अपने याक की खोज में निकले बटालिक के ताशी नामग्याल जब जुब्बर लंगपा से 5 किमी दूर पहुंचे तो उन्होंने पहाड़ की ऊंची चोटियों पर पठानी पोशाक में कुछ लोगों को बंकर खोदते देखा।
ताशी वो पहले शख्स थे, जिन्होंने पाकिस्तानी सैनिकों की कारगिल में घुसपैठ की जानकारी भारतीय सेना को दी थी। एक इंटरव्यू में ताशी कहते हैं- मैं याक खोजने के लिए दूरबीन से स्कैन कर रहा था तो ऊंची पहाड़ियों पर मुझे कुछ लोग दिखे।
उनकी जो गतिविधियां थी, वो संदिग्ध थी। मैंने यह बातें आकर भारतीय सेना को बताई और वो तारीख थी 3 मई 1999।
भारतीय सेना ने जब इसकी छानबीन की, तो ताशी की बात सच निकली। मामूली घुसपैठ का यह शक युद्ध में तब्दील हो गया। वो युद्ध जिसे दुनिया कारगिल की लड़ाई के नाम से जानती है। यह युद्ध लगभग 68 दिनों तक चला था, जिसमें सेना के सैकड़ों जवान शहीद हो गए थे।
हिमालय की ज़ांस्कर रेंज में स्थित कारगिल भारत और पाकिस्तान के बॉर्डर का इलाका है। फरवरी 1999 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने लाहौर समझौता किया था।
इस समझौते के तहत दोनों देशों के बीच शांति बनाये रखने की उम्मीद की गई थी, लेकिन इस समझौते के 90 दिन बाद ही पाक की सेना ने जम्मू-कश्मीर के कारगिल में घुसपैठ शुरू कर दी। उस वक्त लोगों के मन में सबसे बड़ा सवाल यहीं था कि जब सब कुछ सही चल रहा था तो पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ लड़ाई क्यों शुरू कर दी।
साल 2004 में एक इंटरव्यू में पाकिस्तान के पूर्व पीएम नवाज शरीफ ने बड़ा खुलासा किया था। नवाज के मुताबिक कारगिल युद्ध की पाकिस्तान के आर्मी चीफ परवेज मुशर्रफ ने लिखी थी और उनकी शह पर पाक सेना ने भारत में घुसपैठ की थी।
नवाज ने इटरव्यू के दौरान बताया कि इसकी जानकारी पाकिस्तान सरकार को नहीं थी। जब मैंने इसके बारे में पूछा तो उसने मुझसे कहा कि भारतीय सीमा पर मुजाहिद्दीन लड़ रहे हैं। मुझे जब जानकारी मिली, तब मैंने शांति स्थापित करने की दिशा में काम किया।
रक्षा मामलों के जानकारों का मानना है कि पाकिस्तान यह लड़ाई सियाचीन को अलग-थलग करने के लिए लड़ रहा था। सियाचीन को भारत ने 1984 में पाकिस्तान से छीना था। परवेज उस वक्त सेना के कमांडर हुआ करते थे। कारगिल युद्ध के बाद पाकिस्तान में तख्तापलट की घटना घटी और परवेज मुशर्रफ पाकिस्तान के सर्वे-सर्वा बन गए।
कारगिल युद्ध में कब क्या हुआ?
3 मई को पाकिस्तानी सैनिकों की घुसपैठ के बाद भारत ने इस पर एक्शन लेना शुरू किया। पहले मोर्चे पर 15 सैनिकों की एक टुकड़ी भेजी गई, जिसमें भारत के 5 जवान शहीद हो गए। जिन्हें पाकिस्तान ने कैद किया हुआ था।
सैनिकों की शहादत से भारत सरकार भड़क उठी। 8 मई को कारगिल से घुसपैठियों को खत्म करने के लिए ऑपरेशन विजयी की शुरुआत की गई। इस अभियान की मॉनिटरिंग खुद प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई कर रहे थे।
भारत ने शुरुआत में उन चोटियों को निशाना बनाया, जिससे पाकिस्तानी घुसपैठी आगे नहीं बढ़ पाए। इसी कड़ी में 26 मई 1999 को भारतीय वायुसेना ने ऑपरेशन सफेद सागर के तहत ऊंची चोटियों पर एयरस्ट्राइक की कार्रवाई शुरू कर दी।
हालांकि, चोटी पर बंकर बन जाने की वजह से एयरस्ट्राइक की कार्रवाई सफल नहीं हो पा रही थी। इसी बीच भारत का मिग-27 में आग लग गई और इसके कैप्टन नचिकेता पाकिस्तान के कब्जे में चला गया।
इसके बावजूद भारत की तरफ से एयरस्ट्राइक की कार्रवाई जारी रहा। सैन्य वार के साथ-साथ भारत ने कूटनीतिक अभियान भी जारी रखा। भारत के तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिज ने एक बयान देकर पाकिस्तान सेना को बैकफुट पर ला दिया।
फर्नांडिज ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहा कि युद्ध में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ का कोई हाथ नहीं है। फर्नांडिज के इस बयान के 4 दिन बाद अमेरिका और फ्रांस ने युद्ध के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहरा दिया।
