बृज 84 कोस में सरकारी राह पर चल रहा खनन
खनन वाले पर्वत हैं श्री कृष्ण की लीला स्थली, लोगों के लिए हैं पूज्यनीय स्थल
अवैध खनन का काफी हिस्सा राजस्थान में
550 दिन से साधु संत कर रहे आंदोलन
बृज भूमि का पवित्र क्षेत्र बृज चौरासी कोस में अवैध खनन का काम कई वर्षों से चल रहा है। आस्था धाम में इस अवैध खनन के विरोध में साधू संतो से लेकर क्षेत्र की जनता भी काफी समय से आंदोलनरत है। करीब 2 साल से तो क्षेत्र के साधू संत इसे लेकर धरने प्रदर्शन समेत कई प्रकार से आंदोलन करके प्रशासन से खनन रोकने की गुहार लगा रहे हैं।
बाबा हरिबोल ने दो दिन पहले ही आत्मदाह की प्रशासन को धमकी दी थी। इसकी परिणीति ये हुई कि आज 20 जुलाई को एक दूसरे संत बाबा विजयदास ने आत्मदाह का प्रयास किया। उन्हें गंभीर झुलसी अवस्था में अस्पताल में भर्ती कराया गया है। उधर एक अन्य संत नारायण दास 19 जुलाई की सुबह से टॉवर पर चढ़ कर अपना विरोध दर्ज करा रहे हैं। बाबा विजयदास के आत्मदाह के प्रयास से अब यह मामला तूल पकड़ेगा।
सूत्रों का कहना है कि इस मामले को लेकर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अधिकारियों की बैठक बुलाई है। बृज चौरासी कोस का कुछ क्षेत्र यूपी के साथ राजस्थान से भी जुड़ा है, इसलिए राजस्थान सरकार भी अब एक्शन में दिख रही है।
बृज यानि कान्हा की नगरी, जहां दुनियाभर के भक्त भगवान कृष्ण की भक्ति में रंगने आते हैं। श्री कृष्ण ने 84 कोस के क्षेत्र में अपनी लीलाएं दिखाई थीं, इसीलिए इस इलाके को बृज 84 कोस भी कहा जाता है। लेकिन आज बृज चौरासी कुछ अलग कारणों से चर्चा में है।
यहां पर कई पर्वत मौजूद हैं जिन पर पिछले कई सालों से अवैध खनन किया जा रहा है। बृज में स्थित आदिबद्री पर्वत और कनकांचल पर कई सालों से सरकारी राह पर खनन किया जा रहा है। लेकिन प्रशासन मूक दर्शक बना हुआ है।
अवैध खनन के कारण यहां की कई पहाड़ियां छलनी हो चुकी हैं और इसके विरोध में पूर्व में भी कई आंदोलन हो चुके हैं लेकिन खनन है कि रूकने का नाम नहीं ले रहा।
बता दें कि लगातार 550 दिन से ये आंदोलन चल रहा है। ये आंदोलन 11 जनवरी 2021 से लगातार चल रहा है। तब से लेकर अब तक हजारों साधू संत इस खनन के विरोध में आदोलन पर बैठे हुए हैं।
आंदोलन को शुरू करने वाले बाबा हरिबोल ने आत्मदाह की चेतावनी भी दी थी लेकिन 20 जुलाई को बाबा विजयदास ने आत्मदाह कर लिया। इनके अलावा साधू नारायण दास 24 घंटे से टावर पर चढ़े हुए हैं और इस अवैध खनन जिससे श्री कृष्ण की लीला स्थलियों को खत्म करने का प्रयास किया जा रहा उसे रोकनी मांग कर रहे हैं।
अगर आप ये सोच रहे हैं कि ये आंदोलन सिर्फ 550 दिन पुराना है तो आप गलत हैं। इस आंदोलन को शुरू हुए एक दशक से ज्यादा हो चुका है। बृज की इन पहाड़ियों को छलनी करने का कृत्य कई सालों से चल रहा है।
इसका विरोध भी लगातार कई सालों से किया जा रहा है। शुरुआत की बात करें तो बाबा रमेश दास जी महाराज ने इसकी शुरूआत की थी और जमकर वसुंधरा सरकार की खिलाफत की थी। हालांकि वसुंधरा सरकार गिरने के बाद खनन कुछ हद तक रूका था लेकिन अब सरकरा बदली है लेकिन तस्वीर जस की तस है।
वर्ष 2009 में भी भरतपुर के डीग व कामां तहसील में पड़ रहे ब्रज के धार्मिक पर्वतों को संरक्षित वन क्षेत्र घोषित किया गया था, पर उस समय तहसील अंतर होने से ब्रज के प्रमुख पर्वत कनकांचल और आदिबद्री का कुछ हिस्सा संरक्षित वन क्षेत्र होने से छूट गया था। इसके कारण वहां बहुत बड़ी मात्रा में खनन जारी है। कनकाचल और आदिबद्री पर्वत के क्षेत्र को वन संरक्षित भूमि का दर्जा देने से यहां खनन नहीं हो पाएगा।
