जामा मस्जिद में Girls alone not allow! कांवड यात्रा, RSS पर बोलने वाला विदेशी मीडिया खामोश क्यों?

दिल्ली की ऐतिहासिक जामा मस्जिद में अब लड़कियों के अकेले प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई है। बीबीसी जैसे विदेशिया मीडिया हिंदुओं की कांवड यात्रा और आरएसएस के कार्यक्रमों में महिलाओं को शामिल नहीं किए जाने पर सवाल उठाते हैं, लेकिन एक मजहब विशेष की पाबंदियों पर चुप्पी साध लेते हैं। जानें ऐसे मीडिया की यह दोहरी मानसिकता आखिर क्यों है?
साभार- जागरण
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पुरानी दिल्ली की ऐतिहासिक जामा मस्जिद में अब अकेले लड़कियों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। इसके लिए जामा मस्जिद प्रशासन की ओर से आदेश जारी कर दिया है। मस्जिद के गेट पर एक बोर्ड लगा है, जिसमें लिखा है कि जामा मस्जिद में अकेले लड़कियों का प्रवेश वर्जित है। यह पट्टी मस्जिद के तीनों द्वारों पर है।

आज जब पूरी दुनिया में इस्लामिक समुदाय की महिलाएं अपने अधिकारों के लिए प्रदर्शन कर रही हैं और हिंसा का शिकार हो रही हैं, वहीं मस्जिद में इस तरह के फरमान से मुस्लिम कम्युनिटी में महिलाओं की स्थिति दर्शाता है। ईरान में तो हिजाब को लेकर वहां की मुस्लिम महिलाएं सड़कों पर प्रदर्शन कर रही हैं। वहीं दिल्ली की जामा मस्जिद में लड़कियों के अकेले जाने पर ही प्रतिबंध लगा दिया गया है।

भारत की छवि को धूमिल करने वाले मीडिया संस्थान जैसे बीबीसी, द वायर हिंसाओं को भड़काने व मजहबी बीज बोने वाले अब इस मामले में चुप्पी साधे हुए है। अब इन मीडिया संस्थानों को मुस्लिम महिलाओं का हक छीना जाना तथा समानता का अधिकार दिखाई नहीं पड़ता। मजहबियों की फिक्र करने वाले इन संस्थानों की ओर से इस मामले को लेकर अभी तक कोई आर्टिकल नहीं लिखा गया है।

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यह फैसला लड़कियों को अंधेरे में रखना जैसा

जामा मस्जिद के इस आदेश को कट्टरवादी मानसिकता बताकर इसकी आलोचना की जा रही है। लोग कह रहे हैं कि कोई आधी आबादी के साथ ऐसा कैसे बर्ताव कर सकता है। इस मामले को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता शहनाज अफजल ने कहा कि भारत जैसे देश में जहां सभी को समान अधिकार हैं, उसमें ऐसा फैसला लेना संविधान को ताक पर रखने जैसा है। उन्होंने आगे कहा कि इस तरह का फैसला किसी भी सूरत में मान्य नहीं है। ये निर्णय लेने वाले उस मानसिकता के हैं जो लड़कियों को अंधेरे के कुएं में रखना चाहते हैं।

इस मामले को लेकर मुस्लिम नेशनल फोरम के प्रवक्ता शाहिद सईद ने भी इस फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि यह मानसिकता गलत है। उन्होंने कहा कि पूजा स्थल सभी के लिए खुला होना चाहिए। यहां महिलाओं के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार क्यों? अन्य धर्मों के धार्मिक स्थलों में ऐसा कोई अंतर नहीं है।

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मस्जिद के प्रवक्ता ने फैसले का बचाव किया

इस संबंध में जामा मस्जिद के प्रवक्ता सबीउल्लाह ने इस फैसले का बचाव करते हुए कहा है कि जामा मस्जिद में कई ऐसे शादीशुदा जोड़े आते हैं जिनका व्यवहार धर्म के अनुसार नहीं होता है। साथ ही उन्होंने कहा कि यहां कुछ युवतियां सोशल मीडिया के लिए वीडियो बनाने भी आती हैं, जिससे श्रद्धालुओं को असुविधा होती है। उन्होंने कहा कि मस्जिद के अंदर संदेश भी लिखा गया है कि वीडियो मत बनाओ।

इस मामले में विदेशी मीडिया साधी चुप्पी

ब्रिटिश बॉडकास्ट कार्पोरेशन यानि विदेशी मीडिया एक तबके का संरक्षक बनता है हिंदुओं की कांवड यात्रा में महिलाओं की भागीदारी को लेकर सवाल उठाता है लेकिन अब जामा मस्जिद में लड़कियों के अकेले जाने पर प्रतिबंध लगाने पर कोई सवाल नहीं उठाता। साथ ही इस मामले में विदेशी मीडिया की ओर से कोई आर्टिकल नहीं किया जाता है।   

बीबीसी लिखता है कि- कांवड यात्रा में महिला नहीं दिखी और कोई बुजुर्ग भी नहीं दिखा। भगवान के नाम पर कानफोडू संगीत और सड़क को घेर नृत्य करने का क्या ही मतलब है?

BBC हिन्दी- Since Independence
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आरएसएस में महिलाओं की भागीदारी को लेकर सवाल

विदेशी मीडिया लगातार आरएसएस में महिलाओं की भागीदारी को लेकर प्रश्नचिह्न लगाता रहता है। जब-जब किसी मुस्लिम संगठन पर महिला विरोधी होने का आरोप लगता है, चाहे वह हिजाब हो, तीन तलाक हो या महिलाओं की आजादी को लेकर, तो वह आरएसएस पर महिलाओं की भागीदारी को लेकर सवाल खड़े करता है। लेकिन अब मस्जिदों में महिलाओं के अकेले जाने पर पाबंदी लगाने के मामले में कोई प्रश्नचिह्न नहीं लगायेगा।

जामा मस्जिद दिल्ली के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक

आपको बता दें कि दिल्ली की ऐतिहासिक जामा मस्जिद मुगलों के जमाने की है, इसकी गिनती दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिदों में होती है। दिल्ली के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक होने के साथ ही यह देश-विदेश के पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र भी है। रमजान के दिनों में इफ्तार के वक्त इसकी रौनक बढ़ जाती है, जहां बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा होकर नमाज अदा करते हैं।

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