गुजरात में विधानसभा चुनाव को लेकर राज्य में प्रचार अभियान जोर पकड़ चुका है। भाजपा और कांग्रेस के बीच मुख्य मुकाबला देखते रहे इस राज्य में पहली बार सभी सीटों पर आम आदमी पार्टी भी चुनाव लड़ रही है। ऐसे में इस बार गुजरात में त्रिकोणीय मुकाबला हो रहा है। आम आदमी पार्टी की एंट्री से सीधा-सीधा फायदा भाजपा को ही होना तय है। इस कारण यह है कि पीएम मोदी के गृहराज्य गुजरात में पिछले 27 सालों से भाजपा शासन में है। प्रदेश में जहां पीएम मोदी के नाम से वोट मिलते हैं, वहीं भाजपा का वहां परापंरागत वोट बैंक है।
ऐसे में गुजरात में आम आदमी पार्टी की एंट्री से कांग्रेस का वोट बैंक प्रभावित होगा और इसका सीधा-सीधा फायदा सत्तारूढ़ दल भाजपा को ही होगा। क्योंकि आम आदमी पार्टी का प्रभाव गुजरात में मुस्लिम मतदाताओं पर अधिक पड़ने वाला है। भाजपा के हिंदू वोटर पर इसका कोई खास प्रभाव आम आदमी पार्टी का पड़ने वाला नहीं है। ऐसे में यदि आम आदमी पार्टी का प्रदेश में जादू चलता है तो वह कांग्रेस को ही नुकसान पहुंचाएगी। हाल ही हुए एक सर्वे में भी यह बात सामने आ चुकी है।
गुजरात विधानसभा चुनाव को लेकर हाल ही हुए एक सर्वे की मानें तो 182 सीटों वाली विधानसभा में भाजपा एक बार फिर सत्ता पर काबिज हो सकती है। पीएम मोदी के गृहराज्य में पिछले 27 सालों से भाजपा शासन में है और इस बार पार्टी को जबर्दस्त सफलता मिलती दिख रही है। सर्वे के मुताबिक भाजपा 135 से 143 सीटों पर जीत हासिल कर सकती है। पिछली बार 99 सीटें जीतने वाली कांग्रेस 36-44 सीटों पर सिमट सकती है। वहीं अरविंद केजरीवाल की कड़ी मेहनत के बावजूद 'आप' को 0-2 सीटें मिलने का ही अनुमान लगाया गया है। 0-3 सीटों पर अन्य को सफलता मिल सकती है।
वोट शेयर पर नजर डालें तो बीजेपी को 2017 विधानसभा चुनाव के मुकाबले कुछ नुकसान होता दिख रहा है। वहीं, आम आदमी पार्टी कांग्रेस के बड़े वोट शेयर को झटक सकती है। बीजेपी को इस बार 46.8 फीसदी वोट शेयर मिलने का अनुमान जताया गया है, जबकि 2019 में पार्टी को 49.1 फीसदी वोट शेयर मिले थे। कांग्रेस को इस बार 32.3 फीसदी वोट मिलने की संभावना जताई गई है, जबकि 5 साल पहले पार्टी को 41.4 फीसदी वोट मिले थे।
केजरीवाल की पार्टी को 17.4 फीसदी वोट मिल सकते हैं। 'आप' की मजबूती से कांग्रेस को 9.1 फीसदी वोट शेयर का नुकसान होता दिख रहा है। वहीं, बीजपी का वोट शेयर 2.3 फीसदी ही कम होने का अनुमान है। इस लिहाज से देखा जाए तो केजरीवाल की पार्टी कांग्रेस के लिए ज्यादा बड़ी टेंशन बन सकती है।
2017 में आम आदमी पार्टी ने पहली बार गुजरात में एंट्री की थी। तब पार्टी ने 29 सीटों पर ही उम्मीदवार उतारे थे और प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा था। पार्टी को इन 29 सीटों पर 29517 वोट मिले थे जोकि नोटा से भी बेहद कम था। इन सीटों पर 75,880 लोगों ने नोटा का बटन दबाया था।
2017 के निराशाजनक प्रदर्शन के बावजूद केजरीवाल की पार्टी गुजरात में लगातार मेहनत करती रही। पार्टी ने अपने संगठन को काफी मजबूत किया है तो केजरीवाल समेत पार्टी के बड़े नेताओं ने यहां बार-बार दौरे करते हुए 'दिल्ली मॉडल' के सहारे जनता के सामने तीसरा विकल्प पेश करने की कोशिश की है। यदि चुनाव परिणाम ओपिनियन पोल जैसे रहे तब भी वोट शेयर के मामले में 'आप' की सफलता बेहद खास होगी।
