नागरिकता कानून: गृह मंत्रालय ने पाकिस्तान, अफगानिस्तान व बांग्लादेश के गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता देने के लिए मांगे आवेदन

गृह मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना में कहा गया है‘नागरिकता अधिनियम-1955 की धारा-16 में दिए गए अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए केंद्र सरकार ने पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों को धारा-5 के तहत भारतीय नागरिक के तौर पर पंजीकृत करने या धारा-6 के अंतर्गत भारतीय नागरिकता का प्रमाणपत्र देने का फैसला किया है।
Photo | Dainik Bhaskar
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डेस्क न्यू़ज़- गृह मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना में कहा गया है'नागरिकता अधिनियम-1955 की धारा-16 में दिए गए अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए केंद्र सरकार ने पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों को धारा-5 के तहत भारतीय नागरिक के तौर पर पंजीकृत करने या धारा-6 के अंतर्गत भारतीय नागरिकता का प्रमाणपत्र देने का फैसला किया है। जिसमें गृह मंत्रालय ने अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश के गैर-मुस्लिम शरणार्थियों से भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन मंगाए हैं। ये शरणार्थी गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हरियाणा और पंजाब के 13 जिलों में रह रहे हैं।

कौन कर सकता हैं आवेदन

गुजरात के मोरबी, राजकोट, पाटन,

वडोडरा, छत्तीसगढ़ के दुर्ग और बलोदाबाजार,

राजस्थान के जालौर, उदयपुर, पाली, बाड़मेर,

सिरोही, हरियाणा के फरीदाबाद तथा पंजाब

के जालंधर में रह रहे पाकिस्तान, अफगानिस्तान व बांग्लादेश के गैर-मुस्लिम इस कानून के तहत भारतीय नागरिकता के लिए ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं।

कैसे होगा आवेदन

गृह मंत्रालय ने कहा कि शरणार्थियों के आवेदन को राज्य के सचिव या जिले के डीएम द्वारा सत्यापित किया जा सकता है। इसके लिए ऑनलाइन पोर्टल होंगे। इसके अलावा राज्य के डीएम या गृह सचिव केंद्र के नियमानुसार एक ऑनलाइन और लिखित रजिस्टर तैयार करेंगे, जिसमें भारत के नागरिकों के रूप में शरणार्थियों के पंजीकरण की जानकारी होगी। इसकी एक प्रति सात दिनों के भीतर केंद्र सरकार को भेजनी होगी।

विवाद के बाद भी कानुन लागू हैं

2019 में जब सीएए कानून बनाया गया था, तो देश के विभिन्न हिस्सों में इसके खिलाफ व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए थे। इन विरोध प्रदर्शनों के मद्देनजर 2020 की शुरुआत में राजधानी दिल्ली में भी दंगे हुए। इसके बाद भी यह कानून अभी भी लागू है। सीएए के तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में उत्पीड़न के शिकार हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है, जो 31 दिसंबर 2014 तक भारत आ गए थे।

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