कला किसी पद या वर्ग की मोहताज नही होती। कला का उद्भव तो मन से होता है। जिसका मन अपनी कला में रमा हो, अपनी संस्कृति, अपने भाव से जुडा होता है। वही शख्स अपनी कला की यात्रा श्रेष्ट से सर्वश्रेष्ट तक लेकर जाता है। देश में सर्वोच्च कार्य करने पर जब किसी व्यक्ति को देश का सर्वोच्च सम्मान मिलता है तो वो उसके साथ उसके जिले और उस राज्य के लिए भी सर्वोच्च सम्मान होता है। ऐसा ही देश के सर्वोच्च सम्मान पद्म श्री से सम्मानित हुई है मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले की भील कलाकार भूरी बाई।
भूरी बाई को कला के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए पद्म श्री से सम्मानित किया गया है। भूरी आदिवासी समुदाय से आती हैं। भूरी बाई ने बचपन से ही गरीबी देखी और बाल मजदूर के रूप में काम किया। जब वह 10 साल की थी, तब उसका घर आग में जल गया। इसके बाद उनके परिवार ने घास का घर बनाया और सालों तक वह वहीं रहे। कहा जाता है की वह एक बाल वधू थी। जब उनकी शादी हुई तब उनकी प्रतिदिन आय मात्र 6 रुपये थी। कला दिखाने की मोहताज नहीं है, बल्कि वह मन का आईना होती है।
समय के साथ वह बढ़ी और इतनी बढ़ी की आज उनका सम्मान देश में किया गया। उन्होंने भील कला को कैनवास पर उतारा। अपने कार्य के साथ ही वह भोपाल में आदिवासी लोककला अकादमी में एक कलाकार के रूप में भी काम करती है। राज्य सरकार उन्हें अहिल्या पुरस्कार से भी सम्मानित कर चुकी है।
पिथौरा कला की बात करें तो उन्होने अपनी ये कला अपने पिता से सीखी। उन्हें इस पारंपरिक कला को संरक्षित करने और इसे विश्व मंच पर ले जाने में उनके योगदान के लिए ही उन्हे पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। उनकी बनाई गई पेंटिग्स लखनऊ से लेकर लंदन, मुंबई, दिल्ली, हैदराबाद से लेकर यूनाइटेड स्टेट्स और यूनाइटेड किंगडम तक गई है।
कभी 6 रुपये कमाने वाली भूरी बाई की पेंटिंग आज 10 हजार से 1 लाख रुपये तक बिक रही हैं। उनके चित्रों में आप जंगली जानवर, जंगल और उसके पेड़ों की शांति और गटाला यानि स्मारक स्तंभ, भील देवता, वेशभूषा, गहने और टैटू, झोपड़ियां, अन्न भंडार, हाट, त्योहार, नृत्य और मौखिक सहित भील जीवन के हर पहलू को आप देख सकते है। भूरी बाई ने हाल ही में पेड़ों और जानवरों के साथ-साथ हवाई जहाज, टीवी, कार और बसों के चित्र बनाना शुरू किया है। जिसे विश्व में खुब सराहना मिल रही है।