वामपंथी स्टालिन ने मनीष कश्यप पर लगाया NSA, अभिव्यक्ति की आजादी वाली गैंग क्यूं है चुप, देखें Video...

पत्रकार मनीष कश्यप पर तमिलनाडु पुलिस ने राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत मामला दर्ज किया है हालांकि यह जानकारी ऐसे में वक्त में सामने आयी जब मनीष ने नियमित जमानत के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
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Pic Credit- Lokendra Singh Sainger
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तमिलनाडु पुलिस ने बिहार के पत्रकार मनीष कश्यप के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत कार्रवाई की है। यह जानकारी ऐसे समय में सामने आई है जब मनीष ने नियमित जमानत के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। उन्होंने अपील की है कि उनके खिलाफ बिहार और तमिलनाडु में दर्ज सभी मामलों को एक साथ जोड़ दिया जाए।

पिछले हफ्ते ही तमिलनाडु पुलिस की टीम मनीष को कोर्ट से प्रोडक्शन वारंट लेकर पटना से ले गई थी। पुलिस ने मनीष को तमिलनाडु के मदुरै कोर्ट में पेश करने के बाद तीन दिन की रिमांड पर लिया, जिसमें उससे पूछताछ की गई। इससे पहले बिहार पुलिस और आर्थिक अपराध इकाई ने भी मनीष से पूछताछ की थी। कोर्ट ने बिहार पुलिस की पूछताछ के बाद तमिलनाडु पुलिस की ट्रांजिट रिमांड अर्जी मंजूर कर ली थी।

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क्या है राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA)

राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) 1980 देश की सुरक्षा के लिए सरकार को अधिक शक्ति देने से संबंधित कानून है। यह कानून केंद्र और राज्य सरकार को किसी भी संदिग्ध नागरिक को हिरासत में लेने की शक्ति देता है। 23 सितंबर 1980 को इंदिरा गांधी की सरकार के दौरान इस कानून को बनाया गया था। यह कानून देश की सुरक्षा प्रदान करने के लिए सरकार को अधिक शक्ति देने से संबंधित है। यह कानून केंद्र और राज्य सरकार को किसी संदिग्ध व्यक्ति को हिरासत में लेने की शक्ति देता है।

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NSA के तहत क्या हो सकता है एक्शन

समझें कुछ बिंदुओं में-

  • इस कानून के तहत किसी को भी 3 महीने तक बिना जमानत के हिरासत में रखा जा सकता है।

  • हिरासत की अवधि जरूरत पड़ने पर 3-3 महीने के लिए बढ़ाई जा सकती है।

  • किसी भी संदिग्ध व्यक्ति को बिना कोई आरोप में 12 महीने तक जेल में रखा जा सकता है।

  • जिला अधिकारी को राज्य सरकार को बताना पड़ता है, किस आधार पर गिरफ्तारी की गई है।

  • हिरासत में लिया गया व्यक्ति सिर्फ हाईकोर्ट के सामने अपील कर सकता है।

  • NSA लगे व्यक्ति को वकील की अनुमति नहीं मिलती और जब मामला कोर्ट में जाता है तो सरकारी वकील मामले की तफ्सील कोर्ट को देता है और जज ही उसकी मेरिट जांचता है।

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