ऑटो रिक्शा ड्राइवर से महाराष्ट्र के CM बनने का सफर, जानें Eknath Shinde की पूरी कहानी

जानते हैं महाराष्ट्र की सियासत का ट्रंप कार्ड बने शिंदे (Eknath Shinde) के जीवन और उनकी सियासत का सफर कैसा रहा, और कैसे एक ऑटोरिक्शा ड्राइवर मुख्यमंत्री बना...
ऑटो रिक्शा ड्राइवर से महाराष्ट्र के CM बनने का सफर, जानें Eknath Shinde की पूरी कहानी

आज महाराष्ट्र की सियासत में जिसका नाम सबसे ज्यादा लिया जा रहा है वो नाम है….एकनाथ शिंदे। एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) ने उद्धव सरकार से बगावत कर बागी विधायकों का एक गुट बनाया और आज महाराष्ट्र की सत्ता की सत्ता हासिल की। किसी ने सोचा भी नहीं था कि एक समय शिवसेना को इस तरह की आंतरिक बगावत का सामना करना पड़ेगा।

पार्टी में पहले भी कई बार बगावत के बीज पनपे पर पहले कभी किसी भी दल ने दूसरी पार्टी में जाकर मिलने की हिम्मत नहींं की। लेकिन शिंदे (Eknath Shinde) ने पूरी शिवसेना को ही हाईजैक कर लिया। पहले अनुमान लगाया जा रहा था कि देवेंद्र फडणवीस को CM बनाया जाएगा लेकिन एकनाथ शिंदे ने CM बनकर सबको हैरान कर दिया।

एकनाथ शिंदे के इस कदम के बाद हल जगह उनकी ही चर्चा हो रही है। बता दें कि एकनाथ राजनेता बनने से पहले एक ऑटोरिक्शा चलाते थे तो चलिए जानते हैं महाराष्ट्र की सियासत का ट्रंप कार्ड बने शिंदे के जीवन और उनकी सियासत का सफर कैसा रहा, और कैसे एक ऑटोरिक्शा ड्राइवर मुख्यमंत्री बना…

ऑटो रिक्शा ड्राइवर थे एकनाथ शिंदे
9 फरवरी 1964 को महाराष्ट्र में जन्मे एकनाथ शिंदे सतारा जिले के पहाड़ी जवाली तालुका से आते हैं और वह मराठी समुदाय से हैं। 11वीं कक्षा तक शिंदे ने ठाणे में ही पढ़ाई की और इसके बाद वागले एस्टेट इलाके में रहकर ऑटो रिक्शा चलाने लगे। इसी दौरान एकनाथ शिंदे अस्सी के दशक में शिवसेना से जुड़े गए और पार्टी के एक आम कार्यकर्ता के रुप में अपना राजनीतिक सफर शुरू किया है।

एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई से सटे ठाणे जिले के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक है। लोकसभा का चुनाव हो या नगर निकाय का, ठाणे में जीत के लिए एकनाथ शिंदे का साथ जरूरी माना जाता है। एकनाथ शिंदे ने शुरू से ही शिवसेना में जमीनी कार्यकर्ता के तौर पर काम किया और ठाणे के प्रभावशाली नेता आनंद दीघे के उंगली पकड़कर आगे बढ़े।

1997 में पहली बार बने पार्षद

एकनाथ शिंदे 1997 में ठाणे महानगर पालिका से पार्षद का चुनाव लड़ा जिसमें उन्हें जीत हासिल हुई वहीं 2001 में वह नगर निगम सदन में विपक्ष के नेता बने। इसके बाद साल 2002 में वह दूसरी बार निगम पार्षद बने।

इसके अलावा तीन साल तक वह पॉवरफुल स्टैंडिंग कमेटी के सदस्य रहे। हालांकि, दूसरी बार पार्षद चुने जाने के दो साल बाद ही विधायक बन गए, लेकिन शिवसेना में सियासी बुलंदी साल 2000 के बाद छू सके।

आनंद दीघे के निधन के बाद पार्टी में बढ़ा शिंदे का कद

ठाणे इलाके में शिवसेना के दिग्गज नेता आनंद दीघे का साल 2000 में निधन होने के बाद एकनाथ शिंदे आगे बढ़े। इसी बीच 2005 में नारायण राणे ने शिवसेना छोड़ दी, इसके बाद एकनाथ शिंदा का पार्टी में कद बढ़ता चला गया। राज ठाकरे के शिवसेना छोड़ने के बाद एकनाथ शिंदे का ग्राफ शिवसेना में तो बढ़ा ही बढ़ा और ठाकरे परिवार के करीबी भी बन गए। उद्धव ठाकरे के साथ एकनाथ मजबूती से खड़े रहे।

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4 बार विधायक पद पर रहे शिंदे

मातोश्री के सबसे करीबी नेताओं में एकनाथ शिंदे का नाम सबसे पहले लिया जाता है। एकनाथ शिंदे ने ठाणे की कोपरी-पंचपखाड़ी सीट से साल 2004 में पहली बार विधायक पद पर चुनाव लड़ा।

शिंदे शिवसेना के टिकट पर 2004 में पहली बार विधानसभा पहुंचे। इसके वह बाद 2009, 2014 और 2019 में भी विधानसभा सदस्य निर्वाचित हुए। बता दें कि एकनाथ शिंदे के बेटे श्रीकांत शिंदे भी शिवसेना से कल्याण लोकसभा सीट के सांसद हैं।

2019 में चली थी शिंदे के CM बनने की चर्चा

बताया जा रहा है कि 2019 के चुनावों में एकनाथ शिंदे को सीएम जाने पर चर्चा हुई थी। आदित्य ठाकरे ने शिवसेना विधायक दल की बैठक में शिंदे के नाम का प्रस्ताव रखा था, वे चुन भी लिए गए। लेकिन उस समय उद्धव ठाकरे ने सत्ता यानी सीएम का पद संभाला। शिंदे को उद्धव सरकार में शहरी विकास मंत्री बनाया गया।

बागी विधायकों ने जताया शिंदे पर विश्वास

शिंदे की लीडरशिप ने ही उन्हें आज महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बना दिया। शिंदे सड़क से सत्ता तक का संघर्ष देखा है। लीडरशिप के इन्हीं गुणों के कारण बागी विधायकों को पूरा विश्वास था कि अगर शिंदे ने उद्धव सरकार से हाथ खींचा है तो वे अपने उदृेश्य में जरूर सफल होंगे।

यही कारण था कि वह एक एक करके सूरत के रास्ते गुवाहाटी पहुंच गए थे। शिंदे ने उनके अनुमान को सही भी कर दिखाया। सीएम पद की शपथ लेने के बाद महाराष्ट्र की सियासत में उनकी जमीन कितनी ताकतवर होती है, यह आने वाला वक्त ही बताएगा। लेकिन आज शिंदे ही महाराष्ट्र की सियासत के अहम किरदार हैं और यह बात बीजेपी भी अच्छी तरह से जानती है।

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