गुजरात विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो गया है। इस बार चुनावी रण में भाजपा-कांग्रेस के साथ आम आदमी पार्टी भी ताल ठोक रही है। हालांकि सत्ताधारी भाजपा ने इस बार अपनी चुनावी रणनीति बदली है। 27 वर्ष बाद अपना गढ़ बचाने के लिए पार्टी ने पुराने पन्ना प्रमुख मॉडल में बदलाव किया है। इस चुनाव में पार्टी नए मॉडल के साथ मैदान में उतर गई है। इस मॉडल को पन्ना कमेटी नाम दिया है।
वोटर लिस्ट के हर पन्ने के लिए एक कमेटी में 5 सदस्य बनाए गए है। इसमें हर सदस्य की जिम्मेदारी होगी कि वे अपने परिवार के 3 लोगों का वोट भाजपा को दिलाएगा। पार्टी ने पूरे प्रदेश में 82 लाख पन्ना सदस्य बनाए हैं। इसमें लक्ष्य है कि हर पन्ना सदस्य 3 वोट डलवाए। इस बार जीत के लिए भाजपा ने यह फॉर्मूला तैयार किया है।
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार जुलाई 2020 में 8 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा ने सबसे पहले इस मॉडल को अपनाया था। इन उपचुनावों में पार्टी सभी सीटों पर जीत हासिल की। इसके बाद फिर 2021 में गुजरात निकाय चुनाव में मॉडल को लागू किया गया। इसमें भाजपा को 80 प्रतिशत से ज्यादा सीटों पर सफलता मिली।
इस नए फॉर्मूले के तहत भाजपा ने सभी पन्ना सदस्यों को एक पहचान पत्र जारी किया है। इसमें वे भाजपा के अधिकृत कार्यकर्ता के रूप में जाने जाएंगे। वोटिंग से पहले तक मंडल या जिला स्तर के नेता अपने इलाके के सभी पन्ना सदस्यों के घर कम से कम एक बार जाएंगे।
पार्टी ने फिर से गुजरात पर कब्जा बरकरार रखने के लिए चारों दिशाओं में मोर्चाबंदी कर दी है। जातीय और भौगोलिक समीकरण को ध्यान में रखते हुए प्रदेश की 182 सीटों को चार हिस्सों (सौराष्ट्र, उत्तर, पश्चिम, मध्य क्षेत्र) में बांट दिया है। सौराष्ट्र में उत्तर प्रदेश, पश्चिम में महाराष्ट्र, उत्तर में राजस्थान और मध्य क्षेत्र में मध्यप्रदेश के भाजपा नेताओं की ड्यूटी लगाई है। इन चारों क्षेत्रों में इन राज्यों के मंत्री, विधायक, पूर्व विधायक और संघ पृष्ठभूमि के नेताओं को तैनात किया है।
मध्यप्रदेश के सीमावर्ती और मध्य गुजरात के 7 जिलों की 37 सीटों का प्रभार पूर्व विधायकों व संगठन मंत्री रह चुके नेताओं को सौंपा गया है। मध्य प्रदेश से जुड़ी गुजरात की कुछ विधानसभा सीटे आदिवासी बाहुल है। चुनाव रणनीति के हिसाब से हर सीट पर मध्यप्रदेश के दो-दो नेताओं को तैनात किया गया है। ये सभी लोग गुजरात प्रदेश इकाई के साथ दिल्ली हाईकमान को भी हर दिन की प्रोग्रेस रिपोर्ट साझा करेंगे। मध्य गुजरात की 37 सीटों पर भाजपा का कब्जा हैं।
इसी तरह उत्तर गुजरात के क्षेत्र की 9 जिलों की 43 विधानसभा सीटों पर प्रवासी राजस्थानियों की संख्या अच्छी खासी है। ऐसे में इन सीटों पर भाजपा के पक्ष में मतदान का जिम्मा राजस्थान के नेताओं को दिया जाएगा। इन 9 जिलों में कच्छ, भुज, गांधी शहर और ग्रामीण, बनासकांठा, पाटन, अहमदाबाद उत्तर और दक्षिण, मोडासा, मेहसाणा, साबरकांठा शामिल है। इन सीटों के लिए राजस्थान के पूर्व मंत्री और राजस्थान बीजेपी में प्रदेश महामंत्री सुशील कटारा को संयोजक बनाया गया है। यहां भी हर सीट पर 2-2 और उसके बाद हर जिले में भी 2-2 प्रभारी लगाए हैं।
गुजरात में 18 से 20 प्रतिशत वोटर ऐसा है जो राजस्थानी है। या फिर राजस्थानियों से व्यापार या अन्य दृष्टिकोण से जुड़ा हुआ है। इसलिए ऐसे मतदाताओं को साधने के लिए राजस्थान से प्रभारी लगाए गए हैं। चुनाव में यूपी के योगी सरकार के तीन वरिष्ठ मंत्रियों और प्रदेश के दो राज्यसभा सदस्यों को कमल खिलाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। गुजरात की जिन विधानसभा सीटों की कमान इन नेताओं को सौंपी है। उनमें से अधिकांश पर कांग्रेस काबिज है।
पार्टी इन चुनावों में भी टिकट वितरण को लेकर नो रिपीट फॉर्मूला को लागू कर सकती है। पिछले दिनों केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि, आगामी गुजरात विधानसभा चुनाव में पार्टी नए चेहरों को 25 फीसदी टिकट देगी, लेकिन टिकट के लिए उम्मीदवार के जीतने की क्षमता ही एकमात्र मापदंड है। उन्होंने साफ कहा था कि, अगर अन्य उम्मीदवारों की अपेक्षा जीतने की क्षमता होगी तो पार्टी तीन-चार बार से निर्वाचित हो रहे उम्मीदवारों को टिकट दे सकती है।
जानकारी के अनुसार, गुजरात में इस बार भाजपा हिमाचल की तर्ज पर प्रत्याशी चुन सकती है। भाजपा 25 फीसदी नए चेहरों को टिकट दिए जा सकते हैं। यदि ऐसा होता है उसे अपने मौजूदा विधायकों में बड़ी तादाद में टिकट काटने पड़ सकते हैं। ऐसे में पार्टी पूर्व विधायक और टिकट के उम्मीदवारों को भी चुनाव में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपने का भी फैसला किया है।