महाराष्ट्र में ताजा सियासी उठाफटक से कई कथानक सही साबित हो रहे हैं राजा रंक होने की कगार पर है तो वहीं घर के भेदी ने ना सिर्फ लंका को ढ़हाने का प्लान बना लिया है, बल्कि पूरी लंका पर ही काबिज होने का व्यूह रच डाला है। शिवसेना अब किसी एक की सेना नहीं रही, उद्धव की सरकार पर संकट है,सहयोगी विपक्ष में बैठने की बातें करने लगे हैं। लेकिन इस पूरे खेल में एक तीसरा खिलाड़ी भी है जो ना बैंटिग पिच पर है और ना ही बॉलिंग रनअप पर, वो बाहर बैठ कर मैच देख रहा है,और तेल के साथ तेल की धार भी परख रहा है। राजनीति के इस काबिल खिलाड़ी की भूमिका में है भारतीय जनता पार्टी। लेकिन सवाल उठता है जब इस पूरे ‘खेला’ का सूत्रधार ही बीजेपी है तो फिर वो पर्दे के पीछे क्यों है ? आखिर क्यों वो वेट एंड वाच वाले मूड में दिख रही है। कहीं इसका मुख्य कारण राजस्थान में 2020 में हुई वो फजीहत तो नहीं जिसमें ‘ना माया मिली ना राम’। आइए इसे जरा तफ्सील से समझते हैं।
महासंकट के लिए BJP है जिम्मेदार ?
कभी बाला साहेब के लाडले रहे और उद्धव के बेहद करीबी माने जाने वाले एकनाथ शिंदे की बगावत से महा विकास अघाड़ी गठबंधन सरकार के भविष्य पर सवाल खड़ा हो गया है। इस महासंकट के लिए शिवसेना के नेता बीजेपी को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं लेकिन बीजेपी चुप है। बीजेपी पर्दे के पीछे से पूरे खेल पर नजर बनाए हुए है । क्यों कि इससे पहले जल्दबाजी में एक बार नहीं बल्कि दो बार गच्चा खा चुकी है, जिससे पार्टी की अच्छी खासी फजीहत हुई थी। जब साल 2019 में एनसीपी नेता अजित पवार के साथ ज्लदबाजी में सरकार तो बना ली लेकिन सरकार ढ़ाई दिन ही चल पाई।
शिवसेना से बगावत कर एकनाथ शिंदे अभी असम में डेरा जमाए बैठे हैं। बीजेपी हर बात पर इसे शिवसेना का अंदरुनी मामला बता रही है लेकिन विधायकों के ठहरने और सुरक्षा का पूरा इंतजाम बीजेपी शासित गुजरात और असम में किया गया है। इससे साफ है कि ये सियासी रण अगर किसी को फायदा पहुंचा रहा है तो वो सिर्फ बीजेपी है।
उद्धव सरकार का जाना तय मानने वाली बीजेपी खुलकर सामने नहीं आ रही है, क्यों कि ना तो सरकार गिराकर शिवसेना को सहानुभूति लेने देना चाहती है और ना ही मराठा कार्ड खेलने का कोई मौका देना चाहती है। दूसरी बड़ी वजह यह मानी जा रही है कि बीजेपी 2019 में महाराष्ट्र और 2020 में राजस्थान वाली गलती नहीं दोहराना चाहती है। साल 2019 में एनसीपी नेता अजित पवार के साथ बीजेपी ने सरकार बनाने की कोशिश की थी । पूर्व मुख्यमंत्री फडणवीस को कुर्सी तो मिली थी लेकिन मात्र 80 घंटे के सीएम रह पाए। इससे जो फजीहत हुई उससे बीजेपी ठोस संभावना बनने तक खुद को पूरे खेल से दूर ही रख रही है।
इसके अलावा एक वजह यह भी है शिवसेना के बागी विधायक मुंबई लौटने के बाद कहीं वापस उद्धव के खेमे में ना लौट जाएं जैसा कि राजस्थान में सचिन पायलट मामले में बीजेपी देख चुकी है। कांग्रेस ने उस समय भाजपा पर राज्य में गहलोत सरकार को अस्थिर करने और विधायकों को खरीद-फरोख्त की कोशिश के आरोप लगाए थे। कांग्रेस के चाणक्य गहलोत भारी पड़े और अपनी सरकार बचा ली। इसी तर्ज पर महाराष्ट्र मामले में शिवसेना और एनसीपी इसी इंतजार में हैं कि बागी विधायक मुंबई लौटें। शरद पवार पहले ही इशारा दे चुके हैं कि मुंबई आने पर स्थिति बदलेगी। उद्धव कई बार कह चुके हैं कि हमारे विधायक आकर एक बार बात तो करें।
इस घटनाक्रम में कई मोड़ आ रहे हैं केंद्रिय मंत्री नारायण राण ने खुलकर एकनाथ शिंदे का समर्थन किया है तो वहीं भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिक का कहना है कि उनकी पार्टी का एमवीए सरकार के संकट से कोई लेना देना नहीं है। साथ ही उन्होने उद्धव ठाकरे पर निशाना साधा कहा कि ये उद्धव की नाकामी है वो अपनी पार्टी नहीं संभाल पाए। हालांकि एक्सपर्ट ये बता रहे हैं कि बीजेपी चाहती है कि उद्धव ठाकरे खुद ही गिर जाएं ताकि बीजेपी पर एक मराठा मुख्यमंत्री को सत्ता से बेदखल करने का आरोप ना लगे।
इस घटना से ये तो साबित हो गया कि सत्ता पाने तक ही खेल नहीं होता बल्कि अब सरकार चलाने से ज्यादा सराकर बचाने पर ध्यान दिया जाने लगा है। कहने को लोकतंत्र है लेकिन सबसे ताकतवर जनता मूकदर्शक बनकर अपने नुमाइंदों का सियासी दंगल देखने को मजबूर है।