Ram Mandir : विवादित परिसर में मंदिर बनाने की मांग पहली बार 15 जनवरी 1885 को ही अदालत में पहुंच गई थी। महंत रघुवर दास ने पहला केस फाइल कर राम चबूतरे पर एक मंडप बनाने की अनुमति मांगी, जो उन्हें नहीं मिली।
संयोग से इसी साल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई थी। खैर महंत रघुवर दास की अपील के कोई 80 साल बाद 29 अगस्त 1964 में मंदिर को पुरोधा मानी जाने वाली विश्व हिंदू परिषद की स्थापना हुई।
इस बैठक में संघ प्रमुख माधव सदाशिव गोलवलकर, गुजराती साहित्यकार कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी, संत तुकोजी महाराज और अकाली दल के मास्टर तारासिंह मौजूद थे।
विहिप ने अब तक मंदिर आंदोलन में ज्यादा सक्रियता नहीं दिखाई थी। यही वजह थी कि ऑल इंडिया लेवल पर दूसरे गुट की तरफ से भी कोई तेजी नहीं थी।
लेकिन एक फरवरी 1986 को बाबरी का ताला खुलते ही, 6 फरवरी को लखनऊ की एक मीटिंग में, बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन कर दिया गया
। मौलाना मुजफ्फर हुसैन किछौछवी को अध्यक्ष, मोहम्मद आजम खां व जफरयाब जिलानी को संयोजक बनाया गया।
दो-ढाई साल ऐसे ही अदालती मुकदमों में बीते। फिर 1 अप्रैल 1989 को विहिप द्वारा बुलाई गई धर्म संसद में राम मंदिर के शिलान्यास की घोषणा कर दी गई।
तारीख तय हुई 30 सितंबर। मई महीने तक विहिप ने राम मंदिर निर्माण के लिए 25 करोड़ रुपए इकट्ठा करने की योजना बनाई। विहिप प्रमुख अशोक सिंघल ने इस योजना को आगे बढ़ाया।
सिंघल का सपना था कि वे एक बार राम मंदिर को बनते हुए देखें। इस बीच शिलान्यास को घोषणा को दो महीने ही हुए थे कि जून 1989 में मंदिर आंदोलन को पहली बार भाजपा ने अपने एजड़े पर ले लिया।
हिमाचल के पालमपुर में भाजपा कार्यकारिणी ने प्रस्ताव पारित कर अयोध्या में मंदिर निर्माण का संकल्प तो लिया ही, यह बात बड़े जोर से कही कि इस विवाद का हल कोई अदालत नहीं कर सकती क्योंकि यह जमीन- जायदाद का नहीं, बल्कि आस्था का सवाल है।
हालांकि, नई दिल्ली में महंत अवैद्यनाथ के नेतृत्व में मंदिर निर्माण के लिए हिंदू समूहों ने 'रामजन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति' 1984 में ही बना ली थी।
लेकिन यह समिति विहिप जितनी उग्र नहीं थी। इस बीच जुलाई 1988 से नवंबर 1989 तक तत्कालीन गृहमंत्री बूटा सिंह जन्मभूमि विवाद को लेकर अलग-अलग पार्टियों के साथ सलाह- मशविरा करते रहे।