हाल ही में वैज्ञानिकों ने सूअर का दिल लगाकर ये साफ कर दिया है कि सूअर के अंग इंसानों में लगाए जा सकते है. अमेरिका में 57 साल के डेविड बेनेट को सूअर का दिल लगाया गया. वह पेशे से एक अपराधी है. डेविड ने 1988 में एडवर्ड शुमेकर पर सात बार चाकू से हमला कर उसे अपाहिज बना दिया था. इसके लिए वह जेल की सजा भी काट चुके है. हाल ही में डेविड को पिछले दिनों सूअर का दिल लगाया गया है. अब वह रिकवर हो रहे है. इधर, भारत के असम में रहने वाले 72 साल के डॉक्टर धनी राम बरुआ ने 25 साल पहले ही एक 32 साल के व्यक्ति को सूअर का दिल लगा दिया था. लेकिन वो मरीज बच नहीं 7 दिन बाद ही उसकी मौत हो गई. इस कारण डॉक्टर बरुआ पर हार्ट ट्रांसप्लांट से जुड़े कानून को अनदेखा करने के आरोप में मामला चलाया गया. हालाकी उन्हे गिरफ्तारी के बाद उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया लेकिन उन पर उन पर आज भी यह मामला चल रहा है।
घटना पर डॉ. धनीराम बरुआ कहतते है मैने 25 साल पहले इंसान के शरीर में सूअर का दिल लगाया था। वही अमेरिका के डॉक्टर अब यह काम कर रहे हैं। मैंने 100 से ज्यादा बार रिसर्च कर इसका पता लगाया था और ये बात दुनिया को बातई कि इंसान के शरीर में सूअर के दिल के अलावा बाकी हिस्से भी लग सकते है. क्योंकि सूअर और इंसान के अंगों में कई तरह की समानताएं हैं। दुनिया में सबसे पहले मैंने यह रिसर्च और एक्सपेरिमेंट किया था। 25 साल पहले जिसे दिल लगाया गया था. वह 7 दिन जिंदा रहा फिर उसकी मौत हो गई. उस समय की गई रिसर्च में उनके साथ हांगकांग के सर्जन डॉ. जोनाथन हो के-शिंग भी थे। उस समय मरीज की मौत के बाद दोनों को गैर इरादतन हत्या और मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम,1994 के तहत गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया था और सोनापुर स्थित हार्ट इंस्टीट्यूट में जमकर तोड़-फोड़ हुई और गुस्साए लोगों ने उनके लैब को तहस-नहस कर दिया और वाहनों में आग लगा दी.
कहा जाता है की वैज्ञानिक समय से पहले उस चीज के बारे में सोच लेते है जो आगे होनी है. क्योकी वह आम दुनिया से कुछ हटकर सोचते है. प्रजेंट टाइम में पूरी दुनिया अमेरिकी डॉक्टरों के कारनामे को एक सफल प्रयोग के तौर पर देख रही है। लेकिन भारत के डॉ. का घमंड कहे या बात को अनदेखा करना. अगर वह नियमों से चलते तो शायद यह रिकॉर्ड भारत के नाम होता. डॉ. धनीराम कहते है की उस समय मेरा साथ किसी ने नहीं दिया। मुझे 40 दिन जेल में रखा गया। मुझ पर कई प्रतिबंध लगाए गए और मुझे हाउस अरेस्ट करके रखा गया। लेकिन मुझे इन सबका दुख नहीं है कि मुझ पर अत्याचार किए गए। खुशी इस बात की है कि आखिर चिकित्सा विज्ञान के लोगों ने 25 साल बाद यह मान लिया कि इंसान के शरीर में सूअर के अंग ट्रांसप्लांट किए जा सकते हैं.