BBC Documentary: भारत के संविधान में मीडिया को चौथा स्तंभ कहा गया है। देश में चल रहे मुद्दों को सच्चाई के साथ जनता के सामने कैसे पेश किया जाए, यह जिम्मेदारी मीडिया संस्थानों, पत्रकारों की है। यहीं देश की जनता की सोच पर प्रभाव ड़ालते है, साथ ही उनकी मानसिकता का निर्माण करते है।
BBC Documentary: भारत पर 200 साल राज करने वाले देश, ब्रिटेन से संचालित होने वाले मीडिया संस्थान ब्रिटिश ब्रॉडकास्ट कॉर्पोरेशन अर्थात् बीबीसी, भारत में भी बीबीसी हिन्दी के नाम से मीडिया संस्थान चलाता है। आप सोच सकते है कि जिस देश से यह संस्थान संचालित होता है वह भारत के भले के बारे में और देश में हिन्दुओं के खिलाफ जहर उगलने में क्यूं ही पीछे रहेगा।
अब बात करते है इसके दोहरे मापदंड और चाल-चरित्र की
BBC Documentary: बीबीसी हर दिन हिन्दुओं के खिलाफ एक आर्टिकल पब्लिश करता है। जिसका सीधा उद्देश्य देश में रह रहे बहुसंख्यक को लेकर दुनिया के सामने एक ऐसा नरेटिव सेट करना है जिससे विश्वभर के लोग, यहां तक की भारत में रह रहे अधिकांशत: अंग्रेजीभाषी जनता को ऐसा प्रतीत हो कि मुस्लिम आबादी असुरक्षित, बहुत प्रताडित और उन्हें उनके हको से वंचित रखा जा रहा है। यहां तक की आप बीबीसी की रिपोर्ट से समझ सकते है कि कैसे यह बहुसंख्यकों के खिलाफ जहर उगलने का काम करता है।
आर्टिकल की हेडलाइन से भी बीबीसी की मानसिकता का पता लगाया जा सकता है।
· आमिर खान की लाल सिंह चड्डा और अक्षय कुमार की रक्षाबंधन निशाने पर क्यों?
· हिन्दू राष्ट्र: कैसे तैयार हो रहे हिन्दुत्व के सिपाही
· हिंदू राष्ट्र: जब संगीत के सुर बन जाएं नफ़रत के हथियार
· कांवड़ यात्रा देख जब भगवान से निजी रिश्ता याद आया
अब बात करेंगे प्रत्येक उस आर्टिकल की जो बीबीसी के चाल, चरित्र और चेहरे को बेनकाव करने का काम करेगा।
BBC Documentary: भारत की जनता लाल सिंह चड्डा को फ्लॉप क्यूं करना चाहती है ये आपको बीबीसी नहीं बतायेंगा, लेकिन हम है ना, काला चिठ्ठा खोलने के लिए, हम आपको बतायेंगे कि आमिर खान की फिल्म लाल सिंह चड्डा आखिर फ्लॉप क्यूं होने जा रही है। आमिर खान वहीं व्यक्ति है जिन्होंने राजकुमार हिरानी के साथ मिलकर उनकी पिछली फिल्म ‘पीके’ में हिन्दू देवी-देवताओं को ही मजाक बना कर रख दिया था। साथ ही आपको वो शब्द तो याद ही होगा ‘असहिष्णुता’, इनकी पूर्व पत्नी किरन राव को यहां अपने ही देश में, जहां ये फिल्मों के जरिए करोड़ो पैसे कमाते है वहीं भारत में इनको रहने में डर लगता है। ये अपने ही देश को कठघरे में खड़े करते हुए अंग्रेजी में कहते है ‘India is a Intolerance Country’ मतलब देश इनके लिए असहिष्णु हो गया है। अब देश में सहनशीलता बची ही नहीं है।
BBC Documentary: वहीं इस आर्टिकल में 1990 में कश्मीर से कश्मीरी पंडितों के पलायन व उन पर हुए अत्याचारों को दिखाया गया है जिससे कश्मीर में पीड़ित प्रत्येक कश्मीरी पंडितों ने उससे संबंध दिखाया। बीबीसी ने फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ का जिक्र करते हुए आर्टिकल में लिखा की- “इस फिल्म ने दर्शकों के बीच सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को काफी बढ़ावा दिया है”।
क्या किसी एक समुदाय के साथ घटे अत्याचार को फिल्म के जरिए देश के सामने लाना क्या सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देना है?
BBC Documentary: ‘हिन्दू राष्ट्र: कैसे तैयार हो रहे हिंदुत्व के सिपाही’ बीबीसी को हिन्दू राष्ट्र की परिकल्पना करना संविधान के आधार पर केवल काल्पनिक लगती है लेकिन इसी भारत देश में गजवा-ए-हिंद की परिकल्पना लेकर चलने वाला पीएफआई काल्पनिक नहीं लगता। जो कि यूपी मिले दस्तावेजों के अनुसार 2047 तक भारत को इस्लामिक देश बनाने का ख्वाव पालता है। आपको सिंस इंडिपेंडेस के अगले विश्लेषण आर्टिकल में बतायेंगे कि बीबीसी के द्वारा पीएफआई पर लिखे आर्टिकल में किस प्रकार से नरमी बरती गयी। साथ ही यह आर्टिकल बीबीसी के द्वारा चलाये जाने वाले नेरेटिव की पोल खोल कर रख देगा।
यूपी में मिले मिशन-2047 के तहत दस्तावेज बताते है कि भारत को इस्लामिक देश बनाना इनका मकसद है। क्या यह सही है और अगर गलत है तो इसके खिलाफ आर्टिकल क्यूं नहीं लिखा जाता?
BBC Documentary: ‘हिंदू राष्ट्र: जब संगीत के सुर बन जाएं नफ़रत के हथियार’ कुछ दिनों पहले देश में हिंदुओं की रैलियों पर पथराव और हिंसा का दौर सा चल पड़ा था। मजहबीयों व भारत की छवि को धूमिल करने वाले मीडिया संस्थान जैसे बीबीसी, द वायर इन हिंसाओं को भड़काने का मूल कारण रैली के दौरान लगने वाले ‘जय श्री राम’ के नारों को बताता है।
क्या हिंदुओं की रैली में लगने वाले जय श्री राम के उद्घोष नफरत का हथियार है?
BBC Documentary: ‘कांवड़ यात्रा देख जब भगवान से निजी रिश्ता याद आया’ जो शिव भक्त नंगे पैर कावंड लेकर पवित्र जगह से गंगाजल लेकर आते है और अपने घर या मंदिरों मे चढाते है। माना जाता है कि इससे पुण्य की प्राप्ति होती है। लेकिन बीबीसी इसमें लिखता है कि- “ट्रकों, कारों और टेंपो में भरे युवा तेज संगीत पर डांस करते हुए बढ रहे थे, उन्हें देखकर ऐसा लग रहा था वे किसी तीर्थ यात्रा के बदले डिस्को पार्टी में हिस्सा ले रहे है”।
BBC Documentary: बीबीसी आगे लिखता है कि- कांवड यात्रा में महिला नहीं दिखी और कोई बुजुर्ग भी नहीं दिखा। भगवान के नाम पर कानफोडू संगीत और सड़क को घेर नृत्य करने का क्या ही मतलब है?
क्या कांवडियों के द्वारा धार्मिक संगीत पर भक्तिमय होकर नृत्य करना गलत है?