
कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव की अधिसूचना आज गुरुवार से जारी हो गई। 24 सितंबर से नामांकन भरे जाने हैं। दो दशक में पहली बार गांधी परिवार से कोई कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनावी मैदान में फिलहाल उतरता नजर नहीं आ रहा। हालांकि अभी तक राहुल गांधी को मनाने की कोशिशें चल रही हैं। शशि थरूर के चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का चुनाव लड़ना तय हो गया है। ऐसे में राजस्थान में नेतृत्व बदलाव को लेकर भी चर्चा तेज हो गई हैं। गहलोत के हटने पर राजस्थान की कुर्सी के लिए सचिन पायलट प्रबल दावेदार हैं, लेकिन उनकी राह में गहलोत समेत कई सियासी रोड़े हैं। गहलोत खेमा पायलट को बिल्कुल पंसद नहीं करता।
अशोक गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष पद संभालने के लिए तो तैयार हैं, लेकिन राजस्थान में अपना सियासी उत्तराधिकारी सचिन पायलट को मानने के पक्ष में कतई नहीं हैं। यही वजह है कि कांग्रेस अध्यक्ष पद के साथ-साथ मुख्यमंत्री पद पर गहलोत बने रहना चाहते हैं। गहलोत अपनी ओर से स्पष्ट भी कर चुके है कि वह गुजरात विधानसभा चुनाव होने तक राजस्थान में पॉवर ट्रांसफर नहीं करना चाहते हैं।
गहलोत चुनाव में कांग्रेस अध्यक्ष भले ही बन जाएं, लेकिन राजस्थान की सत्ता में वो बने रहना चाहते हैं। चाहे वह खुद मुख्यमंत्री बने रहें या ऐसा कोई सीएम बने जो उनको स्वीकार्य हो। सचिन पायलट का नाम उन्हें स्वीकार नहीं है। इसलिए वे यह भी कह चुके कि राजस्थान का सीएम वही होगा जिसे विधायक चाहें। राजस्थान के अधिकतर विधायकों की पहली पसंद अशोक गहलोत ही हैं।
सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने की मांग भले ही उनके समर्थकों के द्वारा उठाई जा रही हो, लेकिन विधायकों का समर्थन उन्हें नहीं मिल पा रहा। सीएम गहलोत के बुलाने पर कांग्रेस के विधायक उनके घर पर पहुंचे थे। गहलोत का ये शक्ति प्रदर्शन था। यह पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को यह बताने का तरीका था कि उन्हें राज्य के अधिकांश विधायकों का समर्थन प्राप्त है।
यही नहीं सचिन पायलट के साथ 2020 में बगावती रुख अपनाने वाले विधायकों में से भी कई लोग अब गहलोत खेमे में खड़े हैं। ऐसे में पायलट को सीएम की कुर्सी सौंपना कांग्रेस नेतृत्व के लिए आसान नहीं होगा। ऐसे में किसी दूसरे नाम पर भी विचार किया जा सकता है।
राजस्थान सरकार में गहलोत के समर्थकों के साथ-साथ विधायक सचिन पायलट के नीचे काम नहीं करना चाहते। उनमें से कुछ का तर्क है कि उन्हें किसी ऐसे व्यक्ति के नेतृत्व को स्वीकार नहीं करना जिसने कथित तौर पर पार्टी के खिलाफ विद्रोह किया था। राजस्थान सरकार में मंत्री अशोक चंदना द्वारा सचिन पायलट पर हालिया हमला भी दिखाता है कि उनका समर्थन कम है।
इसके अलावा राजस्थान में कांग्रेस के कई विधायक वरिष्ठ हैं, जो सचिन पायलट के अंडर में काम करने के लिए राजी नहीं है। ऐसे में कांग्रेस नेतृत्व पायलट को सीएम बनाकर किसी तरह का कोई जोखिम भरा कदम नहीं उठाना चाहेगा।
राजस्थान की सियासत में गुर्जर बनाम मीणा समुदाय की अदावत जगजाहिर है। गुर्जर समुदाय बीजेपी का परंपरागत वोटर है तो माना जाता है कि मीणा आमतौर पर कांग्रेस के साथ रहते रहे हैं। कांग्रेस अगर सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाती है तो गुर्जर समुदाय का सियासी प्रभाव बढ़ेगा, ऐसे में मीणा समुदाय में रोष बढ़ेगा।
कांग्रेस नहीं चाहेगी कि किसी भी सूरत में उसका कोर वोटबैंक उससे छिटके। माना जाता है कि सचिन पायलट के सियासी राह में सूबे का सियासी समीकरण सबसे बड़ी रुकावट बन रहा। गुर्जर-मीणा समाजों का यह समीकरण ठीक वैसा ही है, जैसा राजपूत और जाट समाजों का।
सचिन पायलट ने कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए 2018 विधानसभा चुनाव में पार्टी को सत्ता में वापसी कराने में मुख्य किरदार निभाया था। इसी का नतीजा था कि उन्हें डिप्टीसीएम की कुर्सी सौंपी गई थी, लेकिन 2020 में पायलट के कथित बगावत करने से पायलट की कांग्रेस के प्रति वफादारी पर प्रश्न चिन्ह जरूर लग गए हैं। वहीं, गहलोत गांधी परिवार के प्रति अपनी वफादारी को जाहिर करते रहे हैं।
राहुल गांधी से लेकर सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी तक से उनके रिश्ते मजबूत हैं, जिसके चलते वह सचिन पायलट पर भारी पड़ते रहे हैं। ऐसे में गहलोत और उनके समर्थक यह बात अच्छी तरह से जानते हैं कि अगर पायलट के अलावा कोई और अभी के लिए सीएम बनता है, तो गहलोत की वापसी का मौका हो सकता है।
