Congress President Election: सत्ता के दो केंद्र, हार का ठीकरा... अध्यक्ष बने तो गहलोत को मिलेगा कांटों भरा ताज

गैर-गांधी अध्यक्ष आने के बाद सत्ता के दो केंद्र होने का संकट पैदा होगा, जैसा यूपीए सरकार के दौर में देखने को मिला था। इसके अलावा चुनाव करीब हैं, जिसमें बेहतर प्रदर्शन का दबाव रहेगा। सबको साथ लेकर चलना बड़ी चुनौती रहेगी।
Congress President Election: सत्ता के दो केंद्र, हार का ठीकरा... अध्यक्ष बने तो गहलोत को मिलेगा कांटों भरा ताज

ढाई दशक बाद गांधी परिवार के हाथ से कांग्रेस अध्यक्ष का पद फैमिली से बाहर के किसी नेता के पास जा सकता है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और जी-23 के नेता शशि थरूर जैसे नेता अध्यक्ष पद के चुनाव में उतरने वाले हैं। इस तरह गांधी परिवार अध्यक्ष पद से बेदखल हो जाएगा। हालांकि अध्यक्ष का ताज किसी के भी सर पर सजे, कंट्रोल का बटन गांधी परिवार के हाथ में ही रहने वाला है।

पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि इसके जरिए कांग्रेस पर लगे फैमिली के टैग को हटाने में मदद मिलेगी। साथ ही पार्टी सामाजिक समीकरण भी साध पाएगी। यही नहीं गांधी परिवार के लिए भी यह रोल अच्छा रहेगा, क्योंकि उसके खाते में कोई बुराई नहीं आएगी और वह पीछे से पूरी पार्टी को मैनेज भी कर सकेगा। हालांकि इसे लेकर कुछ चिंताएं भी हैं।

उधर, अशोक गहलोत यदि अध्यक्ष चुने जाते हैं तो उन्हें कांटों भरा ताज ही मिलेगा। गहलोत के सामने पहली चुनौती बिखरती पार्टी को एकजुट करना रहेगी, जो कि आसान काम नहीं है। इस समय कांग्रेस के बड़े नेताओं में काफी मतभेद हैं। बड़े नेताओं में अधिकतर गहलोत के समकक्ष हैं, ऐसे में गहलोत के निर्देश मानने में उनका ईगो हर्ट होगा। साथ ही आगामी चुनावों यदि पार्टी का प्रदर्शन खराब रहा तो उसकी तोहमत गहलोत के सर मंढ़ी जाएगी।

पार्टी में होंगे दो पॉवर सेंटर

पार्टी के आंतरिक सूत्रों का कहना है कि गैर-गांधी अध्यक्ष आने के बाद सत्ता के दो केंद्र होने का संकट भी आ सकता है, जैसा यूपीए सरकार के दौर में देखने को मिला था। भले ही नया अध्यक्ष गांधी परिवार से बाहर का होगा, लेकिन सैकड़ों नेताओं की आस्था गांधी फैमिली में ही है। उनके लिए नए नेता को स्वीकार करना मुश्किल होगा और ऐसी स्थिति में वे गांधी परिवार के पीछे ही लग सकते हैं।

इससे सत्ता के दो केंद्र बनेंगे और मतभेद उभर सकते हैं। यह स्थिति उस कांग्रेस के लिए चिंताजनक होगी, जो 2014 के बाद से लगातार मुश्किल दौर से गुजर रही है और चुनावी हारों का सामना कर रही है। सत्ता के दो केंद्र बनने से भावी अध्यक्ष की निर्णय क्षमता पर प्रभाव पड़ेगा। ऐसे में नए अध्यक्ष के साथ उनके मतभेद उभरेंगे, जिसका काम पर असर पड़ेगा।

पूरे देश में विश्वास कायम करना होगा चुनौती

कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव 9300 कांग्रेस प्रतिनिधियों द्वारा होना है। इस चुनाव में जीत हासिल करना बड़ी बात नहीं है, लेकिन असली चुनौती पूरी पार्टी का विश्वास हासिल करना और देशभर में खुद को स्थापित करना है। नए अध्यक्ष के लिए पहले दिन से ही यह चुनौती सामने होगी।

अशोक गहलोत की ही बात करें तो उनके कई समकक्ष नेता उन्हें वैसा सम्मान शायद ही दें, जैसा गांधी परिवार के लिए उनका रवैया है। अब तक पूरी पार्टी नेहरू-गांधी फैमिली के प्रति आस्था के मुताबिक चलती थी, लेकिन अब नए नेता के आने से यह ढर्रा कैसे बदलेगा, यह देखना होगा। हर कदम पर परिवार और कार्यकर्ताओं को साधना नए अध्यक्ष के लिए चुनौती होगा।

लोकसभा चुनाव के लिए ज्यादा वक्त नहीं

कांग्रेस के नए अध्यक्ष के पास पहली चुनौती होगी कि पद संभालते ही वह देशभर के दौरे करे और कार्यकर्ताओं से कनेक्ट स्थापित करे। इसके साथ ही लोकसभा चुनाव भी आने वाले हैं और महज 20 महीनों का ही वक्त बचा है। ऐसे में खुद को स्थापित भी करना है और चुनाव की तैयारी में भी जुटना, दोहरी चुनौती जैसा होगा।

नए नैरेटिव, नए संगठन के साथ कांग्रेस चुनाव में उतरेगी। यह उसके संगठन के लिए एक परीक्षा जैसा होगा। पार्टी को गत चुनाव से बेहतर प्रदर्शन के लिए अच्छी खासी मशक्तत करनी होगी और प्रभावी रणनीति बनानी होगी। हालांकि पार्टी रणनीतिकारों का मानना है कि वह जिस हालत में है, उसमें प्रयोग करने के अलावा शायद कोई चारा भी नहीं बचा है।

यदि 2024 में हार मिली तो...

कांग्रेस लगातार दो लोकसभा चुनावों में करारी शिकस्त झेल चुकी है। इसलिए इस बार का इलेक्शन उसके लिए अस्तित्व की जंग जैसा है। एक बड़े चुनावी राणनीतिकार का मानना है कि कांग्रेस के नए अध्यक्ष की एक्सपायरी डेट एक तरह से पहले से ही फिक्स है। यदि वह 2024 के आम चुनाव में अच्छा रिजल्ट नहीं ला पाता है तो फिर कोई गारंटी नहीं है कि वह पद पर बना ही रहेगा।

गांधी परिवार के शीर्ष पर रहते हुए सभी नेता स्टेट लीडरशिप पर या फिर खुद पर जिम्मेदारी डालते रहे हैं। लेकिन परिवार से बाहर के नेता के साथ ऐसा नहीं होगा और सफलता का सेहरा यदि सिर बंधेगा तो असफलता पर सुननी पड़ेगी। चुनाव में हल्के या खराब प्रदर्शन पर पार्टी का असंतुष्ट धड़ा हमलावर होगा और वापस गांधी परिवार से ही अध्यक्ष बनाए जाने की मांग उठने लगेगी।

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