इस बार AIMIM चीफ असुददीन ओवैसी ने भी गुजरात चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। पहली बार गुजरात चुनाव में उतरी AIMIM पार्टी अपने परंपरागत मुस्लिम वोट बैंक के भरोसे ही मैदान में है, ऐसे में आम आदमी पार्टी से असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM पार्टी का ही वोट बैंक प्रभावित होगा। इसीलिए असदुद्दीन ओवैसी आप पार्टी और उसके नेता अरविंद केजरीवाल से खासे खफा हैं। हाल ही में असदुद्दीन ओवैसी ने अहमदाबाद में दिल्ली के सीएम अरिवंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी पर निशाना साधते हुए APP को छोटा रिचार्ज बताया है।
असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, ''जब कोविड शुरू हुआ था तब इसी छोटा रिचार्ज (अरविंद केजरीवाल और आप) ने तबलीगी जमात पर इसे फैलाने का इल्जाम लगाया था ताकि सबको यह बदनाम कर सके। मामला कोर्ट में गया तो अदालत ने कहा कि यह सब झूठ है। दिल्ली में जब दंगे हो रहे थे तो लोग इंसान नहीं हैवान बनकर एक दूसरे को मार रहे थे। इस दौरान यह दिल्ली के मुख्यमंत्री कहां थे? वो लोगों के गुस्से को कम करने की बजाय राजघाट पर मौन व्रत कर रहे थे।"
असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि ओखला में कचरे का अंबार लगा है लेकिन उस पर यह छोटा रिचार्ज कुछ नहीं बोला। इनसे जब बिलकिस बानो पर बोलने के लिए कहा गया तो इन्होंने चुप्पी साध ली। यह कहते हैं कि भारत में जो करंसी नोट है, उस पर किसी दूसरे की फोटो लगा दो। कहते हैं कि इसे नौकरी आ जाएगी। भारत क्या किसी मजहब का है। इंडिया तो सब धर्म को मानता है। साथ ही यह उन्हें भी मानता है जिसका किसी धर्म में विश्वास नहीं है। छोटा रिचार्ज कह रहा है कि छोटे मोदी से अब मैं बड़ा मोदी बनना चाहता हूं। साथ ही उन्होंने सवाल किया कि दिल्ली में प्रदूषण का कौन जिम्मेदार है?
असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम गुजरात की 182 विधानसभा सीटों में सें 40-45 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है। पार्टी अब तक अहमदाबाद की तीन और सूरत की दो सीटों के लिए उम्मीदवार उतार चुकी है। बता दें कि फरवरी 2021 में हुए स्थानीय निकाय चुनावों में एआईएमआईएम ने 40 में से 26 सीट जीती थीं।
2011 की जनगणना के अनुसार, गुजरात राज्य में हिंदू बहुसंख्यक हैं। हिंदू धर्म गुजरात की आबादी का 88।57 फीसदी है। गुजरात में मुस्लिम आबादी कुल 6।04 करोड़ में से 58।47 लाख (9।67 प्रतिशत) है। राज्य में मुस्लिम आबादी बेशक कम हो लेकिन 34 विधानसभा क्षेत्रों में, मुस्लिम मतदाताओं की आबादी 15 प्रतिशत से अधिक है।
वहीं गुजरात में 20 विधानसभा क्षेत्र हैं जहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 20 प्रतिशत से अधिक है। इन 20 सीटों में से चार अहमदाबाद जिले में हैं जबकि तीन-तीन भरूच और कच्छ जिले में हैं। इन आंकड़ों को देख कर कोई भी कह सकता है कि राज्य में कई सीटों पर मुस्लिम वोटर्स उम्मीदवार की जीत और हार तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
जमालपुर-खड़िया के मौजूदा कांग्रेस विधायक इमरान खेड़ावाला ने एक मीडिया हाउस को दिए साक्षात्कार में एआईएमआईएम के इरादों पर सवाल उठाया था। उन्होंने कहा “मेरी सीट का मुस्लिम-हिंदू अनुपात 60:40 है, लेकिन अगर मुझे हिंदू समुदाय के वोट नहीं मिले तो मैं जीत नहीं सकता। AIMIM सीधे तौर पर बीजेपी को फायदा पहुंचाएंगे।''