चीन पर सोलोमन आइलैंड्स प्लान से शिकंजा कसेगा अमेरिका

अमेरिका अब चीन पर शिकंजा कसने के लिए नए प्लान की तैयारी कर रहा है और वो प्लान है सोलोमन आइलैंड्स प्लान. जहां अमेरिका अपना दूतावास खोलने की तैयारी कर रहा है. इस इलाके में अगर अमेरिका अपना दूतावास खोलता है तो वो चीन के बढ़ते प्रभाव को नियंत्रित कर सकेगा.
चीन पर सोलोमन आइलैंड्स प्लान से शिकंजा कसेगा अमेरिका

अमेरिका अब चीन पर शिकंजा कसने के लिए नए प्लान की तैयारी कर रहा है और वो प्लान है सोलोमन आइलैंड्स प्लान. जहां अमेरिका अपना दूतावास खोलने की तैयारी कर रहा है. इस इलाके में अगर अमेरिका अपना दूतावास खोलता है तो वो चीन के बढ़ते प्रभाव को नियंत्रित कर सकेगा.

अमेरिका का कहना है कि
वो प्रशांत महासागर में स्थित देश सोलोमन आइलैंड्स में फिर से अपना दूतावास खोलेगा ताकि इस इलाक़े में चीन के बढ़ते प्रभाव को नियंत्रित किया जा सके.

इस क्षेत्र के दौरे पर गए अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने फ़िजी में ऐलान किया.

इस पर अमेरिका के एक अधिकारी ने कहा कि
चीन सोलोमन्स के राजनीतिक और व्यावसायिक नेताओं के साथ "संपर्क साधने की जी-जान से कोशिश कर रहा है" और उसकी हरकतें "वाक़ई चिंताजनक" हैं.

आपको बता दे अमेरिका ने साल 1993 में सोलोमन आइलैंड्स में दूतावास पाँच साल चलाने के बाद बंद कर दिया था जिसके बाद अमेरिकी राजनयिक पड़ोसी देश पापुआ न्यू गिनी से ही सोलोमन आइलैंड्स का राजनयिक काम काज संभार रहे थे. अमेरिका ने ये क़दम ऐसे समय उठाया है जब सोलोमन आइलैंड्स की राजधानी में कुछ महीने पहले चीन-विरोधी भावनाओं की वजह से ज़बरदस्त दंगे हुए थे.

लगभग 7 लाख की आबादी वाला सोलोमन आइलैंड्स द्वीपों से समूहों से बना एक छोटा देश है जहाँ के कई टापुओं पर विशाल ज्वालामुखी हैं.

चीन के करीबी है सोलोमन आइलैंड्स

सोलोमन आइलैंड्स की सरकार ने ताइवान के साथ 2019 में अपने कूटनीतिक संबंध तोड़कर चीन को अपना साथी बनाया था. सोलोमन आइलैंड्स के ताइवान के साथ संबंध 36 साल पुराने थे. लेकिन चीन का कहना है कोई भी देश अगर चीन के साथ कूटनीतिक संबंध रखना चाहता है तो उसे ताइवान को औपचारिक तौर पर मान्यता देना बंद करना होगा.

साल 2021 के नवंबर महिने में सोलोमन आइलैंड्स में विरोध हुआ और विरोध करने वालों ने संसद पर धावा बोल पीएम को हटाना चाहा. ये हंगामाम तीन दिन तक चला. फिर दिंसबर में वहाँ के पीएम मानासे सोगोवारे के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव आया जिसमें वो बच गए. उस समय विपक्ष ने आरोप लगाया प्रधानमंत्री अपनी राजनीति को मज़बूत करने के लिए चीन से पैसे ले रहे हैं और वो एक "विदेशी ताक़त के लिए काम कर रहे हैं".

इस पर वहां के पीएम सोगोवारे का कहना था कि उन्होंने चीन के साथ कूटनीतिक संबंध इस कारण स्थापित किए क्योंकि चीन एक आर्थिक महाशक्ति है.

बाद में चीन ने वहां पुलिस को ट्रेनिंग देने, अपने सलाहकारों को सहायता के लिए भेजना, शील्ड, हेलमेट, लाठियाँ जैसे साज़ो-सामान दिए.

