैं, “गल्ला खा गए, रुपया खा गए, नमक खा गए, सब कुछ खा गए. फिर भी ये लोग नहीं कहते हैं कि वोट देंगे? इनके पास जाते हैं तो नमस्कार भी स्वीकार नहीं कर रहे हैं.”

उनकी इस बात का जवाब हमें इससे पहले ही मैनपुरी में मिल गया था जब खेत में काम कर रहे कुछ दलित समुदाय के लोगों से हमारी बात हो रही थी. उन्हीं लोगों में से एक राम नारायण का कहना था, “राशन, नमक और तेल सरकार अपने घर से थोड़ी न दे रही है. वो तो हमारा ही पैसा है. सिलिंडर दे दिया और दाम छह सौ रुपये से बढ़ाकर एक हजार रुपये कर दिया. इससे अच्छा कुछ न दे, लेकिन महंगाई तो इतनी न बढ़ाए.”

इटावा जिला ‘यादव लैंड’ कहे जाने वाले यूपी के उस इलाके का प्रमुख शहर है जिसे समाजवादी पार्टी का गढ़ कहा जाता है और सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव का पैतृक गांव सैफई भी इसे जिले में और इसी जिले की जसवंतनगर सीट के अंतर्गत आता है. जसवंतनगर सीट से शिवपाल सिंह यादव सपा गठबंधन के उम्मीदवार हैं और वो ही यहां के मौजूदा विधायक भी हैं. बीजेपी ने यहां से विवेक शाक्य और बीएसपी ने ब्रजेंद्र सिंह को यहां से चुनाव मैदान में उतारा है. 1980 के बाद से इस सीट पर मुलायम सिंह यादव के ही परिवार का कब्जा रहा है.
सैफई गांव के लोगों का कहना है कि यहां समाजवादी पार्टी को किसी से चुनौती नहीं मिल रही है. गांव के ही एक युवक अभिषेक यादव कहते हैं, “यहां तो कोई टक्कर है ही नहीं, पूरे प्रदेश में भी सपा ही जीत रही है. बीजेपी सरकार से सभी लोग परेशान हैं. महंगाई इतनी बढ़ गई है, नौकरियां हैं नहीं, रोजगार ठप पड़े हैं और पार्टी के नेता इस तरह से बोलते हैं जैसे उन्होंने सब कुछ दे दिया हो.”

वहीं मौजूद एक सत्तर वर्षीय बुजुर्ग मेवालाल कहने लगे, “सबसे बड़ी समस्या तो इन पशुओं की है जो हमारे खेत चर जा रहे हैं. पशुओं के कारण एक्सीडेंट में कितनी जानें चली गई हैं. हम लोगों ने तो कुछ फसलों को बोना ही छोड़ दिया है. सरकार बदलना जरूरी हो गया है.”

इटावा के पड़ोसी जिले मैनपुरी की करहल सीट से सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव चुनाव लड़ रहे हैं जिनका मुकाबला केंद्रीय मंत्री एसपीएस बघेल से है. गुरुवार को करहल में बीजेपी नेता अमित शाह और सपा नेता अखिलेश यादव की अलग-अलग जगहों पर सभाएं थीं. करहल चौराहे पर समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता नारे लगाते हुए वहां से जा रहे थे. चौराहे पर कुछ लोगों से बातचीत होने लगी तो वो बीजेपी सरकार के समर्थक दिखे.

जितेंद्र कुमार कहने लगे, “हम हिन्दू हैं और बीजेपी ने राम मंदिर बनवाया है, इसलिए बीजेपी को ही वोट देंगे. समाजवादी पार्टी की जब सरकार थी तब कारसेवकों पर गोली चली थी. इस सरकार में गुंडागर्दी बिल्कुल बंद है और लोगों को सरकार हर तरह की सुविधाएं दे रही है. सपा सरकार में गुंडागर्दी बहुत ज्यादा रहती थी.”

