भारत के विजय दिवस को इस साल 2021 के 16 दिसंबर गुरुवार को 50 साल पूरे हो रहे हैं। भारत के विजय दिवस का बांग्लादेश के एक राष्ट्र के तौर पर अस्तित्व में आने से क्या संबंध है? एक नए देश के तौर पर बांग्लादेश के बनने में भारत की क्या अहम भूमिका थी और क्यों? आइए आपको विजय दिवस की उस कहानी से रूबरू कराते हैं। जिसे जानना हर देशवासी के लिए जरूरी है।
दरअसल 1971 का युद्ध भारत और पाक के बीच एक सैन्य संघर्ष था। इस संघर्ष का आगाज 3 दिसंबर 1971 को तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के कारण पाकिस्तान द्वारा 11 भारतीय वायु सेना स्टेशनों पर हवाई हमलों के साथ हुआ। नतीजा ये रहा कि भारतीय सेना पूर्वी पाकिस्तान में बांग्लादेश की आजादी के बिगुल में बंगाली राष्ट्रवादी समुदायों का सपोर्ट करने के लिए राजी हो गई।
जब ईस्ट पाकिस्तान से रिफ्यूजी भारत आए थे और उन्हें भारत में अस्थाई तौर पर मूलभूत सुविधाएं दी गईं। ये सब देखकर पाकिस्तान आग बबुला होकर भारत पर हमले की धमकी देने लगा।
इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रयास किए, ताकि कोई युद्ध न होकर इसका समाधान निकाला जा सके और शरणार्थी सुरक्षित घर लौट आएं लेकिन पाक के मंसूबों ने ऐसा नहीं होने दिया।
पाक के रिफ्यूजी पूर्वी पाकिस्तान की सीमा से लगे भारतीय राज्यों में पहुंचे थे। कहा जाता है कि लगभग दस लाख लोग रिफ्यूजी के तौर पर भारत आए थे।
इस सिचुएशन में भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारतीय सेना को युद्ध की तैयारी के आदेश दिए और दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान पर दबाव बनाने के प्रयास शुरू कर दिए।
तत्कालीन भारतीय सेना प्रमुख सैम मानेकशॉ की मौजूदगी में अमेरिका के नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर हेनरी किसिंजर के साथ बैठक में इंदिरा गांधी ने साफ शब्दों में कह दिया कि यदि अमेरिका ने पाकिस्तान पर लगाम नहीं कसी तो मजबूरन भारत को पाकिस्तान पर सैन्य कार्रवाई करनी पड़ेगी।
पूर्वी पाकिस्तान में हालात बद से बदतर होने लेगे। पुलिस, अर्धसैनिक बल, पूर्वी बंगाल रेजिमेंट और पूर्वी पाकिस्तान राइफल्स के बंगाली सैनिकों ने पाकिस्तानी सेना के खिलाफ बगावत कर खुद को आजाद घोषित कर दिया।
इसमें भारत ने भी मदद की और वहां के लोगों को सोल्जर ट्रेनिंग दी। इससे वहां मुक्ति वाहिनी सेना अस्तित्व में आई। बता दें कि नवंबर के आखिरी हफ्ते में पाक विमानों ने भारतीय हवाई क्षेत्र में प्रवेश करना शुरू कर दिया था।
इस पर भारत की ओर से पाकिस्तान को चेतावनी दी गई, लेकिन पाकिस्तानी राष्ट्रपति याहिया ने 10 दिनों के भीतर युद्ध की धमकी दे डाली थी।
परिणाम के तौर पर 3 दिसंबर 1971 को पाक विमानों ने भारत के कुछ शहरों पर हवाई हमले शुरू कर दिए। भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उसी समय आधी रात पूरे देश को आकाशवाणी के माध्यम से संबोधित कर कहा कि "कुछ घंटे पहले पाकिस्तानी हवाई जहाजों ने हमारे अमृतसर, पठानकोट, फरीदकोट श्रीनगर, हलवारा, अंबाला, आगरा, जोधपुर, जामनगर के एयर बेस पर हवाई हमले किए है।"
इस तरह भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध का आगाज हुआ। इसके बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारतीय सेना को ढाका की ओर बढ़ने को आदेश दिया। वहीं भारतीय वायु सेना ने पश्चिमी पाकिस्तान में महत्वपूर्ण ठिकानों और हवाई अड्डों पर बमबारी शुरू कर दी।
4 दिसंबर 1971 को ऑपरेशन ट्राइडेंट इंडिया शुरू हुआ। इस ऑपरेशन में भारतीय नौसेना ने बंगाल की खाड़ी में समुद्र की ओर से पाकिस्तानी नौसेना से मुकाबला किया और दूसरी तरफ पश्चिमी पाकिस्तान की सेना को भी धूल चटाई। 5 दिसंबर 1971 को, भारतीय नौसेना ने कराची के बंदरगाह पर बमबारी करके पाकिस्तानी नौसेना मुख्यालय को निस्तेनाबूत कर दिया।
