जब खुला मंदिर का ताला तो राम नाम की चिंगारी, दावानल बन पूरे देश में फैल गई

AyodhyaRamMandir: सदियों से अयोध्या ने कालचक्र के कई उत्तार-चढ़ाव देखे। महाराज रघु, राजा दशरथ और स्वयं राम को भी देखा। और फिर इन्हीं राम के मंदिर के लिए चले अथक संघर्ष को भी।
जब खुला मंदिर का ताला तो राम नाम की चिंगारी, दावानल बन पूरे देश में फैल गई
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AyodhyaRamMandir: सदियों से अयोध्या ने कालचक्र के कई उत्तार-चढ़ाव देखे। महाराज रघु, राजा दशरथ और स्वयं राम को भी देखा।

और फिर इन्हीं राम के मंदिर के लिए चले अथक संघर्ष को भी।  अयोध्या में रामजन्मभूमि का आंदोलन कोई साढ़े चार सौ साल तक चला।

कभी संतों और धर्म गुरुओं ने इसकी कमान संभाली तो कभी राजनीतिक दलों और उनके नेताओं ने।

केवल इस आंदोलन के कारण कई सरकारें ताश के पत्तों की तरह गिरी भी और एक अजीब आंधी की तरह आई और बनी भी।

एक ताले में दबी हुई थी अयोध्या की आग

कहते हैं बाबर के सेनापति मीर बाकी ने सन् 1526 से 1528 के बीच राम मंदिर तोड़कर उसी के मलबे से बाबरी मस्जिद बनवाई, लेकिन फिर भी बरसों बरस इसे कभी 'सीता रसोई मस्जिद' वा 'जन्म स्थान मस्जिद' ही कहा जाता रहा।

सन् 1528 से 1731 तक इस इमारत पर कब्जे के लिए दोनों समुदायों के बीच कोई 64 बार संघर्ष हुआ।

1852 में अवध के नवाब वाजिद अली शाह ने पहली बार सरकार को इस मामले में दोनों समुदायों के बीच हुई मारपीट की रिपोर्ट भेजी।

किसे पता था कि एक ताले के भीतर अयोध्या की आग दबी हुई है। ताला खोला और आग भड़क उठीं। इस आग ने पहले अयोध्या को अपनी गिरफ्त में लिया, फिर यह दावानल बनकर पूरे देश में फैल गई।

मुस्लिम लॉबी ने फैजाबाद की अदालत के फैसले पर ही बोल दिया धावा

साल 1951 के बाद 1986 में जब बाबरी का ताला खोलने का दूसरा आदेश आया तब  तक 'धर्म-निरपेक्षता' शब्द हिंदुओं के लिए एक तरह की चिढ़ बन चुका था। एक तरह से मुस्लिम तुष्टीकरण का पर्याय भी।

शाहबानो प्रकरण पर उग्र हुई मुस्लिम लॉबी के दबाव में जब केंद्र की सरकार ने जल्दबाजी में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया तो यह उग्रता अपने चरम की तरफ बढ़ने लगी।

सरकार तुष्टीकरण की इस कदर मुरीद हो चुकी थी कि शाहबानो प्रकरण के फैसले से मायूस हिंदुओं को खुश करने के लिए उसे एक फरवरी 1986 को बाबरी के बंद पड़े ताले खुलवाने पड़े।

जल्दबाजी इस तरह की कि फैजाबाद की अदालत ने शाम 4:40 बजे आदेश दिए और केवल चालीस मिनट में यानी 5:20 बजे ताले खोल दिए गए।

शाहबानों प्रकरण में सफलता का स्वाद चख चुकी मुस्लिम लॉबी ने फैजाबाद की अदालत के फैसले पर ही धावा बोल दिया।

उग्रता का वेग इतना भयानक था कि अदालती फैसलों का विरोध करते-करते ये लोग गणतंत्र दिवस समारोह का बहिष्कार करने की हद तक पहुंच गए।

कालांतर में कई धार्मिक और राजनीतिक उफान आए और चले गए। कई नेता और दल आसमान छू गए, तो कई रसातल में चले गए।

इस बीच राम और राम मंदिर आंदोलन को घर पर पहुंचाने में दो चीजों का सबसे बड़ा योगदान रहा।

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