देवभूमी उत्तराखंड जहां की जमीन और वातावरण में योग और आध्यातम बिखरा पड़ा है जहां संरक्षित और आरक्षित वन क्षेत्रों में आम जनता की आवाजाही पर पाबंदी है, और कहते हैं कि बिना इजाजत के कोई पेड़ का पत्ता भी नही हिला सकता... इन दिनों उसी उत्तराखंड की धरती पर चप्पे-चप्पे पर मजारें नजर आ रही है मानों तराई और भाबर क्षेत्र के जंगलों में पिछले कुछ सालों में मजारों और दरगाहों की बाढ़ सी आ गई है। और रास्तों पर हरे रंग के साइन बोर्ड दिख रहे है साथ ही हैरानी की बात यह है कि अब यहां धार्मिक आयोजन होने लगे हैं, जिससे जंगल की शांति और वन्य जीवों के अस्तित्व पर संकट खड़ा हो गया है। इसके साथ ही वन और वन्य जीव प्रबंधन में भी दिक्कतें आने लगी हैं। इसमें सवाल ये उठता है कि ये मजारों और दरगाहों का बनना किसी की नजरों में नहीं आया ? या फिर जानबूझकर इनपर ध्यान नहीं दिया गया ?
लेकिन जब इन दरगाहों की स्थापना की गई चाहे जमीन किसी को लीज पर दी गई या अवैध रूप से बनाई गई तब क्या किसी ने ध्यान नहीं दिया ?
लेकिन हाल ही में प्रतिबंधित जंगलों में बढ़ते अतिक्रमण को देखते हुए उत्तराखंड के वन विभाग मुख्यालय ने इसकी जांच करने का फैसला किया है। ऐसे सभी बिंदुओं पर वन प्रभागों और संरक्षित क्षेत्रों के निदेशकों से रिपोर्ट मांगी जा रही है।
अवैध मजारों और नशा करने वालों के खिलाफ काम करने वाले वयोवृद्ध संत स्वामी दर्शन भारती ने ऑपइंडिया को पहले और अब की स्थिति के बारे में बताया कि 1985 तक उत्तराखंड में एक भी मस्जिद नहीं थी। यहां मुस्लिमों को मनिहारी कहा जाता है जो महिलाओं के सौंदर्य की वस्तुएं बेचते हैं। अल्मोड़ा में एक स्थानीय सुनार ने पहली मस्जिद को मनिहारियों द्वारा दया के साथ बनाने की अनुमति दी थी। उसे नहीं पता था कि उसके बाद यहां मस्जिदों की बाढ़ आ जाएगी।
उन्होंने आगे कहा, यह उत्तराखंड का दुर्भाग्य था, हिंदुओं की उत्पत्ति, राज्य के गठन के बाद जो पहली पूर्ण-कालिक सरकार आई, वह नारायण दत्त तिवारी की थी। हमने सोचा था कि यह क्षेत्र दुनिया को हिंदू धर्म का संदेश देगा, लेकिन अब यहां अस्तित्व का संकट है। उत्तराखंड में बनी ज्यादातर मस्जिदें नारायण दत्त तिवारी के समय की हैं। श्रीनगर, पौड़ी, दुगड्डा और कोटद्वार में भी मस्जिदें बनाई गईं। सीमा पर पड़ने वाले धारचूला में एक मस्जिद भी बनाई गई है। कांग्रेस सरकार में मुस्लिम नेताओं को राज्य मंत्री बनाया गया था।
खबरों के मुताबिक ऐसे स्थल न केवल जंगल के आरक्षित वन क्षेत्रों में, बल्कि कोर जोन में पनपे हैं, जिसे राजाजी से लेकर कॉर्बेट टाइगर रिजर्व तक सबसे सुरक्षित कहा जाता है। राजाजी टाइगर रिजर्व के मोतीचूर, श्यामपुर, ढोलखंड और कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के कालागढ़, बिजरानी इसके उदाहरण हैं। तराई और भाबर आरक्षित वन क्षेत्रों में भी यही स्थिति है, जहां बड़ी संख्या में दरगाह, मकबरे, समाधि बनाए गए हैं।
स्थानीय लोगों का कहना है कि यह सब वन विभाग की लापरवाही का नतीजा है और यह लापरवाही जंगल और वन्य जीवों पर भारी पड़ने लगी है। धार्मिक आयोजनों ने वन्यजीवों की शांति भंग करने का काम किया है। आयोजनों में तेज रोशनी और लाउडस्पीकर का प्रयोग वन्य जीवन की शांति भंग कर रहा है।