तत्कालीन जिला कलक्टर डॉ. हिमांशु गुप्ता ने प्रस्ताव तैयार कर राज्य सरकार को भेजा था। राज्य सरकार जल्द अधिसूचना जारी कर देगी। बता दें कि 1996 में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के अनुसार वन संरक्षित क्षेत्र में खनन प्रतिबंधित है।
11 जनवरी 2021 को आंदोलन शुरू हुआ।
बाबा हरिबोल ने आत्मदाह की धमकी दी।
मंत्री विश्वेन्द्र सिंह की वार्ता के बाद आत्मदाह स्थगित
19 जुलाई को बाबा नारायण दास चढ़े टावर पर
20 जुलाई को बाबा विजयदास ने किया आत्मदाह का प्रयास, अस्पताल में भर्ती
अवैध खनन के विरोध में 550 दिन से चल रहे आंदोलन की बीच एक संत ने आत्मदाह का प्रयास किया और खुद पर पेट्रोल छिड़ककर आग लगा ली। बाबा विजयदास नाम के संत ने आत्मदाह करने का प्रयास किया है जिसमें वो गंभीर रूप से झुलस गए है। साधू को गंभीर अवस्था में आरबीएम अस्पताल में भर्ती किया गया है। वहीं साधुओं के आंदोलन को देखते हुए जिला प्रशासन ने डीग,नगर,कामा,पहाड़ी और सीकरी तहसीलों में इंटरनेट सेवा को बंद कर दिया है |
ये सारी पहाड़ियां कोई आम पहाड़ियां नहीं है। ऊंचाई में छोटी ये पहाड़ियां श्री कृष्ण की लीला स्थली हैं। भगवान ने यहां पर अपनी लीलाएं रची थी। ये सारी पहाड़ियां बृजवासियों सहित हर भक्त के लिए पूज्यनीय हैं और तीर्थस्थल हैं। लेकिन तथाकथित तौर पर स्थानीय मेव मुस्लिम इन चिह्नों को खत्म करने पर तुला हुआ है। पिछले कई सालो में मेव समाज ने कई धार्मिक स्थलों को नुकसान पहुंचाया है।
अवैध खनन का बड़ा हिस्सा बृज 84 कोस की परिक्रमा में आता है। मेव मुस्लिमों ने इस परिक्रमा में कई बार बाधाएं उत्पन्न की हैं। इस तरह से अगर परिक्रमा में बाधाएं आती रही तो आने वाले निकट भविष्य मे परिक्रमा के होने पर भी संदेह की स्थिति बन सकती है।
बता दें कि बृज 84 में जिन पर्वतों पर खनन किया जा रहा है उनका पत्थर छोटा है और धौलपुर के पहाड़ों जितना बड़ा नहीं है। इन पत्थरों का उपयोग सिलिका यानि बजरी बनाने के लिए किया जाता है। अंततः मुख्य उद्देश्य भगवान श्री कृष्ण की लीला स्थलियों को खंड खंड करने का है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार आदिबद्री और कनकांचल पर्वत का बहुत महत्व बताया गया है। पुराणों के अनुसार जब भगवान श्री कृष्ण के माता पिता देवकी और वासुदेव ने चार धाम यात्रा करने की इच्छा जताई थी तो भगवान ने उनकी इच्छा पूरी करने के लिए चारों धामों कों बृज में प्रकट कर दिया दिया।
बद्रीनाथ को जिस जगह पर प्रकट किया उस जगह का नाम रखा गया आदिबद्री। भगवान ने बद्रीनाथ भगवान को आदिबद्री पर्वत पर बसाया। इस पर्वत और साथ ही अन्य पर्वत को यहां पर पूजा जाता है।
10 साल से ज्यादा लम्बा आंदोलन, आत्मदाह की धमकी, संतो का इकट्ठा होना, एक संत का टावर पर चढ़ कर भूख हड़ताल करना, एक संत का आत्मदाह करना इन सब कामों के पीछे 12 साल से एक ही मांग है कि इस खनन को रोका जाए।
इन पूज्यनीय पहाड़ियों को छलनी करने पर रोक लगाई जाए। लेकिन इन सब कदमों को उठाने के बाद शायद अब प्रशासन की नींद जगी है और सीएम गहलोत ने मामले को लेकर मीटिंग बुलाई है। लेकिन देखना होगा कि इन संतो की मांग प्रशासन कब सुनेगा ?