कारगिल युद्ध की पूरी टाइमलाइन
भारतीय सैनिकों ने तालोलेंग चोटी पर कब्जे की लड़ाई शुरू कर दी। 6 दिन तक चली इस लड़ाई में भारत के कई सैनिक शहीद हुए। एक इंटरव्यू में तत्कालीन आर्मी चीफ वेद प्रताप मलिक ने कहा था- तालोलेंग में लड़ाई आमने-सामने की थी।
इसमें पाकिस्तान के एक सेना को मारने के लिए भारत के 12 जवानों की जरूरत थी, लेकिन हमारे जवानों ने अकेले-अकेले लड़कर इस लड़ाई को जीता। तालोलेंग जीतने के बाद भारतीय सैनिकों ने 'प्वाइंट 5140' की तरफ दौड़ लगा दी
प्वॉइंट 5140 की लड़ाई और विक्रम बत्रा की शहादत
20 जून को प्वॉइंट 5140 पर कब्जे की लड़ाई भारतीय सेना ने शुरू की। इसकी कमान लेफ्टिनेंट कर्नल योगेश कुमार जोशी के पास थी। जोशी ने पूरी टीम को डेल्टा और ब्रावो कंपनी में बांट दिया था। ब्रावो की कमान लेफ्टिनेंट संजीव जामवाल और डेल्टा की कमान लेफ्टिनेंट विक्रम बत्रा के पास थी।
कई दिनों की जद्दोजेहद के बाद भारतीय सैनिक प्वॉइंट 5140 पर चढ़ने में कामयाब हुए। इसके बाद दोनों तरफ से जमकर फायरिंग हुई, लेकिन भारतीय सैनिक यहां से घुसपैठियों को भगाने में कामयाब रहे।
इसके बाद विक्रम बत्रा के नेतृत्व में जवान प्वॉइंट 4825 पर कब्जा करने के लिए निकले। यहां पर भी दोनों ओर से जमकर गोलीबारी हुई। आखिर में भारतीय जवान यहां भी कब्जा करने में सफल रहें।
हालांकि, एक घटनाक्रम में विक्रम बत्रा इसी प्वॉइंट के पास दुश्मन की गोली से शहीद हो गए। बत्रा को कारगिल युद्ध में इस अदम्य साहस के लिए सेना का सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र दिया दिया गया।
मुशर्रफ का टेप वायरल, युद्ध में भारत विजयी
दोनों देशों के जंग के बीच भारत की खुफिया एजेंसी रॉ की तरफ से पाकिस्तान के तत्कालीन सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ के टेप रिकॉर्ड किए गए। पहले इस टेप को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के पास भेजा और इसके बाद कुछ अन्य देशों के राष्ट्रीय प्रमुख को सुनाया गया।
टेप में मुशर्रफ और चीन में स्थित पाकिस्तान के बड़े अफसर जंग की प्लानिंग को लेकर बात कर रहे थे। मुशर्रफ के टेप वायरल होते ही पाकिस्तान बैकफुट पर चला गया, जबकि भारतीय सैनिकों को इससे मनोवैज्ञानिक बढ़त मिल गई। पाकिस्तान ने इसके बाद समझौते के प्रयास शुरू कर दिए।
2004 में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने एक इंटरव्यू में बताया कि, हालात को हाथ से निकलता देख मुशर्रफ ने मुझसे क्लिंटन से संपर्क साधने के लिए कहा। जिसके बाद हमने क्लिंटन से संपर्क साधा और युद्ध विराम की बात कही।
शरीफ के मुताबिक इसके बाद दोनों देश ने बातचीत के कुछ मुद्दे तय किए। 11 जुलाई को नवाज शरीफ ने युद्ध रोकने की घोषणा की। शरीफ के घोषणा के बाद अटल बिहारी वाजपेयी भी ऑपरेशन विजयी के सफल होने की बात कह दी। इसके बाद 26 जुलाई को दोनों देश की तरफ से पूर्ण रूप से कारगिल युद्ध पर विराम लगाया गया।
कारगिल युद्ध में किसने क्या खोया?
कारगिल युद्ध में दोनों देशों को बड़ा नुकसान हुआ था। पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के मुताबिक अगर वक्त पर युद्ध नहीं रोका गया होता, तो खतरा परमाणु युद्ध का भी था।
इस युद्ध में भारत की तरफ से 530 जवान शहीद हुए। 1300 से ज्यादा जवान घायल हुए। 300 से ज्यादा तोप, मोटार्र और रॉकेट इस युद्ध में दागे गए। इस युद्ध में 300 लड़ाकू विमान भी तैनात किए गए थे।
पाक सरकार के अनुसार इस युद्ध में 453 जवान मारे गए। वहीं नवाज शरीफ के अनुसार इस युद्ध में 2700 जवान मारे गए। वहीं मुजाहिद्दीन के घुसपैठी कितने मरे, इसकी संख्या पाकिस्तान ने नहीं बताई। भारत ने इस युद्ध में अपनी पूरी जमीन बचा ली। युद्ध के बाद भारत ने सुरक्षा व्यवस्था को और चाक-चौबंद कर लिया है।