अमेरिका और सोवियत संघ दोनों महाशक्तियां अप्रत्यक्ष रूप से इस युद्ध का हिस्सा थीं। यह सब देखते हुए 14 दिसंबर को भारतीय सेना ने ढाका में पाकिस्तान के गवर्नर हाउस पर धावा बोल दिया। उस वक्त पाकिस्तान के तमाम दिग्गज नेता और अधिकारी बैठक करने की तैयारी कर रहे थे।
इस हमले के बाद पाकिस्तान घबरा गया और जनरल नियाज़ी ने युद्धविराम का प्रस्ताव भेजा। नतीजा ये हुआ कि 16 दिसंबर 1971 को दोपहर करीब 2:30 बजे आत्मसमर्पण की प्रक्रिया शुरू हुई। इसमें लगभग 93,000 पाकिस्तानी बलों ने आत्मसमर्पण किया।
इस युद्ध को भारत के लिए एक ऐतिहासिक युद्ध माना जाता है। 16 दिसंबर को पूरे देश में पाकिस्तान पर भारत की जीत के उपलक्ष्य में 'विजय दिवस' के रूप में मनाया जाता है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 1971 के युद्ध में लगभग 3,900 भारतीय सैनिक शहीद हुए थे और लगभग 9,851 घायल हुए थे।
इसी 16 दिसंबर, 1971 के दिन को विजय दिवस के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन के बाद से पूर्वी पाकिस्तान पश्चिमी पाकिस्तान से आजाद हो गया और बांग्लादेश एक नए राष्ट्र के तौर पर जाना जाने लगा।
मीडिया ने पाकिस्तानी सेना के हाथों बंगालियों, मुख्य रूप से हिंदुओं के खिलाफ व्यापक नरसंहार की सूचना दी थी, जिसने लगभग 10 मिलियन लोगों को पड़ोसी भारत में प्रवास करने के लिए मजबूर किया। भारत ने बंगाली शरणार्थियों के लिए अपनी सीमाएं खोल दीं।
भारत-पाक युद्ध प्रभावी रूप से उत्तर-पश्चिमी भारत के हवाई क्षेत्रों में पाकिस्तान वायु सेना (पीएएफ) द्वारा पूर्वव्यापी हवाई हमलों के बाद शुरू हुआ, जिसमें आगरा को इसके ऑपरेशन चंगेज खान के हिस्से के रूप में शामिल किया गया था। ताजमहल को दुश्मन के विमानों से छिपाने के लिए टहनियों और पत्तियों से ढक दिया गया था।
जवाब में भारतीय वायुसेना ने पश्चिमी मोर्चे पर करीब 4000 और पूर्व में करीब दो हजार सामरिक उड़ानें भरीं। जबकि, पाकिस्तान वायु सेना दोनों मोर्चों पर लगभग 2800 और 30 सामरिक उड़ानें ही कर पाई। IAF ने युद्ध के अंत तक पाकिस्तान में आगे के हवाई ठिकानों पर छापेमारी जारी रखी।
भारतीय नौसेना की पश्चिमी नौसेना कमान ने कोडनेम ट्राइडेंट के तहत 4-5 दिसंबर की रात कराची बंदरगाह पर औचक हमला किया।
पाकिस्तान ने पश्चिमी मोर्चे पर भी अपने सैनिकों को लामबंद किया था। भारतीय सेना ने जवाबी कार्रवाई की और कई हजार किलोमीटर पाकिस्तानी क्षेत्र पर कब्जा कर लिया।
पाकिस्तान को हताहत हुए, जिसमें लगभग 8000 लोग मारे गए और अधिकतम 25,000 घायल हुए, जबकि, भारत ने 3000 सैनिकों को खो दिया और 12,000 घायल हो गए।
पूर्वी पाकिस्तान में मुक्ति वाहिनी गुरिल्लाओं ने पूर्व में पाकिस्तानी सैनिकों के खिलाफ लड़ने के लिए भारतीय सेना के साथ हाथ मिलाया। उन्होंने भारतीय सेना से हथियार और प्रशिक्षण प्राप्त किया।
सोवियत संघ ने उनके मुक्ति आंदोलन और भारत के साथ युद्ध में पूर्वी पाकिस्तानियों का साथ दिया। दूसरी ओर, रिचर्ड निक्सन की अध्यक्षता में संयुक्त राज्य अमेरिका ने आर्थिक और भौतिक रूप से पाकिस्तान का समर्थन किया। अमेरिका को युद्ध की समाप्ति के लिए समर्थन दिखाने के लिए बंगाल की खाड़ी में एक विमान तैनात करना था।
युद्ध के अंत में, जनरल अमीर अब्दुल्ला खान नियाज़ी के नेतृत्व में लगभग 93,000 पाकिस्तानी जवानों ने मित्र देशों की सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। जिसके बाद 1972 के शिमला समझौते के तहत उन्हें वापस कर दिया गया था।
पाकिस्तान की अपनी आधी से ज्यादा आबादी छिन चुकी थी, क्योंकि बांग्लादेश की आबादी पश्चिमी पाकिस्तान से ज्यादा थी। इसकी लगभग एक तिहाई सेना पर कब्जा कर लिया गया था। भारत का सैन्य प्रभुत्व बता रहा था कि उसने जीत के प्रति अपनी प्रतिक्रिया पर संयम बनाए रखा था।
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