केंद्र सरकार की 'अग्निपथ' योजना को लेकर नेपाल में भी विवाद शुरू हो गया है। नेपाल में विपक्षी पार्टियां इस योजना का विरोध कर रही है। जैसा कि भारत में विपक्षी पार्टियों का कहना था वहीं नेपाल में भी विपक्ष का यहीं कहना है कि, चार साल के बाद बेरोजगार युवा आखिर करेंगे क्या?
सरकार अग्निपथ योजना के तहत नेपाली युवाओं की भर्ती करने वाली थी लेकिन नेपाल सरकार की ओर से कोई जबाव नहीं आने पर सरकार ने भर्ती को रद्द कर दिया।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने प्रेस ब्रीफिंग करते हुए कहा कि बहुत समय से गोरखा सैनिकों को भर्ती किया जा रहा है और अग्निपथ योजना के तहत गोरखा सैनिकों को भर्ती किया जायेगा।
नेपाल के विदेश मंत्री नारायण खड़के ने 24 अगस्त को भारत के राजदूत नवीन श्रीवास्तव से मुलाकात कर भर्ती रैली टालने की अपील की। गोरखाओं की भर्ती 25 अगस्त को होनी थी।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 14 जून को अग्निपथ योजना की घोषणा की थी। तभी से देश के भिन्न-भिन्न कोनों में विपक्षी दल के नेताओं और भड़काए गये युवाओं के द्वारा आगजनी की गई। इस योजना के तहत युवाओं को 17 वर्ष से 21 साल तक उम्र अग्निवीर के तौर पर तीनों सेनाओं में भर्ती किया जाना था। सरकार की ओर से इस वर्ष 46 हजार अग्निवीरों की भर्ती की जानी है।
अग्निवीर को पहले साल 30,000 रुपये महीने सैलरी मिलेगी। वहीं दूसरे साल में हर माह 33,000 रुपये, तीसरे साल में 36,500 रुपये और फिर चौथे साल 40,000 रुपये मासिक मानदेय होगा। इस मानदेय में से प्रत्येक महीने 30 फीसदी अमाउंट काटा जायेगा और उतनी ही राशि केन्द्र सरकार भी इसमें जोड़ेगी। जिसे रिटायरमेंट फंड के रूप में अग्निवीर को दिया जायेगा।
12वीं के बाद स्किल ट्रेनिंग लेते हैं या हायर एजुकेशन करते हैं और फिर जॉब ढूंढते है। युवाओं को अच्छी सैलरी मिलेगी। साथ ही जॉब के दौरान उन्हें स्किल ट्रेनिंग भी दी जाएगी।
नेशनल एजुकेशन पॉलिसी के तहत उन्हें जो भी फॉर्मल ट्रेनिंग दी जाएगी। उससे वे चार साल बाद हायर एजुकेशन ले सकते है। वे चार साल सेना में रहकर ज्यादा आत्मविश्वास के साथ बाहर जाएंगे।
अग्निवीरों में से ही अधिकतम 25 फीसदी को मौका दिया जाएगा। इसी के साथ 4 साल में अग्निवीरों के लिए ग्रेजुएशन डिग्री कोर्स होगा। इस कोर्स की मान्यता देश-विदेश में होगी।
नेपाल से सेना भर्ती होने वाले सैनिकों को गोरखा कहा जाता है। भारतीय सेना के फील्ड मार्शल रहे सैम मानेकशॉ ने कहा था, 'अगर कोई कहता है कि उसे मौत से डर नहीं लगता, तो वो या तो झूठ बोल रहा है या गोरखा है’। गोरखा सैनिकों का नाम दुनिया के सबसे खतरनाक सैनिकों में आता है।
8वीं सदी में हिंदू संत योद्धा श्री गुरु गोरखनाथ ने इन्हें ये नाम दिया। साथ ही नेपाल से आने वाले इन सैनिकों को गोरखा नाम, गोरखा नामक पहाड़ी शहर गोरखा से आया। इसी शहर से नेपाल साम्राज्य का विस्तार हुआ था।
सन् 1814 में भारत पर अंग्रेजों की हुकुमत थी। अंग्रेज नेपाल पर भी कब्जा करना चाहते थे, इसलिए अंग्रेजों ने नेपाल पर हमला कर दिया। ये युद्ध करीब एक साल तक चला। जिसके बाद सुगौली की संधि कर युद्ध समाप्त कर दिया गया।
इस युद्ध में अंग्रेजों ने नेपाली सैनिकों की बहादुरी को देखकर इन्हें ब्रिटिश सेना में शामिल किया गया। 24 अप्रैल 1815 में नई रेजिमेंट के तहत गोरखा सैनिकों की भर्ती की गयी।
ब्रिटिश में रहते गोरखा सैनिकों ने कई युध्द लड़े। यहां तक दोनों विश्व युद्ध में गोरखा सैनिक शामिल थे। मीडिया रिपोर्ट की मानें तो दोनो विश्व युद्ध में करीब 43 हजार गोरखा सैनिकों मौत हुई थी।
भारत के आजाद होने के बाद नवंबर 1947 में यूके, भारत और नेपाल के बीच एक त्रिपक्षीय समझौता हुआ। जिसके तहत ब्रिटिश और भारतीय सेना में नेपाली गोरखाओं की भर्ती की जाती है।
भारतीय सेना में गोरखाओं की 7 रेजिमेंट और 43 बटालियन हैं। अनुमान के मुताबिक, भारतीय सेना में गोरखा सैनिकों की संख्या 40 हजार के आसपास है। हर साल 1200 से 1300 गोरखा सैनिक भारतीय सेना में शामिल होते है।
दुनिया की सबसे खतरनाक ट्रेनिंग गोरखा सैनिकों की मानी जाती है। जिसमें सैनिकों को ट्रेनिंग के दौरान सिर पर 25 किलो रेत भरकर 4.2 किमी. खड़ी दौड़ दौड़ना पड़ेगा। ये दौड़ उन्हें 40 मिनट में पूरी करनी होती है।