Kashmiri Pandit: उन्हें तो घर वापसी की उम्मीद थी। लेकिन बेबस सरकार ने उन्हें फिर से पलायन को मजबूर कर दिया

कश्मीरी पंडितो का जो अस्तित्व 90 के दशक में जम्मू कश्मीर से लगभग खत्म हो गया था अब एक बार फिर से कश्मीरी पंडितो द्वारा सामूहिक पलायन की मांग कश्मीर से कश्मीरी पंडित का इतिहास खत्म करने की ओर बढ़ती दिखाई देती है।
Kashmiri Pandit राहुल भट की हत्या का विरोध करते हुए
Kashmiri Pandit राहुल भट की हत्या का विरोध करते हुए
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कश्मीरी पंडित (Kashmiri Pandit) 90 के दशक में बेहद खौफनाक मंजर का सामना कर चुके है। घाटी में लगातार हो रही हत्याएं, रेप और धर्मान्तरण के बीच में तब कश्मीरी पंडितो (Kashmiri Pandit) ने अपनी सारी संपत्ति को वहीँ छोड़कर खुद की जान को बचाना ज्यादा जरुरी समझा था। साल 2014 में जब मोदी सरकार(Modi Government) आई तो कश्मीरी पंडितो (Kashmiri Pandit) को एक बार फिर से उनकी घर वापसी की राह दिखाई दी। मोदी सरकार (Modi Government) ने भी अपने दूसरे कार्यकाल में धारा 370 को हटाते हुए एक बार फिर से घाटी में कश्मीरी पंडितो (Kashmiri Pandit) को बसाने की बात पर ख़ासा जोर दिया।

हालाँकि बीते कुछ दिनों से अब कश्मीर में एक अलग ही माहौल देखने को मिल रहा है। बीते 18 दिन से घाटी में कश्मीरी पंडितो (Kashmiri Pandit) का विरोध प्रदर्शन चल रहा है। ये लोग सरकार से मांग कर रहे है सुरक्षा की ये लोग सरकार से गुहार लगा रहे है पलायन की। कश्मीरी पंडितो (Kashmiri Pandit) का जो अस्तित्व 90 के दशक में जम्मू कश्मीर से लगभग खत्म हो गया था अब एक बार फिर से कश्मीरी पंडितो (Kashmiri Pandit) द्वारा सामूहिक पलायन की मांग कश्मीर से कश्मीरी पंडित (Kashmiri Pandit) का इतिहास खत्म करने की ओर बढ़ती दिखाई देती है।

क्यों चाहते है पलायन
धरा 370 हटने के बाद से ही घाटी में शांति बनी रहे इस वजह से वहांपर लगातार सैन्य ऑपरेशन हो रहे है। सेना के साये में होने के बावजूद कश्मीरी पंडित अपनी सुरक्षा को लेकर काफी चिंतित है। इस चिंता की वजह भी जायज है क्यूंकि धरा 370 हटने के बाद से अब तक वहां पर कुल 14 हिन्दुओ की हत्या कर दी गई है, जिनमे से चार कश्मीरी पंडित थे। एक बेहद भयावह नरसंहार को झेल चुके कश्मीर पंडित (Kashmiri Pandit) शायद अब एक और मंजर को देखना नहीं चाहते इसीलिए अब सरकार से किसी दूसरी जगह पोस्टिंग की मांग कर रहे है।
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13 दिन में 3 हत्याएं

जम्मू कश्मीर में एक बार फिर से आतंक पैर फैलते हुए मालुम पड़ता है। हाल ही में जम्मू-कश्मीर के कुलगाम क्षेत्र के एक हाई स्कूल की हिंदू शिक्षक रजनी बाला (Rajni Bala) की हत्या कर दी गई। इस हत्या के विरोध में भी लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहा है। रजनी (Rajni Bala) की अंतिम यात्रा के दौरान प्रदर्शनकारीयो ने आज सड़कों पर 'हमें न्याय चाहिए' के नारे लगाए। कश्मीरी पंडितों (Kashmiri Pandit) ने इसी के साथ ये धमकी भी दी है कि अगर प्रशासन उन्हें उन्हें 24 घंटे के भीतर सुरक्षित स्थानों तक नहीं पहुंचाता है तो वे घाटी छोड़ देंगे।

बहरहाल खबरे कहती है की कश्मीरी पंडित (Kashmiri Pandit) समुदाय पलायन की तैयारी में है। कश्मीरी पंडितों द्वारा दी गई चेतावनी के बाद जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने उन्हें उनके ट्रांजिट कैंपों तक सीमित भी किया है। लेकिन इस तथ्य को नहीं नकारा जा सकता की सेना की मौजूदगी की बावजूद घाटी मे तनाव कम नहीं हो पा रहा है।

बीते महीने में हुई चार हत्याएं

मई महीने में घाटी में एक बार फिर आतंक के चलते जनाजे उठाये गए। आतंक का कोई मजहब नहीं होता इसकी मिसाल खुद आतंकियों ने ही दे दी। बिना किसी वजह के राहुल भट (Rahul Bhat) की हत्या करने के अगले ही दिन आतंकियों ने एसपीओ रियाज अहमद ठाकोर (Riyaz Ahmed Thakor) की हत्या कर दी। इसके बाद 25 मई निर्दोष लोगो को मारकर जिहाद मुकम्मल करने का मुगालता पालने वाले आतंकियों ने TV आर्टिस्टअमरीन भट (Amreen Bhat) की भी हत्या कर दी। दुर्भाग्यवश कल रजनी बाला (Rajni Bala) का भी नाम इस सूची में जुड़ गया।

रजनी बाला के अंतिम संस्कार में गाँव के कई लोग शामिल हुए
रजनी बाला के अंतिम संस्कार में गाँव के कई लोग शामिल हुए

कश्मीरी पंडितो (Kashmiri Pandit) की पीड़ा का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है की कभी कश्मीर (Kashmir) में फिर से एक ताजगी भरी सुबह का ख्वाब सजाने वाले कश्मीर पंडित (Kashmiri Pandit) इन दिनों नारे लगाते है - हम इस देश में दंडित हैं, हम कश्मीरी पंडित हैं…घाटी से बाहर पोस्टिंग ही समाधान.. जैसे नारे लगा कर अपनी सुरक्षा की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है हम आये तो यहाँ नौकरी के लिए थे, लेकिन 3 दशक बाद भी हत्याएं जारी हैं।

राहुल भट की हत्या का गम उनके परिजनों से भुलाये नहीं भूलता
राहुल भट की हत्या का गम उनके परिजनों से भुलाये नहीं भूलता Image Source: ANI

प्रदर्शनकारी करुणा कहती है - प्रशासन कई तरह के दावे करता हैं, लेकिन जमीन हकीकत कुछ और है। वादा घर और दफ्तर में सुरक्षा का था लेकिन अब तो दफ्तरों में ही हत्या हो रही हैं। हम कैदियों जैसी जिंदगी नहीं जीना चाहते? एक अन्य पंडित गुहार लगeते हुए कहत हैं- सबको सुरक्षा देना संभव ही नहीं है। बेहतर यही है की हमें शिफ्ट कर दिया जाए।

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