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चार दशकों में दौरा करने वाले पहले विदेश मंत्री

आपको यह जानकर हैरानी होगी की एंटनी ब्लिंकेन पिछले चार दशकों में सोलोमन आइलैंड्स का दौरान करने वाले पहले अमेरिकी विदेश मंत्री हैं. उनका ये दौरा प्रशांत क्षेत्र के लिए जो बाइडन सरकार की रणनीतिक समीक्षा के बाद लिया गया. इस समीक्षा में यह तय किया गया कि चीन इस क्षेत्र में आगे बढ़ने से रोकने के लिए और ज़्यादा कूटनीतिक और सुरक्षा संसाधन भेजे जाएँगे.

ब्लिंकन ने कहा,
"ये केवल ऐसी बात नहीं है कि हम यहाँ पहुँच जाएँ, आते रहें, सुरक्षा कारणों से इलाक़े पर ध्यान दें. ये उससे ज़्यादा बुनियादी ज़रूरत की बात है."हम जब भी इस इलाक़े पर ग़ौर करते हैं जिसे हम साझा करते हैं, तो हम इसे ऐसे क्षेत्र की तरह देखते हैं जो भविष्य है."

समाचार एजेंसी एपी के अनुसार अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने अमेरिकी संसद को भेजे गए नोटिफ़िकेशन में लिखा है कि "चीन वहाँ जाने-पहचाने एक पैटर्न पर काफी महँगे वादे कर रहा है और देशों को बुनियादी ढाँचे मजबूत करने के लिए महँगे कर्ज़ दे रहा है".

नोटिफ़िकेशन में लिखा
"सोलोमन आइलैंड्स में अमेरिका की रणनीतिक दिलचस्पी है जो प्रशांत क्षेत्र का सबसे बड़ा द्वीपीय देश है जहाँ अमेरिका का फिलहाल कोई दूतावास नहीं, और अमेरिका उनके साथ राजनीतिक, आर्थिक और वाणिज्यिक संबंध आगे बढ़ाना चाहता है."
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सोर्स बीबीसी हिंदी 

दो टापुओं को लेकर काफी लंबे समय से है विवाद

जहां अमेरिका सोलोमन आइलैंड्स में दूतावास बनाना चाहता है. पिछले दिनों जो दंगे भड़के उसके लिए चीन को लेकर बढ़ती क़रीबी कारण जरुर थी,लेकिन वो एक मात्र कारण नहीं थी. दरअसल वहाँ दो टापुओं के कारण काफी लंबे समय से विवाद रहा है वो टापू है - गुआडालकनाल और मलइटा.

गुआडालनाल की बात करें तो ये उस देश का सबसे बड़ा प्रांत है और ये देश की राजधानी होनियारा वहीं है.

वहीं मलइटा सबसे ज़्यादा आबादी वाला प्रांत है मगर वो वहाँ के सबसे कम विकसित वाले इलाक़ों में गिना जाता है. वहां के लोग ये मानते है कि वो अलग-थलग हैं, साथ ही उन्हे लगता है कि सरकार ने उनके यहाँ की कई बड़ी विकास परियोजनाओं में अड़ँगा लगा रखा है. इन परेशानीयों के कारण वहाँ 1998 से 2003 के बीच कई बार जातीय हिंसा भड़क चुकी है. देश उस समय किन्ही कारणों से हुए गृह युद्ध से अभी तक बाहर नही आ पाया है.

ऑस्ट्रेलिया देश की मदद से वहाँ अक्टूबर 2000 में एक शांति समझौता हुआ. लेकिन अराजकता खत्म नहीं हुई. फिर जुलाई 2003 में वहाँ ऑस्ट्रेलिया की अगुआई में एक बहुराष्ट्रीय शांति सेना भेजी गई. जो 2017 में वहाँ से वापस लौटी आई. इसके साथ ही अभी सोलोमन आइलैंड्स के लोगों में सरकारी भ्रष्टाचार और बढ़ती जनसंख्या के लिए एज्युकेशन और नौकरियों में अवसरों की कमी को लेकर भी काफी निराशा है.

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