भारत आयुर्वेद का जनक कहा जाता हैं.यहां आयुर्वेद हर घर, रसोईघर में भी मिल जाता हैं. देश में आयुर्वेदिक दवाओं का चलन भी हैं. लेकिन अब इन दवाओं का निर्यात भी किया जा सकेगा. इसके लिए भारत सरकार लगातार कोशिश कर रही है जिनमें भारत सरकार को कई देशों में इसकी इजाजत मिल चुकी हैं. आयुर्वेद पद्धति का लोहा कोरोना काल के बाद पूरी दुनिया ने माना हैं.
बात की जाए देश की तो शायद ही ऐसा कोई घर होगा जहां गिलोय, काढ़ा और च्यवनप्राश का किसी ने सेवन ना किया हो. कोरोना काल में इनका असर हर किसी ने देखा हैं. इस वजह से अब लोगों का झुकाव भी इस और होने लगा हैं. यह लोगों में इम्यूनिटी बूस्टिंग का काम भी करते हैं. देश में अब सदियों पुरानी भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद की ओर लौट रही हैं। इसी कारण अब देश में आयुर्वेद उत्पादों का बाजार बढ़ रहा है साथ ही आयुष मंत्रालय आयुर्वेदिक के साथ अन्य भारतीय पारंपरिक दवाओं की बेहतर क्वालीटी और विदेश में दवाओं की निर्यात की क्षमता बढ़ाने में काम कर रहा हैं.
कोरोना के बाद विश्व में औषधीय जड़ी-बूटियों लेने क्रेज बढ़ा हैं. ग्रीन टी, एलोवेरा, गिलोय, हल्दी, दालचीनी, अदरक आदी जैसी औषधीय जड़ी-बूटियों के प्रति लोगों की दीवानगी देखने को मिल रही हैं. ऐसे में भारतीय चिकित्सा एवं होम्योपैथी भेषज संहिता आयोग ने अमेरिकन हर्बल फार्माकोपिया के साथ करारा किया हैं. आयुष मंत्रालय की सोच है कि दोनों देशों के बीच बराबरी, आपसी लाभ के आधार पर आयुर्वेद और अन्य भारतीय पारंपरिक औषधि प्रणालियों को आगे बढ़ाया जाए और उनके मानकीकरण का विकास हो सके.
आयुर्वेद और अन्य आयुष दवाओं ने लोगो की वर्तमान जीवन शैली के कारण पैदा होने वाली बीमारियों से निपटने में काफी ज्यादा योगदान दिया हैं. यह समझौता दो देशों के बीच ऐसे समय में हुआ हैं. जब देश का आयुष मंत्रालय और विदेश में आयुर्वेद तथा अन्य भारतीय पारंपरिक औषधीय उत्पादों की गुणवत्ता बेहतर बनाने के लिए कई कदम उठा रहा है। मंत्रालय का विश्वास है कि इस पहल से आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी और होम्योपैथी दवाओं के बारे में विश्व समुदाय में विश्वास पैदा होगा साथ ही यूएस में आयुर्वेद उत्पादों,दवाओं के बाजार के सामने आने वाली चुनौतियों को मिलकर पहचान भी कर सकेंगे और इन्हे दूर भी कर सकेंगे।
भारतीय चिकित्सा एवं होम्योपैथी भेषज संहिता आयोग ने अमेरिकन हर्बल फार्माकोपिया मिलकर उनकी मांग के अनुरूप मानक तैयार करेंगी। इस सहयोग के तहत बनने वाली आयुर्वेद मानकों को अमेरिका में हर्बल दवाओं को बनाने वाले इसे अपना लेंगे. यह बड़ा कदम कहा जा रहा हैं. इसके फलस्वरूप सहयोग के तहत विकसित आयुर्वेद मानकों को अपनाने से अमेरिकी बाजार में आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी और होम्योपैथी दवाओं को बेचने का रास्ता खुल सकेगा.
मंत्रालय के लगातार प्रयासों से दुनिया के कई देशों ने आयुष चिकित्सा पद्धतियों को मान्यता दी है. नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका, यूएई, कोलंबिया, मलेशिया, स्विटजरलैंड, दक्षिण अफ्रीका, क्यूबा, तंजानिया में आयुर्वेद को मान्यता प्राप्त हो चुकी है. यूरोपीय संघ (ईयू) के 5 देश रोमानिया, हंगरी, लातविया, सर्बिया और स्लोवेनियादेश हैं, जहां आयुर्वेदिक उपचार विनियमित है। वहीं बांग्लादेश में यूनानी प्रणाली को मान्यता प्राप्त है और श्रीलंका में सिद्ध प्रणाली को. अलावा इसके आयुष प्रणालियों के बारे में प्रमाणिक जानकारी प्रसारित करने के लिए 31 देशों में 33 आयुष सूचना प्रकोष्ठ की स्थापना की गई है।
कोरोना काल से पहले आयुर्वेदिक दवाओं का बाजारी कारोबार 15 से 20 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा था लेकिन अब इसमें 50 से 90 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई हैं. यह इस बात को दिखाता हैं कि दुनिया ने आयुर्वेद को तेजी से स्वीकारा है. पूर्व स्वास्थ्य मंत्री डॉ.हर्षवर्धन ने कार्यक्रम में कहा था की कोरोना से पहले देश में आयुर्वेदिक कम्पनियों का सालाना कारोबार 30 हजार करोड़ का था, लेकिन अब इसमें इजाफा हुआ हैं.