नाम 'आजाद', पिता का नाम 'स्वतंत्र' और 'जेल' अपना निवास, स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद की जयंती आज

चंद्रशेखर आजाद 14 साल की उम्र में बनारस चले गए और वहां के एक संस्कृत स्कूल में पढ़ाई की। वहां उन्होंने कानून भंग आंदोलन में योगदान दिया। 1920-21 के वर्षों में वे गांधीजी के असहयोग आंदोलन से जुड़े रहे। उन्हें गिरफ्तार कर न्यायाधीश के समक्ष पेश किया गया
 स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद
स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नायक और एक लोकप्रिय स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के भाबरा नामक स्थान पर हुआ था। आजाद की जन्मस्थली भाबरा को अब 'आजादनगर' के नाम से जाना जाता है। उनके पिता का नाम पंडित सीताराम तिवारी और माता का नाम जगदानी देवी था। उनके पिता ईमानदार, स्वाभिमानी, साहसी और वचन में दृढ़ थे। ये गुण चंद्रशेखर को अपने पिता से विरासत में मिले थे।

नाम 'आजाद', पिता का नाम 'स्वतंत्र' और 'जेल' अपना निवास
चंद्रशेखर आजाद 14 साल की उम्र में बनारस चले गए और वहां के एक संस्कृत स्कूल में पढ़ाई की। वहां उन्होंने कानून भंग आंदोलन में योगदान दिया। 1920-21 के वर्षों में वे गांधीजी के असहयोग आंदोलन से जुड़े रहे। उन्हें गिरफ्तार कर न्यायाधीश के समक्ष पेश किया गया। जहां उन्होंने अपना नाम 'आजाद', पिता का नाम 'स्वतंत्र' और 'जेल' अपना निवास बताया।

15 कोड़ों से दंडित हर कोड़े पर वंदे मातरम

उन्हें 15 कोड़ों से दंडित किया गया था। उन्होंने हर चाबुक से 'वंदे मातरम' और 'महात्मा गांधी की जय' की आवाज बुलंद की। इसके बाद उन्हें सार्वजनिक रूप से आजाद कहा जाने लगा। जब क्रांतिकारी आंदोलन उग्र हुआ तो आजाद उस तरफ खिंचे चले आए और 'हिंदुस्तान सोशलिस्ट आर्मी' में शामिल हो गए। रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में आजाद ने काकोरी षडयंत्र (1925) में सक्रिय भाग लिया और पुलिस की आंखों में धूल झोंककर फरार हो गए।

पूरे भारत के क्रांतिकारियों में सराहना
17 दिसंबर 1928 को चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह और राजगुरु ने शाम को लाहौर में पुलिस अधीक्षक के कार्यालय को घेर लिया और जैसे ही जे.पी. सॉन्डर्स अपने अंगरक्षक के साथ निकले तो राजगुरु ने मोटरसाइकिल से माथे पर पहली गोली दाग दी। तब भगत सिंह ने आगे बढ़कर 4-6 गोलियां चलाईं और उन्हें पूरी तरह से ठंडा कर दिया। जब सांडर्स के अंगरक्षक ने उसका पीछा किया, तो चंद्रशेखर आजाद ने उसे अपनी गोली से मार डाला।

इतना ही नहीं लाहौर में अलग-अलग जगहों पर पर्चे चिपकाए गए, जिस पर लिखा था- लाला लाजपत राय की मौत का बदला लिया गया है। उनके इस कदम की पूरे भारत के क्रांतिकारियों ने काफी सराहना की थी।

समाजवादी क्रांति का आह्वान

1931 में इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में उन्होंने रूस की बोल्शेविक क्रांति की तर्ज पर समाजवादी क्रांति का आह्वान किया। और संकल्प लिया था कि वह कभी पकड़े नहीं जाएंगे और ब्रिटिश सरकार उसे कभी भी फांसी नहीं दे पाएगी।

इसी संकल्प को पूरा करने के लिए उन्होंने 27 फरवरी 1931 को इसी पार्क में खुद को गोली मारकर मातृभूमि के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। ऐसे वीर क्रांतिकारी चंद्रशेखर का नाम आते ही मूंछें लहराने वाला युवक सामने आ जाता है। आंखें जिन्हें पूरी दुनिया 'आजाद' के नाम से जानती है।

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