बड़ा सवाल: भारत जूझ रहा बेरोजगारी की गंभीर बीमारी से, निराश युवा आत्महत्या करने को मजबूर, जिम्मेदार कौन?

कोरोना काल में बेरोजगारी का स्तर बढने से आई युवाओं के आत्माहत्या के मामलों में तेजी
बड़ा सवाल: भारत जूझ रहा बेरोजगारी की गंभीर बीमारी से, निराश युवा आत्महत्या करने को मजबूर, जिम्मेदार कौन?
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डेस्क न्यूज. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी, 2019) की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019 में कुल 1,39,123 लोगों ने आत्महत्या की जिनके रिकॉर्ड दर्ज किए गए। इन 1,39,123 लोगों में से 10.1% यानी 14,051 लोग ऐसे थे जिन्होने बेरोजगारी के कारण आत्माहत्या की। इसका मतलब यह भी है कि हर दिन लगभग 38 बेरोजगार लोग आत्महत्या करते हैं। बेरोजगारों की आत्महत्या का यह आंकड़ा पिछले 25 साल में सबसे ज्यादा है और इन 25 सालों में पहली बार बेरोजगारों की आत्महत्या का प्रतिशत दोहरे अंक (10.1%) में पहुंचा है.

2018 में आत्महत्या करने वाले बेरोजगारों की संख्या 12,936 थी

2018 में आत्महत्या करने वाले बेरोजगारों की संख्या 12,936 थी।

एनसीआरबी के आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलता है

कि दिहाड़ी मजदूरों (23.4%), विवाहित महिलाओं (15.4%) और स्वरोजगार

करने वालों (11.6%) के बाद बेरोजगारों (10.1%) की संख्या सबसे ज्यादा है।

आत्महत्याएं का। यह आंकड़ा किसान आत्महत्याओं के प्रतिशत (7.4%) से काफी अधिक है।

अगर इसमें आत्महत्या करने वाले छात्रों (7.4%) का प्रतिशत भी जोड़ दें

तो यह आंकड़ा और भी ज्यादा हो जाता है। गौरतलब है कि आत्महत्या करने

वाले छात्रों की संख्या अधिक है, जो या तो किसी परीक्षा में फेल हो जाते हैं

या किसी प्रतियोगी परीक्षा में पास नहीं हो पाते हैं और बेरोजगार रह जाते हैं।

आत्महत्या करने के सभी कारणों में कहीं न कहीं इसका संबंध बेरोजगारी से

एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक 2019 में आत्महत्या के कारणों पर नजर डालें तो 2 फीसदी लोग परीक्षा में फेल, 2 फीसदी लोग बेरोजगारी, 1.2 फीसदी लोग करियर, 0.8 फीसदी गरीबी और 0.5 फीसदी लोग . सामाजिक स्थिति गिरने के कारण लोगों ने आत्महत्या कर ली। अगर इन सभी कारणों को देखा जाए तो कहीं न कहीं इसका संबंध बेरोजगारी से है। इसके अलावा 11.1 फीसदी लोगों ने अन्य कारणों से आत्महत्या की जबकि 10.3 फीसदी लोगों की आत्महत्या के कारणों का पता नहीं चला.

सरकार और विपक्ष क्या सही में बेरोजगारों के हितेशी?

सबसे पहले सवाल खडा होता हैं मौजुदा सरकारों पर, फिर चाहे केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार हो या राज्यों में कांग्रेस की सरकार हो. आज युवाओं की इस स्थिति की जिम्मेदार कोई एक पार्टी नही बल्कि पूरा पक्ष और विपक्ष हैं, अगर पहले की सरकारों ने सही काम किया होता तो शायद आज उन्हे विपक्ष मे बैठने की जरुरत नही पडती, लेकिन एक बार सरकार बनने के बाद जिन युवाओं के मुद्दे पर सरकारें बनती हैं फिर पार्टीयों को 5 साल बाद ही उन युवाओं की याद आती हैं, बड़ा सवाल कब तक सरकारे युवाओं को महज एक वोट बैंक की तरह देखेगी.

कोरोना के कारण बेरोजगारी बढी, क्या इतना कहने मात्र से सरकारों की जिम्मेदारी खत्म हो जाएगी 

मौजुदा स्थिति को ध्यान में रखते हुए सरकारों का तर्क हैं कि कोरोना के कारण बेरोजगारी की स्थिति बढी हैं, और भारत ही नहीं पूरा देश इस स्थिति से जुझ रहा हैं, अब अगर सरकारों के इस तर्क को सही माने तो कोरोना काल से पहले क्या देश में रोजगार की गंगा बह रही थी?. क्या युवा कोरोना काल से पहले निराश नही था? आप को बता दे 2018 में निराश होकर आत्महत्या करने वाले बेरोजगारों की संख्या 12,936 थी, क्या सरकारें ऐसे ही अपना बचाव करती रहेगी?, कब तक एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाती रहेगी?. और कब सरकारें अपनी जिम्मेदारीयों को समझेगी? आखिर कब मिलेगा युवाओं को उनका हक?

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