सचिन पायलट ने गहलोत के खिलाफ बगावत का झंडा उठाया तो उपमुख्यमंत्री की कुर्सी ही नहीं बल्कि प्रदेश अध्यक्ष के पद से भी हाथ धोना पड़ा। ऐसे में राजस्थान कांग्रेस की कमान गहलोत के करीबी गोविंद सिंह डोटासरा को सौंप दी गई, जिसके चलते पायलट की पकड़ सरकार के साथ-साथ संगठन में भी कमजोर हुई। वहीं, दिल्ली दरबार में पायलट से ज्यादा गहलोत के करीबी नेता काबिज हैं जबकि उनके साथ कई नेता कांग्रेस छोड़ चुके हैं।
ऐसे में गांधी परिवार के सामने पायलट की मजबूत बैटिंग करने वाले नेता नहीं है, जबकि गहलोत और उनके करीबी नेताओं की गांधी परिवार तक सीधे पहुंच है। सचिन पायलट की राह में भी यह अहम रुकावट है।
अशोक गहलोत सियासत के मंझे हुए खिलाड़ी हैं। इस बात को गहलोत ने कई बार साबित करके भी दिखाया है। इस मौजूदा कार्यकाल में पायलट खेमे के बगावत के बाद भी सरकार बचाई तो राज्यसभा चुनाव में तमाम घेराबंदी के बावजूद कांग्रेस को जिताने में सफल रहे। इसके अलावा मौजूदा समय में कांग्रेस सिर्फ दो ही राज्यों में सत्ता पर काबिज है, जिसमें राजस्थान और छत्तीसगढ़ हैं।
किसी भी पार्टी को चलाने के लिए फंड की जरूरत होती है। माना जाता है कि सीएम गहलोत कांग्रेस के लिए जिस तरह से फंड की व्यवस्था करा देते हैं, उस तरह पायलट नहीं कर सकते हैं। ऐसे में क्या यही वजह है कि सचिन पायलट को सत्ता की बागडोर सौंपने के लिए शीर्ष नेतृत्व रजामंद नहीं है।
राजस्थान में सचिन पायलट का गुर्जर समुदाय और युवाओं के बीच काफी क्रेज है, लेकिन इन दोनों ही समीकरण के बाद भी उनके राह में कई सियासी कांटे हैं। सचिन पायलट को गहलोत का विश्वास जीतने के साथ-साथ उनके समर्थकों को भी अपने साथ मिलाना होगा।
इसके अलावा गुर्जर बनाम मीणा के बीच सियासी ढांचे में खुद को फिट करना है और कांग्रेस नेतृत्व को यह विश्वास दिलाने में कामयाब रहते हैं कि 2023 के चुनाव में कांग्रेस की सत्ता में वापसी कैसा करा पाएंगे। इसके बाद भी उनकी राह बन सकती है।
सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सीएम पद के लिए राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी के नाम की सिफारिश की है। जानकारी के मुताबिक अशोक गहलोत ने बुधवार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात की थी। जिसके बाद उन्होंने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) का चुनाव लड़ने का संकेत दिया था। सूत्रों के मुताबिक राजस्थान सरकार का आखिरी बजट पेश करने के लिए अशोक गहलोत फरवरी के आखिर तक सीएम बने रह सकते हैं।
कांग्रेस के चुनावों के बाद राजस्थान कांग्रेस में जो सीन होंगे, उसमें पहला यह कि गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद दिल्ली में पार्टी की कमान संभालेंगे और पायलट राजस्थान के सीएम पद की कमान संभालेंगे। लेकिन सवाल ये है कि क्या गहलोत, सी पी जोशी, लालचंद कटारिया, हरीश चौधरी इसके लिए तैयार होंगे?
गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष बन जाएं और 2 डिप्टी सीएम के जरिए सीएम का पद भी संभालते रहें, जैसा कि गुजरात के मुख्यमंत्री रहते नरेंद्र मोदी ने किया था। इसके बाद साल 2013 में बीजेपी के चुनाव प्रचार समिति के प्रमुख बन गये और बाद में प्रधानमंत्री पद के दावेदार भी। ऐसा होने पर कांग्रेस में बगावत और नेताओं में नाराजगी बढ़ सकती है।
कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव के बाद एक स्थिति यह भी हो सकती है कि शशि थरूर अध्यक्ष चुन लिए जाएं और गहलोत राजस्थान सरकार और गुजरात विधानसभा चुनाव की पूरी जिम्मेदारी निभाएं। लेकिन, थरूर की जीत पर थोड़ा संशय है। उनका कमजोर पहलू उनका जी-23 समूह से होना है, जिसके समर्थन में शेष कांग्रेस नेता शायद ही वोट करें।
भाजपा ने सतीश पूनिया को अध्यक्ष बनाकर जाट समुदाय से सीएम बनने की एक उम्मीद तो लगा दी है, लेकिन कांग्रेस अगर गोविंद सिंह डोटासरा, हरीश चौधरी, लालचंद कटारिया में से किसी को सीएम बना देती है तो जाट समुदाय को भाजपा के पाले से कांग्रेस में लाया जा सकता है। वैसे भी गुर्जर समुदाय का एकमुश्त वोट कांग्रेस को नहीं मिलेगा।
पार्टी का एक असंतुष्ट धड़ा जो लंबे समय से पार्टी में बदलाव की मांग करता आ रहा है, उसकी ओर से शशि थरूर भी अध्यक्ष पद के दावेदार होंगे। लेकिन, गहलोत के मुकाबले उनका पलड़ा कमजोर नजर आता है। तीन बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बन चुके गहलोत हालिया कांग्रेस में सबसे कद्दावर, अनुभवी और प्रभावशाली नेता हैं।