इटावा जिले में तीन विधानसभा सीटें- जसवंतनगर, इटावा सदर और भरथना हैं और यहां 20 फरवरी को तीसरे चरण में मतदान होने हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने दो सीटें जीती थीं और जसवंत नगर सीट से शिवपाल यादव समाजवादी पार्टी से जीते थे लेकिन बाद में उन्होंने अपनी पार्टी बना ली थी. इस बार उनकी पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया का समाजवादी पार्टी से गठबंधन है.
इटावा विधानसभा सीट से बीजेपी ने अपने मौजूदा विधायक सरिता भदौरिया पर भरोसा जताया है जबकि समाजवादी पार्टी ने सर्वेश कुमार शाक्य को टिकट दिया है. बीएसपी ने कुलदीप गुप्ता को टिकट देकर इस मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश की है तो वहीं कांग्रेस ने मोहम्मद राशिद को मैदान में उतारकर मुकबाले को और रोचक बना दिया है. हालांकि ज्यादातर लोगों का यही कहना है कि मुख्य मुकाबला बीजेपी और समाजवादी पार्टी में ही है.
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मैनपुरी जिले में चार विधान सभा सीटें हैं जिनमें सिर्फ भोगांव सीट पर ही बीजेपी को साल 2017 में जीत मिली थी जबकि बीजेपी की लहर के बावजूद समाजवादी पार्टी ने बाकी तीन सीटें- करहल, मैनपुरी सदर और किशनी सीटें जीतने में कामयाब रही थी. बताया जा रहा है कि करहल विधानसभा सीट का चुनाव भी अखिलेश यादव ने इसलिए किया है क्योंकि यह उनके लिए सबसे सुरक्षित सीट मानी जा रही थी. बीजेपी ने इस सीट के उनके चयन पर सवाल भी उठाए थे.
तीसरे चरण में यूपी प्रदेश के तीन हिस्सों में एक साथ चुनाव हो रहे हैं. पश्चिमी यूपी और बुंदेलखंड के साथ-साथ अवध क्षेत्र की भी कुछ सीटों पर इस चरण में मतदान होने हैं. इस चरण में पश्चिमी यूपी के फिरोजाबाद, मैनपुरी, एटा, कासगंज और हाथरस जैसे पांच जिलों की 19 सीटों पर, बुंदेलखंड के झांसी, जालौन, ललितपुर, हमीरपुर और महोबा जिले की 13 सीटों पर जबकि अवध क्षेत्र के छह जिलों कानपुर, कानपुर देहात, औरैया, फर्रुखाबाद, कन्नौज और इटावा की 27 सीटों पर मतदान होने हैं.
साल 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी इन इलाकों की 59 में से 49 सीटों पर लगभग इकतरफा जीत दर्ज की थी जबकि 8 सीटें समाजवादी पार्टी के पास गई थीं और एक-एक सीटें कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी के खाते में गई थीं. 2017 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस पार्टी का गठबंधन था जबकि इस बार दोनों अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं. बीजेपी के सामने पिछला प्रदर्शन दोहराने की चुनौती है तो समाजवादी पार्टी की कोशिश है कि अपने इस गढ़ में ज्यादा से ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज करे.
इस चरण की 59 में से 30 विधानसभा सीटों पर यादव जाति के वोट काफी ज्यादा हैं और ज्यादातर समाजवादी पार्टी के समर्थक हैं. साल 2017 में समाजवादी पार्टी के खराब प्रदर्शन की वजहें शिवपाल यादव का अलग चुनाव लड़ना और गैरयादव पिछड़े वर्गों का बीजेपी की ओर लामबंद होना प्रमुख रहे. लेकिन इस बार ये दोनों परिस्थितियां वैसी नहीं हैं और दूसरी ओर अल्पसंख्यक वर्ग का सपा की ओर लगभग एकीकृत होना भी उसे फायदा पहुंचा रहा है. यही नहीं, पिछड़े वर्गों के अलावा उच्च वर्गों मसलन ब्राह्मणों का भी कुछ हद तक समाजवादी पार्टी की ओर झुकाव बीजेपी के लिए नुकसान दायक साबित हो सकता है.

समीरात्मज मिश्र वरिष्ठ पत्रकार हैं. लंबे समय तक बीबीसी में संवाददाता रहे हैं. इस समय जर्मनी के पब्लिक ब्रॉडकास्टर डीडब्ल्यू से जुड़े हैं और यूट्यूब चैनल ‘द ग्राउंड रिपोर्ट’ के संपादक हैं.

ये एना​लेसिस यूपी चुनाव को लेकर बन रही श्रृंखला का लेख है, इस श्रृंखला में आगे भी यूपी चुनाव 2022 के राजनैतिक समीकरणों और जनता के रुझान को लेकर के समीक्षा निंरतर जारी रहेगी।

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