हर साल दशहरे के दौरान रावण का पुतला जलाया जाता है। एक तरह से रावण की मृत्यु का जश्न मनाया जाता है, लेकिन राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में पहली बार रावण का सम्मान करते हुए अंतिम संस्कार किया जाएगा। गाय के गोबर से बने 8 फीट के पुतले को बिस्तर पर लेटकर पुरे विधि-विधान से अंतिम विदाई दी जाएगी। गोनंदी संरक्षण समिति और श्री नीलिया महादेव गौशाला समिति ने रावण की विदाई की तैयारी कर ली है। सनातन और शास्त्रों के अनुसार आज दोपहर शहर के पदन पोल इलाके में रावण को विदा किया जाएगा।
कामधेनु दीपावली महोत्सव समिति के संयोजक कमलेश पुरोहित ने बताया कि गाय के गोबर और अन्य पर्यावरण के अनुकूल सामग्री से करीब 8 फुट का रावण का पुतला बनाया गया है। आज तक रावण का पुतला खड़ा कर जलाया जाता है। यह पहला मौका है, जब पुतला लेटा हुआ है, सनातन परंपरा के अनुसार कार्य किए जाएंगे। पुजारी ने बताया कि रावण एक वीर योद्धा और ब्राह्मण था। शत्रु भी हो तो भी अंतिम संस्कार हमेशा सम्मान के साथ करना चाहिए। रावण की मृत्यु का जश्न मनाने की परंपरा के विपरीत, हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार अंतिम संस्कार समारोह किया जाएगा।
कामधेनु दिवाली महोत्सव समिति के संयोजक पंडित विष्णु दत्त शर्मा ने कहा कि देश में लंबे समय से रावण जलाने की गलत परंपरा चल रही है। इस प्रथा को बदलने की जरूरत है। रावण एक ब्राह्मण, योद्धा और वीर था। रामायण या शास्त्रों में कहीं भी रावण दहन पर उत्सव या आतिशबाजी का कोई उल्लेख नहीं है। उन्होंने कहा कि बाजारवाद के इस दौर में रावण का जलना तमाशा बन गया है। समिति का प्रयास है कि दशहरे की सही और सार्थक परंपरा को आगे बढ़ाया जाए।
रावण दहन के बाद दीपावली की तैयारियां शुरू हो जाएंगी। भगवान राम के स्वागत के लिए श्रीनिलिया महादेव गौशाला समिति की ओर से 1008 गांवों में गाय के गोबर से बने दीपक भेजे जाएंगे। गाय के गोबर से बने दीपों से मंदिरों को भी रोशन किया जाएगा।
श्रीनिलिया महादेव गौशाला समिति द्वारा लगभग 4 वर्षों से गाय के गोबर से गणेश जी, दीये और अगरबत्ती बनाई जा रही है। गाय के गोबर से बनी 11 फीट 4 इंच की गणेश जी की मूर्ति स्थापित की गई है। इसके अलावा हर साल करीब 2000 मूर्तियां बनाई और भेजी जाती हैं। पिछले साल दिवाली में 1.25 लाख गोबर के दीपक दिए गए थे, जो किले पर जलाए गए थे। समिति ने एक नई परंपरा शुरू की है, जिसमें गजानन बनाकर विसर्जन की जगह जलवा पूजा की गई।